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    साहित्य को समृद्ध कर गईं मन्नू भंडारी, महिलाओं के अलावा भी कई विषयों पर लेखन कर चुकी लेखिका

    By Pooja SinghEdited By:
    Updated: Wed, 17 Nov 2021 09:44 AM (IST)

    अंतिम विदा लेने से पहले मन्नू भंडारी साहित्य के आकाश पर अपनी अमिट छाप छोड़ गईं। उन्होंने कहानी उपन्यास और नाटकों की रचना कर हिंदी साहित्य में अपना खास मुकाम बनाया। उन्होंने उस धारणा को ध्वस्त किया कि महिला लेखक मात्र महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ही लेखन किया।

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    साहित्य को समृद्ध कर गईं मन्नू भंडारी, महिलाओं के अलावा भी कई विषयों पर लेखन कर चुकी लेखिका

    अनुराग सिंह। सोमवार को इस दुनिया से अंतिम विदा लेने से पहले मन्नू भंडारी साहित्य के आकाश पर अपनी अमिट छाप छोड़ गईं। उन्होंने कहानी, उपन्यास और नाटकों की रचना कर हिंदी साहित्य में अपना खास मुकाम बनाया। लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में अध्यापन कार्य करने वालीं मन्नू भंडारी जितनी सशक्त रचनाकार थीं, उससे कहीं अधिक ऊर्जावान और ईमानदार शिक्षिका के रूप में भी प्रसिद्ध थीं। उनसे पढ़ी छात्राएं इसी बात पर इतराती थीं कि उन्हें मन्नू जी से पढ़ने का अवसर मिला। एक शिक्षिका का रूप उनके साहित्यकार अवतार में भी मजबूती से उपस्थित रहा ।

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    मत्रू भंजारी रही सशक्त रचनाकार

    मन्नू भंडारी, ऊषा प्रियंवदा और कृष्णा सोबती आधुनिक हिंदी साहित्य की सशक्त महिला रचनाकार हैं, जिनकी रचनाओं में स्त्री की संपूर्ण छवि के दर्शन हो जाते हैं। इस त्रयी ने कथा साहित्य के फलक को और अधिक विस्तार दिया। पाठकों में एक आम धारणा यह बनी हुई थी कि महिला लेखन के केंद्र में महिलाएं व उनसे जुड़ी हुई समस्याएं ही अधिक हैं। वे अन्य विषयों पर सशक्त लेखन नहीं कर सकतीं, परंतु मन्नू भंडारी ने इस धारणा को ध्वस्त किया और उनकी कलम से ‘महाभोज’ जैसी राजनीति से जुड़ी कृति की रचना हुई। हिंदी साहित्य में महिला रचनाकारों की स्थापित छवि को मन्नू भंडारी जैसी रचनाकारों ने अपनी लेखनी से तोड़ा और आज यह माना जाने लगा है कि महिला रचनाकार किसी भी विषय पर उसी बेबाकी और परिपक्वता के साथ साहित्य सृजन कर सकती हैं।

    स्त्री विषयक के अलावा आजादी के बाद उपजे मोहभंग पर किया लेखन

    कोई भी गंभीर साहित्यिक लेखन एक परिपक्वता की मांग करता है। स्त्री विषयक लेखन में केवल स्त्री समस्याओं को गिना भर देना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। मन्नू भंडारी केवल स्त्री विषयक समस्याओं को ही नहीं गिना रही थीं, अपितु जब समाज धीरे-धीरे आजादी के बाद उपजे मोहभंग को महसूस करने लगा था, सामाजिक समस्याएं विकराल रूप धारण किए हुए हमारे सामने उपस्थित हो रही थीं, तब वह अपने लेखन से हिंदी साहित्य में वह सब कुछ उकेरने में लगी हुई थीं। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर बड़ी मजबूती से और साधिकार कलम चलाई। उन्होंने बहुत बेबाक और मजबूत स्त्री छवि को गढ़ा है। उनके द्वारा गढ़ी गईं स्त्रियां भविष्य के लिए एक उदाहरण के स्वरूप सामने आईं। लोगों ने उन स्त्री पात्रों से सीखकर स्त्री होने के मतलब को समझा। वर्तमान समय में स्त्री कथा लेखन का जो परिवेश निर्मित हुआ है उसके निर्माण में मन्नू भंडारी की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महिला और स्त्री विषयक लेखन के दायरे को अपनी रचनात्मकता से विस्तृत करती हुईं, उसे सामाजिक और राजनीतिक फलक तक ले जाने वाली मन्नू भंडारी सदैव अपने पाठकों के बीच विचारों के पैनेपन तथा कला की सूक्ष्मता के लिए जानी जाती रहेंगी।

    (लेखक दिल्ली विवि. में प्राध्यापक हैं)