Women Safety: सरकारी बसों में महिलाओं को क्यों सताता है इस बात का डर, रिपोर्ट में सामने आई चौंकाने वाली बात
एसोसिएशन आफ स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स के सर्वेक्षण के अनुसार, सार्वजनिक बसों में यात्रा करते समय महिलाओं को उत्पीड़न का डर सताता है। दिल्ली, पुणे, बेंगलुरु और चेन्नई में किए गए सर्वेक्षण में सुरक्षा संबंधी चिंताएं, उत्पीड़न और खराब बुनियादी ढांचा जैसे मुद्दे सामने आए। विशेषज्ञों ने बसों और स्टॉप को व्यवस्थित करने, बसों की संख्या बढ़ाने और सुरक्षा उपायों को लागू करने का सुझाव दिया है।

बसों में महिलाओं के उत्पीड़न का डर।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। महिला सुरक्षा और नारी सशक्तीकरण पर देश में बातें बहुत होती हैं, लेकिन सार्वजनिक बस परिवहन के मामले में यह प्रयास काफी पीछे छूट गए हैं। एसोसिएशन आफ स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स (एएसआरटीयू) के ताजा सर्वेक्षण में यह चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं कि बसों में सफर करने में महिलाओं को उत्पीड़न का डर सताता है।
सिर्फ महिला यात्री ही नहीं, चालक या परिचालक की भूमिका में इस क्षेत्र को रोजगार के विकल्प के रूप में चुनने वाली महिला कर्मचारियों को भी असुरक्षा, असुविधा और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। संस्था के साथ जुड़े विशेषज्ञों ने परिस्थितियों में बदलाव के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं।
बसों में महिलाओं के उत्पीड़न का डर
इंडो-जर्मन ग्रीन अर्बन मोबिलिटी पार्टनरशिप के तहत आइटीडीपी इंडिया और जीआइजेड इंडिया नामक संस्थाओं के साथ सर्वे कर एएसआरटीयू ने भारत में सार्वजनिक परिवहन के कर्मचारियों और उपयोगकर्ताओं के रूप में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण किया है।
इसके तहत चार प्रमुख शहरों- दिल्ली, पुणे, बेंगलुरु और चेन्नई में महिला बस ड्राइवरों, कंडक्टरों और मैकेनिकों के साथ समूह चर्चाओं के प्रमुख निष्कर्ष और 46 शहरों में किए गए नागरिक सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं को अनूठी चुनौतियों का मुद्दा उभर कर सामने आया है। इसमें प्रमुखत: सुरक्षा संबंधी चिंता, उत्पीड़न, खराब बुनियादी ढांचा और रोजगार की असमानताएं शामिल हैं।
सुरक्षा संबंधी बढ़ी चिंताएं
इस सर्वेक्षण में सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनकर उभरी है। सर्वेक्षण में शामिल 30 प्रतिशत महिलाओं को रास्ते में, स्टेशन पर या वाहनों के अंदर उत्पीड़न या चोरी का सामना करना पड़ा, जबकि आठ प्रतिशत ने असभ्य कर्मचारियों और लापरवाही से गाड़ी चलाने की शिकायत की।
सार्वजनिक परिवहन में असुविधा भी बड़ा विषय है। लगभग 41 प्रतिशत महिलाओं ने बस अड्डों या स्टापों पर और वाहनों के अंदर भीड़भाड़ को एक बड़ी चुनौती बताया। भीड़भाड़ वाले वाहनों में पर्याप्त स्थान की कमी से उत्पीड़न और अवांछित शारीरिक संपर्क का खतरा बढ़ जाता है, जिससे महिलाएं यात्रा के दौरान असुरक्षित महसूस करती हैं।
बुनियादी ढांचे की कमी
विशेषज्ञों का मत है कि सार्वजनिक परिवहन की सुविधा और विश्वसनीयता में सुधार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बसें और स्टाप व्यवस्थित हों। व्यस्त समय के दौरान लोड फैक्टर कुल क्षमता के 100 प्रतिशत से अधिक न हो। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के मानक के अनुसार बसों की संख्या बढ़ाकर प्रति लाख जनसंख्या पर 40-60 करना होगा और व्यस्त समय के दौरान कम से कम 35 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करनी चाहिए।
इसी तरह व्यस्त समय के दौरान प्रतीक्षा समय को पांच मिनट से कम और व्यस्त समय के बाद 10 मिनट से कम करना आवश्यक है।वहीं, डिपो और बस स्टाप पर पर्याप्त रोशनी, रीयल टाइम मानीट¨रग और कम से कम 30 दिनों तक फुटेज रखने के लिए कैमरे लगाना चाहिए।

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