Monsoon: भारत में कैसे बदला मानसून का पैटर्न, आम जनजीवन पर क्या पड़ेगा असर? जानिए इसके पीछे की वजह
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में मानसून बदल रहा है जिससे कृषि और आपदा प्रबंधन खतरे में हैं। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश से सड़कें अवरुद्ध हैं और कई लोगों की जान चली गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से मानसून का व्यवहार बदल रहा है जिससे भारी वर्षा और सूखे की स्थिति पैदा हो रही है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के मानसून में बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश इन दिनों भीषण मानसून की चपेट में है। पिछले कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण 260 से ज्यादा सड़कें ब्लॉक हो चुकी हैं, जिसमें 176 सड़कें सिर्फ मंडी जिले में हैं। भारतीय मौसम विभाग ने कांगड़ा, सिरमौर और मंडी जिलों के लिए भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।
इस हफ्ते बादल फटने या भूस्खल की वजह से कम से कम 69 लोगों की मौत हो गई और 37 लापता हैं। पिछले साल हिमाचल प्रदेश में मानसून के मौसम में 550 से ज्यादा लोग मारे गए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार मानसून इतना खतरनाक और अप्रत्याशित कैसे होता जा रहा है?
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
इस तरह की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता के लिए विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं। यही वजह है कि भारत में मानसून का व्यवहार बदल रहा है। ये बदलाव देश भर में कृषि, जल प्रणाली और आपदा तैयारियों को खतरे में डालता है, जिससे मानसून पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक और अप्रत्याशित हो जाता है।
पिछले 100 सालों में हुआ बड़ा बदलाव
- सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक, 1901 से 2018 की अवधि में भारतीय सतह के तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई।
- जबकि उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के समुद्र की सतह के तापमान में 1951 से 2015 के बीच लगभग 1 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि देखने को मिली।
- चूंकि गर्म हवा ज्यादा नमी धारण कर सकती है, जिसकी वजह से ज्यादा तेज बारिश होती है। लगभग 7 प्रतिशत प्रति एक डिग्री सेल्सियस तक।
- मई में होने वाली बारिश में 1950 के बाद से लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- मानसून सीजन (जून-सितंबर) कमजोर पड़ रहा है, जिससे उच्च तापमान के साथ कुल बारिश कम हो रही है।
मौसमी बारिश में आई गिरावट
मौसम विभाग के मुताबिक, पिछले 50 सालों में मौसमी बारिश में लगभग 6 प्रतिशत तक की कमी आई है। मध्य भारत में मध्यम बारिश के दिन कम हो गए हैं और बहुत ज्यादा बारिश के दिन बढ़ गए हैं। भारी बारिश वाले दिन 75 प्रतिशत तक बढ़ गए (150 मिमी प्रति दिन)।
भारत की 55 प्रतिशत तहसीलों में पिछले दशक में मानसून की बारिश में बृद्धि देखी गई, जो मुख्य रूप से अल्पकालिक भारी बारिश की वजह से हुई। वहीं, 11 प्रतिशत तहसीलों में बारिश में गिरावट देखी गई, खासकर मैदानी इलाके वाले कृषि निर्भर क्षेत्रों में। इसके अलावा, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर में ज्यादा बारिश दर्ज की गई और ये मानसून वापसी में देरी का संकेत देती है।
किस तरह बदला मानसून का स्वरूप
भारत के मानसून की प्राकृतिक परिवर्तनशीलता जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। पूर्वोत्तर भारत, सिंधु-गंगा के मैदान और हिमालयी इलाकों में पिछले दशक में बारिश में कमी देखी गई। ये इलाके पारंपरिक रूप से मानसून समृद्ध क्षेत्र माने जाते हैं। इसके उलट राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे इलाकों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश में वृद्धि देखी गई, जबकि ये इलाके पारंपरिक रूप से शुष्क माने जाते हैं। तमिलनाडु में पूर्वोत्तर मानसून तेज हुआ तो पूर्वी तट पर ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के साथ-साथ पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र और गोवा में अक्टूबर से दिसंबर तक बारिश में वृद्धि देखी गई।
भारत में क्यों बदल रहा मानसून का पैटर्न?
भारत के मानसून का पैटर्न बदलने के पीछे कई कारण हैं। बारिश अब ज्यादातर अनियमित हो गई है। मानसून की शुरुआत में देरी होने लगी है, जिससे खेती-किसानी प्रभावित होती है और कई इलाकों में सूखा पड़ जाता है। कई जगहों पर सूखा पड़ा होता है तो कई जगहों पर भारी बारिश हो जाती है। इसमें जलवायु परिवर्तन की मुख्य भूमिका है। हिंद महासागर का गर्म होना, वैश्विक वायुमंडलीय बदलाव और शहरीकरण मानसून के पैटर्न को बदल रहा है।
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