जागरण प्राइम, नई दिल्ली। भारत इस वर्ष पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के विकास की धुरी बनेगा। भारत की तेज ग्रोथ के चलते दक्षिण एशियाई क्षेत्र की विकास दर 2023 में 5.5% रहने के आसार हैं। 2024 में यह 5.8% तक जा सकती है। यह ग्रोथ रेट अन्य क्षेत्रों से अधिक होगी। लेकिन अगर भारत को हटा दें तो दक्षिण एशियाई क्षेत्र की विकास दर 2023 में सिर्फ 3.6% और 2024 में 4.6% रह जाएगी। इसका कारण पाकिस्तान होगा जिसकी ग्रोथ 2022-23 में सिर्फ 2% रहने की आशंका है। हालांकि अन्य पड़ोसी देशों की स्थिति भी चिंताजनक है।

वर्ल्ड बैंक ने मंगलवार को जारी ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स’ में भारत की ग्रोथ रेट 2021-22 के 8.7% की तुलना में 2022-23 में 6.9% रहने की संभावना जताई है। ग्लोबल इकोनॉमी में सुस्ती और अनिश्चितता बढ़ने से यहां निर्यात और निवेश दोनों पर असर होगा। फिर भी सात बड़े उभरते और विकासशील देशों में भारत की विकास दर सबसे तेज रहेगी। 2023-24 में यहां की ग्रोथ 6.6% रहने की उम्मीद है। वर्ल्ड बैंक से पहले भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने 2022-23 में 7% विकास का अनुमान जताया था। आईएमएफ (IMF) ने अक्टूबर में 2023 के लिए भारत का विकास अनुमान घटाकर 6.1% और विश्व का 2.7% किया था।

दक्षिण एशिया के उत्पादन में तीन-चौथाई भारत का

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक दक्षिण एशियाई क्षेत्र के उत्पादन में तीन-चौथाई हिस्सा भारत का है। 2022-23 की पहली छमाही में यहां विकास दर 9.7% थी। निजी खपत और निवेश बढ़ने की दर काफी मजबूत रही। भारत में मौद्रिक और राजकोषीय सख्ती भी दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में कम रहने की संभावना है। यहां सरकार ने अभी तक जो नीति अपनाई है उससे अर्थव्यवस्था को रिकवरी में मदद मिलेगी और सार्वजनिक निवेश बढ़ेगा।

भारत के लिए 2023 की संभावनाओं पर रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी ने कहा था, “हमारे कॉरपोरेट सेक्टर की सेहत काफी अच्छी है। उन पर कर्ज ज्यादा नहीं है, इसलिए कंपनियां निवेश कर सकती हैं। निवेश के लिए उन्हें बैंकों से कर्ज चाहिए और अभी बैंकिंग सेक्टर का एनपीए बहुत कम है। उनके पास पर्याप्त पूंजी भी है।”

पड़ोसी देशों में स्थिति चिंताजनक

भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान के बारे में वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि वह भीषण आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है। अगस्त में आई बाढ़ ने खेती को काफी नुकसान पहुंचाया। वहां की जीडीपी में खेती का योगदान 23% और रोजगार में 37% है। श्रीलंका में भी स्थिति संकटपूर्ण बनी हुई है। सरकार के पास विदेशी मुद्रा खत्म हो गई। उसके पास खाद्य पदार्थ और ईंधन आयात करने के अलावा कर्ज लौटाने के भी पैसे नहीं बचे। 2022 में श्रीलंका की जीडीपी 9.2% घटने का अंदेशा है। वहां अब भी लोग खाद्य पदार्थ, ऊर्जा और मेडिकल सप्लाई की किल्लत झेल रहे हैं। बदलती वैश्विक परिस्थितियों से बांग्लादेश को भी नुकसान हुआ और देश ऊर्जा की घरेलू जरूरतें पूरी करने में नाकाम रहा। कच्चा तेल महंगा होने के कारण औद्योगिक उत्पादन में भी गिरावट आई।

कॉरपोरेट डिफॉल्ट भी बढ़ने की आशंका

सिर्फ 6 महीने पहले ग्लोबल इकोनॉमी के 2023 में 3% बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन उसके बाद स्थिति इतनी बिगड़ी कि अब इस वर्ष दुनिया की ग्रोथ सिर्फ 1.7% रहने के आसार हैं। यह बीते तीन दशकों में, 2009 के आर्थिक संकट और 2020 के कोविड-19 संकट के बाद, सबसे कम ग्रोथ होगी। गिरावट विश्व के सभी क्षेत्रों में है। इसका कारण रिकॉर्ड महंगाई को रोकने के लिए अपनाई गई सख्त मौद्रिक नीति, लगातार बिगड़ती आर्थिक परिस्थितियां और रूस-यूक्रेन युद्ध का लंबा खिंचना है। आगे ज्यादा महंगाई, सख्त मौद्रिक नीति और कमजोर आर्थिक हालात जैसे नकारात्मक झटके लगे अथवा भू-राजनीतिक तनाव बढ़ा तो विश्व अर्थव्यवस्था फिर मंदी में जा सकती है।

वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि अमेरिका, यूरो क्षेत्र और चीन तीनों की अर्थव्यवस्था में कमजोरी है। इसके नतीजे उभरते और विकासशील देशों पर भी पड़ रहे हैं। धीमी ग्रोथ, सख्त फाइनेंशियल परिस्थितियों और ज्यादा कर्ज से निवेश तो कम होगा ही, कॉरपोरेट डिफॉल्ट भी बढ़ने की आशंका है।

छोटे देशों के लिए संकट ज्यादा है क्योंकि विदेश व्यापार और फाइनेंसिंग के सीमित अवसरों के साथ वहां प्राकृतिक आपदा से नुकसान की आशंका अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरते और विकासशील देशों को ऐसी नीतियां अपनाने की जरूरत है जिनसे निवेश बढ़े। उन देशों को कृषि तथा ईंधन सब्सिडी पर दी जाने वाली अनावश्यक सब्सिडी जैसे मौजूदा खर्च को भी बदलने की जरूरत है। नीतिगत स्तर पर कुछ करने की गुंजाइश बहुत कम है, इसलिए नीति निर्माताओं को यह देखना चाहिए कि आर्थिक मदद कमजोर वर्ग के लिए लक्षित हो।

एमएसएमई की संस्था फिस्मे के महासचिव अनिल भारद्वाज के मुताबिक लेदर, गारमेंट, जेम्स एंड ज्वैलरी जैसे कंज्यूमर सेगमेंट की इकाइयां जिन देशों को निर्यात करती हैं, वे मंदी की तरफ बढ़ रही हैं। इसलिए उन इकाइयों का बिजनेस प्रभावित हुआ है। वे सेक्टर भी प्रभावित हुए हैं जो दूसरे देशों के इंडस्ट्रियल सेक्टर को निर्यात करते हैं, क्योंकि मांग कम होने से वहां इंडस्ट्री ने भी उत्पादन घटाया है।

2024 में भी आमदनी बढ़ने की दर कम रहेगी

विश्व बैंक के अनुसार कोविड-19 से पहले एक दशक में प्रति व्यक्ति आय जिस गति से बढ़ रही थी, 2023 में उसके बढ़ने की गति उससे कम ही रहेगी। यह स्थिति 2024 में भी रहने के आसार हैं। महंगाई, मुद्रा की कीमत में गिरावट और निजी निवेश कम होने के चलते लोगों की आमदनी कम हो रही है। उभरते और विकासशील देशों में अगले 2 वर्षों के दौरान प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 2.8% बढ़ने की उम्मीद है। यह 2010 से 2019 के औसत से 1% कम है। कमजोर और युद्ध की मार झेल रहे देशों में 2024 तक प्रति व्यक्ति औसत आय घट जाने की आशंका है। सहारा अफ्रीका में दुनिया के 60% गरीब रहते हैं। वहां प्रति व्यक्ति आय अगले 2 वर्षों के दौरान सिर्फ 1.2% बढ़ने के आसार हैं। आमदनी बढ़ने की इस दर से वहां गरीबी घटने के बजाय और बढ़ेगी।

अनेक गरीब देशों के लिए स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। वहां गरीबी घटने की दर पहले ही थम चुकी है। उभरते और विकासशील देशों पर कर्ज 50 वर्षों के सबसे ऊंचे स्तर पर है। रूस-यूक्रेन युद्ध इन देशों को और प्रभावित कर रहा है। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी समस्याओं से जूझ रहे इन देशों के पास लोगों पर खर्च करने के पैसे नहीं हैं।

निवेश वृद्धि दो दशकों के औसत के आधे से भी कम

उभरते और विकासशील देशों में कुल निवेश 2022 से 2024 के दौरान सिर्फ 3.5% बढ़ने की संभावना है। यह बीते दो दशकों के औसत के आधे से भी कम है। सभी प्रमुख देश ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, इससे विकासशील देशों की पूंजी विकसित देशों में चले जाने के आसार बन रहे हैं। निवेश कम होने से इन देशों में विकास कार्य ठहर जाने की आशंका है। लोगों की आमदनी भी पर्याप्त नहीं बढ़ेगी, न ही वे देश कर्ज लौटाने की स्थिति में होंगे।

2023 में ऊर्जा, कृषि उत्पाद और मेटल सस्ते होंगे

ऊर्जाः ऊर्जा की कीमतें 2023 में कम रहेंगी, लेकिन पिछले अनुमानों से ज्यादा होंगी। कच्चे तेल का औसत दाम 88 डॉलर प्रति बैरल होगा। यह पिछले अनुमान से 4 डॉलर कम है। हालांकि विश्व अर्थव्यवस्था, खासकर यूरोप में कमजोरी से मांग में कमी के कारण ऐसा होगा। इसी वजह से प्राकृतिक गैस के दाम इस वर्ष कम रहेंगे। चीन और भारत में उत्पादन बढ़ने से कोयले की कीमतों में भी गिरावट आएगी।

