यहां रावण को मानते हैं पूर्वज, होती है पूजा; मेघनाद की याद में लगता है मेला
यहां रावण को आमंत्रण भेजा जा रहा है और मेघनाद की याद में मेले सजे हुए हैं।
बैतूल, (शैलेंद्र सिंह राजपूत/आशीष मिश्रा/उत्तम मालवीय)। धार्मिक मान्यताओं में रावण और मेघनाद को भले ही राक्षस और खलनायक के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन सतपुड़ा अंचल में इन दिनों रावण को आमंत्रण भेजा जा रहा है और मेघनाद की याद में मेले सजे हुए हैं।
महाराष्ट्र सीमा से सटे मप्र के छिंदवाड़ा, बैतूल और सिवनी जिले के कई गांवों में होली के दूसरे दिन से मेघनाद मेला शुरू हो जाता है जो पांच दिन तक चलता है। मान्यताओं के मुताबिक इस इलाके में बसने वाली कोरकू जनजाति रावण को अपना पूर्वज मानती आई है और रावण के पुत्र मेघनाद को वह अपना रक्षा करने वाला मानती है।
मेघनाथ खंब में झूलते हैं भक्त
छिंदवाड़ा के उमरेठ और बैतूल जिले के टिकारी के मेघनाद मेले काफी प्रसिद्घ हैं और यहां महाराष्ट्र से भी लोग पहुंचते हैं। मेला स्थल आमतौर पर गांव के बीचो-बीच होता है। जहां एक चबूतरे पर देवी-देवताओं का मंदिर होता है और इसी चबूतरे पर 25 से 40 फीट तक के पेड़ के तने का एक खंभा गड़ा होता है जिसे मेघनाद खंब कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे खंडेरा बाबा भी कहा जाता है। इस खंब के ऊपर एक आडी लकड़ी बंधी होती है, जिसे रस्सी से बांध कर नीचे से चारों तरफ घुमाया जा सकता है इसे गल कहते हैं। लोग इस देवस्थान पर मन्नत मांगते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे 25 से 40 फीट ऊंची लकड़ी पर अपने आप को बंधवा कर चारों तरफ झूलते हैं। इस तरह वे मेघनाद को धन्यवाद देते हैं।
रावण से जुड़ी कई किंवदंतियां
सतपुड़ा के इस अंचल में रावण से जुड़ी कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। छिंदवाड़ा जिले में तामिया के पास पातालकोट को अहिरावण के पाताललोक से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि अहिरावण राम और लक्ष्मण का अपहरण कर पातालकोट में ही लाया था। इस इलाके में कई गांवों के नाम रावण के नाम पर हैं। उमरेठ में निकुम्बला देवी की पूजा भी जाती है जो मेघनाद की आराध्य देवी मानी जाती हैं। मेघनाद मेले का सीधा संबंध फसल की अच्छी पैदावार और देवताओं से आशीर्वाद लेने से है। मेघनाद के प्रति यहां सदियों से लोगों में आस्था रही है।
स्थानीय परंपराओं के जानकार अधिकारी आदिवासी लोककला एवं संस्कृति के पूर्व सर्वेक्षण बसंत निर्गुणे ने बताया कि प्रकृति पूजा का प्रतीक मेघनाद मेलों का संबंध कोरकू और भारिया जनजाति से है, जो अपने आप को रावण का वंशज मानती है। इनके लोकगीतों में भी रावण का बहुत उल्लेख मिलता है। प्रकृति पूजक ये जाति अच्छी फसल के लिए और अपनी विपदाएं दूर करने के लिए इन मेलों का आयोजन करती है।
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