DATA STORY: इन सात मानकों में सुधार से कोरोना के बाद बेहतर होंगे भारत के शहर, WEF की रिपोर्ट
हालिया अध्ययन से पता चलता है कि जब मुंबई जैसे शहरों में कोरोना ने चोट पहुंचाई तो सबसे ज्यादा हॉटस्पॉट अनौपचारिक बस्तियां बने या फिर जो इलाके उनके पास थे। यहां पर सार्वजनिक जगहें कम थीं और भीड़ ज्यादा। यानी झुग्गियों के कारण भी कोरोना महामारी में तेजी आई।

नई दिल्ली, जेएनएन। दुनिया की आधी आबादी शहरों में रहती है और 80 फीसद वैश्विक जीडीपी भी शहरों में पैदा होती है। भारत की जीडीपी में भी शहरों की हिस्सेदारी 70 फीसद है, लेकिन कोरोना महामारी शहरों के लिए मारक साबित हुई है। पर यही महामारी भारत की शहरी यात्रा के लिए टर्निंग प्वाइंट भी साबित हो सकती है। बस जरूरत है कि हम सही सीख लें और इसके आधार पर जरूरी बदलाव करें। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की नई रिपोर्ट में दावा किया गया है। रिपोर्ट का नाम है- इंडियन सिटीज इन पोस्ट पैंडेमिक वर्ल्ड।
चुनौती क्या है
हालिया अध्ययन से पता चलता है कि जब मुंबई जैसे शहरों में कोरोना ने चोट पहुंचाई तो सबसे ज्यादा हॉटस्पॉट अनौपचारिक बस्तियां बने या फिर जो इलाके उनके पास थे। यहां पर सार्वजनिक जगहें कम थीं और भीड़ ज्यादा। यानी झुग्गियों के कारण भी कोरोना महामारी में तेजी आई। इससे पहले गरीबी में जीवन जी रहे लोगों पर अतिरिक्त स्वास्थ्य खर्च का बोझ पड़ा। रिपोर्ट कहती है कि इन कारणों से ही हमें बेहतर शहर बनाने होंगे, ताकि नागरिकों को अच्छा जीवन मिले और इससे आर्थिक विकास भी तेज होगा।
सात मानकों पर तैयार हुई रिपोर्ट
यह रिपोर्ट सात मानकों के आधार पर तैयार की गई है- सिटी प्लानिंग, हाउसिंग, ट्रांसपोर्ट, पब्लिक हेल्थ, एनवायरमेंट, जेंडर और कमजोर आबादी। इन सात सेक्टरों की चुनौतियों का विश्लेषण कर बताया गया है कि भविष्य में भारतीय शहरों में किन बदलावों की जरूरत है। डब्ल्यूईएफ की एक कमेटी के प्रमुख विराज मेहता और आईडीएफसी इंस्टीट्यूट की निदेशक प्रीतिका हिंगोरानी ने यह रिपोर्ट तैयार की है।
अब शहरों को कैसे बनाना होगा
1. प्लानिंग
सिटी प्लान करने वालों को ट्रेनिंग देने की जरूरत है, ताकि जमीन का खराब इस्तेमाल न हो और कृत्रिम कमी न हो। शहरों में फ्लोर स्पेस बढ़ाने की सलाह दी गई है। बताया गया है कि भविष्य में शहरों का विकास उर्ध्वाधर होगा। इमारत, ट्रेन और गलियों में भीड़ कम करने, शहरी विस्तार का प्रबंधन बेहतर करने और स्थानीय निकायों को ज्यादा अधिकार देने की जरूरत है।
2. हाउसिंग
सुरक्षित, किफायती आवास का निर्माण करें। सार्वजनिक आवास और लैंड टेन्योर को प्रोत्साहित करना। घनत्व के प्रबंधन के लिए दमनकारी नियमों को संशोधित करें।
3. ट्रांसपोर्ट
शहर की जरूरत के हिसाब से यातायात के साधन उपलब्ध कराए जाएं। निजी कार कम, बेहतर सार्वजनिक यातायात, एकीकृत सार्वजनिक परिवहन पर जोर हो।
4. जन स्वास्थ्य
शहर के शासन-प्रशासन के पास ज्यादा आर्थिक और राजनीतिक अधिकार हों, जिससे वे अपने लिए राजस्व जुटा सकें और खर्च कर सकें। हेल्थकेयर सर्विस का रियल टाइम डाटा हो, जिससे डिमांड और सप्लाई की सटीक जानकारी हो। ट्रेंड स्वास्थ्य कर्मी और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर हो।
5. वातावरण
वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले कारकों की पहचान करें। ऐसी योजना बनाएं, जिससे इसमें कमी आए। शहर में ओपेन स्पेस बनाएं और उन्हें संरक्षित करें। शहर में ऐसी गलियां और सड़कें बनाएं, जिनसे लोग और वस्तुओं का आवागमन तेज हो।
6. जेंडर
शहर के हर हिस्से में बदलाव लाते समय जेंडर को ध्यान में रखा जाए। महिलाओं और अन्य विविध समूह की भागीदारी, योजनाकारों, निर्णय, निर्माताओं और शहर नियोजन में इजाफा हो। नागरिकों की आवाज को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। महिलाओं की सुरक्षा और उनके यातायात का ध्यान रखा जाए। साफ-सुथरे सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
7. कमजोर आबादी (वल्नर्रेबल पॉपुलेशन)
शहरों में ज्यादा सर्वे किए जाएं, जिससे शहर में रहने वाले हर वर्ग को समझने में मदद मिले। रियल टाइम आधार पर पता चल सके कि किसे कौन सी सुविधा मिल रही है। दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासियों की मदद की योजनाएं चलाई जाएं। अनौपचारिक बस्तियों में भी बिजली और पानी की सुविधा मुहैया कराई जाए। झुग्गियों को बेहतर बनाया जाए या वहां रहने वाले लोगों को कहीं और औपचारिक घरों में बसाया जाए। राशन कार्ड के जरिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
इन आंकड़ों से शहरों को समझें
-31 फीसद भारतीय आबादी शहरों में रहती है
-50 फीसद से 65 फीसद के बीच है, यह आंकड़ा, कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय परिभाषाओं के आधार पर
-25 से 30 प्रवासी हर मिनट गांव से शहरों में आ जाते थे, कोविड से पहले
-2.5 करोड़ शहरी परिवार बाजार मूल्य पर घर नहीं खरीद सकते हैं
-35 फीसद हैं घर नहीं खरीद सकते वाले परिवार
-1.7 करोड़ परिवार इनमें से झुग्गी में रहते हैं
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