कृषि उत्पादः कृषि उत्पादों के दाम 2022 में औसतन 13% बनने के बाद 2023 में 5% घटने के आसार हैं। ज्यादा उत्पादन और इनपुट लागत, खासकर उर्वरकों के दाम घटने के कारण ऐसा होगा। इसके बावजूद दाम महामारी से पहले के स्तर से ज्यादा ही रहेंगे। प्राकृतिक गैस के दाम में अगर वृद्धि होती है तो उर्वरक महंगे होंगे। यूरोप में कई फर्टिलाइजर इकाइयां बंद होने का भी कीमतों पर प्रभाव पड़ेगा।

मेटलः मेटल के दाम ग्लोबल ग्रोथ धीमी होने के चलते 15% घटने के आसार हैं। चीन के प्रॉपर्टी बाजार में कमजोरी से मेटल की मांग कम होगी। हालांकि रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर से मेटल की मांग बढ़ने की उम्मीद है। ईंधन अगर महंगे हुए तो मेटल के दाम बढ़ेंगे।

खाद्य सुरक्षा और महंगाई की चुनौती

खाद्य सुरक्षाः उभरते और विकासशील देशों की यह अहम चुनौती होगी। पिछले साल अनेक देशों ने खाद्य पदार्थों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया। परिणामस्वरूप 2022 में 22 करोड़ लोगों के सामने खाद्य सुरक्षा का संकट पैदा हुआ। खाने-पीने की चीजें महंगी हुई तो यह संख्या 2023 में और बढ़ेगी।

महंगाईः 2022 में लगभग सभी देशों में महंगाई बढ़ी। ग्लोबल महंगाई का औसत साल की दूसरी छमाही में 9% को पार कर गया। यह 1995 के बाद सबसे ज्यादा है। उभरते और विकासशील देशों में महंगाई दर 10% के आसपास रही जो 2008 के बाद सबसे अधिक है। विकसित देशों में भी यह 9% को पार कर गई, जो 1982 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है।

अर्थशास्त्री और मैनेजमेंट कंसल्टेंट नयन पारिख के अनुसार महंगाई के कारण गरीबों को ज्यादा परेशानी होती है। इसे काबू में लाने के लिए ब्याज दर बढ़ाने पर मनी सप्लाई कम होती है। ऐसे में महंगाई को कम रखते हुए जीडीपी ग्रोथ बढ़ाने की चुनौती है। सरकार मनी सप्लाई जितना सख्त करेगी लोगों के हाथ में पैसा उतना कम रहेगा। इससे डिमांड घट रही है। बड़ी एफएमसीजी कंपनियों को देखें तो उनके टर्नओवर में वृद्धि दाम बढ़ने की वजह से हुई है, मात्रा के लिहाज से बिक्री या तो पहले जितनी है या कम हुई है। अर्थात उनका टर्नओवर महंगाई के कारण बढ़ा है।

वर्ल्ड बैंक प्रमुख के 5 सुझाव

वर्ल्ड बैंक ग्रुप के प्रेसिडेंट डेविड मालपास के अनुसार मौजूदा हालात में पांच महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। उभरते और विकासशील देशों में लोगों की आमदनी बढ़ाने के लिए ये कदम जरूरी हैं।

नई नौकरियां और उत्पादन बढ़ाने के लिए ज्यादा निवेशः उभरते और विकासशील देशों को तत्काल ऐसी नीतियां बनानी पड़ेंगी जिनसे नया निवेश आकर्षित हो। सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों की जरूरत है। उन्हें ऐसी राजकोषीय और मौद्रिक नीतियां अपनानी होंगी जिनसे ग्रोथ और औसत आमदनी बढ़ाने तथा गरीबी घटाने में मदद मिले।

बिजनेस के वातावरण में सुधारः कम आय वाले देश इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए सार्वजनिक-निजी साझीदारी पर निर्भर करते हैं। उन देशों में एक मजबूत रेगुलेटरी ढांचा स्थापित करना जरूरी है। इन देशों में भ्रष्टाचार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर अंकुश निवेश में बड़ी बाधा है। बिजनेस स्टार्टअप की लागत कम करने से उन्हें मदद मिल सकती है।

कर्ज के मामले में ज्यादा पारदर्शिताः कर्ज संकट वाले देशों में गरीब देशों का हिस्सा बढ़ रहा है। इसके समाधान में देरी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए जरूरी है कि कर्ज रिस्ट्रक्चरिंग की प्रक्रिया तेज की जाए।

पर्यावरण और विकास का इंटीग्रेशनः यह इस तरह किया जाना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोग ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकें, साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोतों को अपनाया जा सके। इसके लिए क्लाइमेट एडेप्टेशन में निवेश बढ़ाना जरूरी है।

सीमा पार व्यापार बढ़ानाः प्रोडक्ट और बाजार को डायवर्सिफाई करने, ट्रेड फाइनेंस तथा व्यापार व सुविधाओं को मजबूत करने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास की जरूरत है। सरकारों को आयात के साथ निर्यात पर भी मनमानी बाधाएं दूर करनी पड़ेंगी। हाल में खाद्य पदार्थों और उर्वरकों के निर्यातक पर जो प्रतिबंध लगाए गए, उस तरह के संरक्षणवादी रवैये से बचना पड़ेगा।