World Trauma Day 2019: आज के समय में महामारी है ट्रॉमा की बीमारी, हो जाएं सावधान
World Trauma Day 2019 विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ट्रॉमा विश्व भर में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आज की भागमभाग जिंदगी में बीमारियों का कुछ पता नहीं चल पाता है वो किसी भी समय, किसी भी उम्र में और कभी भी हो सकती है। अब वो जमाना नहीं रहा जब एक निश्चित उम्र के बाद ही तमाम तरह की बीमारियों से लोग परेशान होते थे। अब बच्चों की आंखों पर भी चश्मा लगा देखने को मिलता है और सीनियर सिटीजनों की आंखों पर भी मोटा फ्रेम लगा दिखता है। 40 साल की उम्र के युवाओं को भी हार्ट अटैक हो रहा है और 65 साल के सीनियर सिटीजन को भी। चाहे पुरुष हो, महिला या बच्चे बीमारियों की कोई उम्र नहीं रह गई है। इसी तरह से ट्रामा भी है। इसकी भी कोई उम्र नहीं है। आज हम आपको बताएंगे क्या होता है ट्रामा? अक्टूबर माह में कब मनाया जाता है? क्या होते हैं इसके लक्षण और क्या हैं बचाव के उपाय?
कब मनाया जाता है विश्व ट्रॉमा दिवस
हर साल पूरी दुनिया में 17 अक्तूबर को विश्व ट्रॉमा डे मनाया जाता है। इसे आधुनिक युग यानि आज के दौड़भाग वाले जीवन की महामारी भी कहा जा रहा है। यह दिन हमें ये बताता है कि दुर्घटनाओं, चोटों और मानसिक बीमारियों की दर लगातार बढ़ती जा रही है। World Health Organization(विश्व स्वास्थ्य संगठन) का कहना है कि ट्रॉमा विश्व भर में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है। अगर लोगों को मुश्किल परिस्थितियों में इससे निबटने के उपायों के बारे में ठीक तरह से जानकारी मिल जाए और उनको इससे निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए तो काफी हद तक इन मौतों और विकलांगता को रोका जा सकता है। इस तरह की मौतों पर अंकुश न लग पाने का सबसे बड़ा कारण लोगों को इसके बारे में जरूरी प्रशिक्षण न होना भी है।
क्या होता है ट्रॉमा?
आज के समय में भी ट्रॉमा शब्द से बहुत अधिक लोग परिचित नहीं है। जबकि मेडिकल टर्म में इसका चलन बढ़ता जा रहा है। आज अचानक से कई सारी ऐसी चीजें हो जाती है जो लोगों के दिलोदिमाग पर ऐसा असर डालती हैं कि वो किसी न किसी तरह से बीमारी के शिकार हो जाते हैं। इसी को ट्रॉमा नाम दिया गया है। दूसरे शब्दों किसी भी व्यक्ति को अचानक से लगने वाले गहरे आघात या क्षति को ट्रॉमा कहते है।
क्या होती है ये बीमारी
ये सामान्य बीमारी नहीं है। इसके सामान्य लक्षण भी नहीं होते हैं। इस बीमारी में गहरा आघात, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक जैसे किसी भी रूप में हो सकती है। ट्रॉमा के अलग-अलग कारण होते हैं। शारीरिक ट्रॉमा का मतलब है शरीर को कोई भी क्षति पहुंचना। ये सड़क दुर्घटना, आग, जलना, गिरना, हिंसा की घटनाएं, प्राकृतिक आपदाएं आदि चीजों से हो सकती है।
सड़क दुघर्टना प्रमुख कारण
इन सब कारणों के अलावा पूरे विश्व में ट्रॉमा का सबसे प्रमुख कारण सड़क दुघर्टनाएं है। मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा का कारण शारीरिक और मानसिक चोट, कोई रोग या सर्जरी हो सकता है लेकिन कई बार बिना कोई शारीरिक क्षति हुए भी लोग भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा के शिकार हो जाते हैं। यदि किसी को परिवार के किसी खास सदस्य से लगाव होता है और अचानक से उसका साथ छूट जाता है तो ये एक तरह से भावनात्मक ट्रॉमा होता है।
ट्रॉमा की स्थिति से कैसे आ सकते बाहर?
दरअसल कई बार ऐसा होता है कि यदि हमारा कुछ आर्थिक या मानसिक नुकसान हो जाएं तो हम उसे दिलोदिमाग में बिठा लेते हैं, उसी के बारे में सोचते रहते हैं। ये स्थिति खतरनाक हो जाती है। इससे व्यक्ति ट्रॉमा में चला जाता है। इस स्थिति से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका है कि हमेशा यही मानना चाहिए कि जो हुआ वो हुआ, उसे तो आप बदल नहीं सकते हैं लेकिन आप फिर से नॉर्मल जिंदगी जीने की कोशिश करें। यदि कोई एक चीज चली गई है तो दूसरी आपके पास आएगी। यदि आप एक चीज में ही मन लगाए रहेंगे या उसी के साथ अपने को बांधे रखेंगे तो आपको आने वाले समय में नुकसान ही होगा। इसलिए इन बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।
यदि कोई व्यक्ति ट्रॉमा से पीड़ित है तो उसके शारीरिक लक्षण ऐसे दिखाई देंगे
- क्रोध, चिड़चिड़ापन और मूड में बदलाव
- शर्म महसूस करना
- निराशा और उदासी
- अकेलेपन का अहसास
- चिंता और डर
- नींद की कमी
- चौंकना
- दूसरों की तुलना में कम महसूस करना
- अविश्वास
- भावनात्मक आघात
आज ही से रोजाना ये काम करें
- वैसे तो किसी भी सदमे से उबरने में समय लगता है। लेकिन अगर काफी समय बीतने के बावजूद सदमे से उबर नहीं पा रहीं तो तुरंत किसी डॉक्टर से संपर्क करें।
- कॉमेडी फिल्में और शो देखें। चुटकले पढ़ें, सुनें और सुनाएं।
- 7-8 घंटे की नींद लेने की कोशिश करें।
- शराब और धूम्रपान के सेवन से बचें।
- जितनी जल्दी हो सकें, अपनी दिनचर्या बनाएं।
- कम से कम 30 मिनट डीप ब्रीदिंग, योग और मेडिटेशन करें।
- परिवार के सदस्यों, मित्रों से इस बारे में बात करें।
- परिवार के साथ बिताएं।
- खुद को पॉजिटिव रखें।
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