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    भारत-अमेरिका रिश्तों में भरोसे की दरार क्यों, पहले तालिबान और पाकिस्‍तान; India से क्‍या चाहता है US?

    Updated: Mon, 09 Jun 2025 05:34 PM (IST)

    India-US Relations भारत और अमेरिका के रिश्ते रणनीतिक रूप से मजबूत होने के बावजूद भरोसे और स्थायित्व से दूर हैं। आखिर क्‍या वजह है कि रूस और भारत जैसे संबंध आज तक अमेरिका संग नहीं बन सके। अमेरिका को भारत की कौन-सी रणनीति पसंद नहीं है और उसका ऐसा क्‍या एजेंडा जिसे भारत कभी पूरा नहीं करेगा?

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    , India America strategic partnership: अमेरिका का दोहरा रवैया

    जागरण टीम, नई दिल्‍ली। भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्तों में शीत युद्ध के दौर का गहरा असर रहा है। उस दौर में भारत सोवियत संघ के करीब था, वहीं पाकिस्तान अमेरिका का करीबी सहयोगी था।

    सोवियत संघ के विघटन के बाद बदले हुए वैश्विक परिदृश्य में भारत-अमेरिका के बीच संबंध लगातार मजबूत हुए हैं। दोनों देशों के संबंध रणनीतिक भागीदारी के स्तर पर हैं। इसके बावजूद भारत-अमेरिका के रिश्तों में वह भरोसा और स्थायित्व नहीं दिखता है, जो रूस और भारत के रिश्तों में है। इसकी वजह अमेरिका का दोहरा रवैया है।

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    हाल में भारत आए अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने आपसी संबंधों को लेकर शिकायत की थी कि भारत रूस से हथियार खरीदता है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी संवेदनशीलता का ध्यान रखे, लेकिन वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर जुबानी जमा खर्च से ज्यादा कुछ नहीं करता है और पाकिस्तान को समय-समय पर हथियार व वित्तीय मदद भी देता है।

    पाकिस्तान इन हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता है। भारत-अमेरिका के रिश्तों में इस विरोधाभास की पड़ताल ही अहम मुद्दा है...

    भारत की कौन-सी रणनीति अमेरिका को पसंद नहीं?

    भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति अमेरिका और पश्चिमी देशों को चुभ रही है। रणनीतिक स्वायत्तता का मतलब है कि भारत खुद को किसी खेमे में नहीं बांधेगा और अपने राष्ट्रीय हितों के हिसाब से सभी देशों से बात करेगा।

    साल 2024 में रूस और यूक्रेन के युद्ध को लेकर भारत के रवैये पर आपत्ति जताते हुए भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गारसेटी ने कहा था कि संघर्ष के दौरान रणनीतिक स्वायत्तता नाम की कोई चीज नहीं होती है। संकट के समय भारत और अमेरिका को विश्वसनीय सहयोगी की तरह मिलकर काम करना चाहिए।

    रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान अमेरिका और यूरोप इस बात से असहज थे कि भारत ने रूस के हमले की निंदा नहीं की और वह उससे तेल खरीद रहा है।  अमेरिका को भारत और रूस के रक्षा संबंधों से भी दिक्कत है।

    पाकिस्तान में मिला ओसामा बिन लादेन

    साल 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 आतंकी हमले के लिए जिम्मेदारी आतंकी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका पूरी दुनिया में खोजता रहा। आखिरकार 11 वर्ष के बाद अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में खोजा और उसका खात्मा किया।

    पाकिस्तान वही देश है जो आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का करीबी साथी होने का दावा करता है। अमेरिका और पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि लादेन पाकिस्तान की सरकार और सेना के संरक्षण के बिना वहां छुपा नहीं रह सकता था, लेकिन अमेरिका सब कुछ जान कर भी चुप रह गया।

    इसकी वजह यह है कि उसे अपने हितों के लिए पाकिस्तान की जरूरत है और वह पाकिस्तान की सरकार व सेना को इस्तेमाल कर सकता है। इस लिहाज से पाकिस्तान उसके लिए मुफीद देश है।

    अमेरिका का कोई स्‍थायी मित्र या शत्रु नहीं है, केवल हित हैं। अमेरिका का दुश्‍मन होना खतरनाथ हो सकता है, लेकिन अमेरिका का दोस्‍त होना घातक है। -हेनरी किसंजर, पूर्व विदेश मंत्री, अमेरिका


    क्‍या है अमेरिका का एजेंडा?

    अमेरिका को एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत की जरूरत है। चीन एक जटिल पड़ोसी है। 2020 में गलवन में चीन और भारत की सेनाओं के बीच घातक झड़प हो चुकी है। उस समय अमेरिका ने सेटेलाइट और दूसरी खुफिया मदद भी भारत को मुहैया कराई थी। ऐसे में भारत को भी चीन के खिलाफ संघर्ष की सूरत में अमेरिका की जरूरत है।

     समस्या यह है कि अमेरिका चीन के खिलाफ भारत का इस्तेमाल करना चाहता है। खास कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में। इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका की पहल पर क्वाड नामक संगठन भी बना है। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत भी है। चीन इसे अपने खिलाफ खेमेबंदी के तौर पर देखता है। हालांकि, भारत क्वाड को सैन्य गठबंधन का रूप देने के खिलाफ रहा है।

    तालिबान का पितामह है अमेरिका

    अमेरिका अपने हितों के लिए किस हद तक जा सकता है। इसका एक दूसरा बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान का तालिबान है। सोवियत संघ की सेनाएं 1979 में कम्युनिस्ट सरकार के समर्थन में अफगानिस्तान में घुसी थीं।

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    अमेरिका ने सोवियत संघ को हराने के लिए स्थानीय गुरिल्ला लड़ाकों और पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ रहे छात्रों की प्रशिक्षण और हथियार दिए। बाद में इन्हीं मुजाहिद्दीन ने काबुल की सत्ता पर कब्जा कर लिया। इनको आज दुनिया तालिबान के नाम से जानती है।

    यही वह दौर था, जब पाकिस्तान ने इस्लामी आतंकवाद को पालना पोसना शुरू किया और बाद में इनका इस्तेमाल एक नीति के तहत भारत के खिलाफ किया। आतंक का यह इकोसिस्टम पाकिस्तान में आज भी मजबूत है और भारत पर लगातार हमले कर रहा है।

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