Supreme Court: संविधान पीठों में लंबित 49 मुख्य मामलों के निपटने के साथ ही खत्म हो जाएगा 428 मुकदमों का बोझ
संविधान पीठों में लंबित मामले अगर तय हो जाएंगे तो उसमें शामिल कानूनी मुद्दे से जुड़े निचली अदालतों और हाई कोर्ट में लंबित न जाने कितने मुकदमे संविधान पीठों द्वारा दी गई व्यवस्था के आधार पर तय हो जाएंगे।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कानून संविधान के जटिल मुद्दों पर व्यवस्था देने के लिए है लेकिन वहां अपीलें, रिट, जनहित याचिकाएं और अन्य मामले इतने ज्यादा आते हैं कि संवैधानिक मामलों की सुनवाई का नंबर नहीं आ पाता। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठों में इस वक्त कुल 428 मामले लंबित हैं। जिनमें से 49 मुख्य मामले हैं और 379 संबंद्ध मामले हैं। ये मामले पांच, सात और नौ जजों की पीठ में वर्षों से सुनवाई की बाट जोह रहे हैं।
अगर संविधान पीठों में लंबित 49 मुख्य मामले निपट जाएंगे तो सभी लंबित 428 मुकदमे स्वत: निस्तारित हो जाएंगे क्योंकि बाकी केस मुख्य मामलों के साथ संलग्न हैं। भले ही 379 संबद्ध केस हों और 49 मुख्य मामलों में फैसला आने पर निपट स्वत: जाएं लेकिन सभी 428 मामलों के तथ्य और कहानियां भिन्न हैं।
हलाला तथा नागरिकता कानून जैसे मामले शामिल हैं
इन लंबित मामलों में महिलाओं के धार्मिक स्थलों में प्रवेश, दाउदी बोहरा समाज में महिलाओं का खतना, मुस्लिम आरक्षण, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा, विधानसभा व सदन के विशेषाधिकार और प्रेस की आजादी, मुसलमानों में प्रचलित निकाह हलाला तथा नागरिकता कानून जैसे मामले शामिल हैं। संविधान पीठ में कम से कम पांच न्यायाधीश होते हैं इसके बाद सात, नौ, 11, 13 या उससे अधिक जजों की पीठ भी जरूरत के मुताबिक बैठ सकती हैं। अभी जो मामले लंबित हैं वे पांच, सात और नौ जजों की पीठ के हैं।
संविधान पीठों में लंबित मामले अगर तय हो जाएंगे तो उसमें शामिल कानूनी मुद्दे से जुड़े निचली अदालतों और हाई कोर्ट में लंबित न जाने कितने मुकदमे, संविधान पीठों द्वारा दी गई व्यवस्था के आधार पर तय हो जाएंगे। इससे अदालतों में लंबित केसों में भी थोड़ी कमी आएगी। संविधान पीठों में लंबित मामलों पर नजर डाली जाए तो 278 मामले पांच जजों की पीठ में लंबित हैं जिनमें से 38 मुख्य और 240 संबद्ध केस हैं। सात जजों की पीठ में 15 केस लंबित हैं जिनमें से छह मुख्य और नौ संबद्ध मामले हैं। नौ जजों की पीठ में 135 मामले लंबित हैं जिनमें पांच मुख्य और 130 संबद्ध हैं।
लंबित कुछ महत्वपूर्ण मामलों को देखें तो नौ जजों की पीठ के समक्ष लंबित कन्तारू राजीवारू बनाम इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन का केस आता है। यह केस केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान मामले को नौ जजों को भेजते हुए केस का दायरा बढ़ा दिया था। इसमें महिलाओं के धार्मिक स्थलों में प्रवेश और संविधान के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का व्यापक मुद्दा शामिल कर दिया था।
इसी केस के साथ दाउदी बोहरा समाज में प्रचलित महिलाओं का खतना कराने की प्रथा को चुनौती देने का मामला भी संलग्न है। इस केस की प्रारंभिक सुनवाई में मामला नौ जजों को भेजे जाने से पहले कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि यह प्रथा महिलाओँ के अधिकारों का उल्लंघन करने वाली और कानून के खिलाफ है। सात जजों की पीठ में किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देने का संवैधानिक मुद्दा भी लंबित है।
यह केस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाम नरेश अग्रवाल के नाम से है जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा देने का मामला है। इसमें सवाल है कि अल्पसंख्यक दर्जा तय करने का आधार क्या होगा। यह भी मुद्दा है कि अल्पसंख्यक संस्थान के लिए क्या उस संस्थान को अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति द्वारा स्थापित करना जरूरी है या फिर प्रबंधन अल्पसंख्यक द्वारा किये जाने पर यह दर्जा मिलेगा।
नौ जजों की पीठों के केस फिलहाल लंबित
मुसलमानों में प्रचलित निकाह हलाला, मुता विवाह, नागरिकता अधिनियम और कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के मामले भी संविधान पीठ में लंबित हैं। जिन पर आने वाले फैसलों का व्यापक सामाजिक और राजनैतिक असर हो सकता है।
इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में जजों के सभी 34 पद भरे हैं। ऐसे में संविधान पीठों का गठन कर मामलों के निस्तारण में तेजी लाई जा सकती है। हालांकि आजकल संविधान पीठें मामलों की सुनवाई के लिए नियमित रूप से बैठ रही हैं लेकिन अभी सिर्फ पांच जजों की पीठें ही बैठ रही हैं सात और नौ जजों की पीठों के केस फिलहाल लंबित ही पड़े हैं।

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