Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नासा के मार्स मिशन और परसिवरेंस रोवर की सफलता के पीछे जुड़ा है एक भारतीय मूल की महिला का भी नाम!

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Fri, 19 Feb 2021 03:42 PM (IST)

    धरती से करोड़ों किमी दूर स्थित मंगल ग्रह पर नासा के रोवर परसिवरेंस की सफल लैंडिंग के पीछे जो नाम जुड़े हैं उनमें से एक नाम भारतीय मूल की वैज्ञानिक स्‍वाति मोहन का भी है। उनके ऊपर अहम जिम्‍मेदारी है।

    Hero Image
    डॉक्‍टर स्‍वाति मोहन पर है मिशन की अहम जिम्‍मेदारी

    नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। नासा के मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर परसिवरेंस की सफलता के पीछे जिन लोगों का हाथ है उनमें से एक स्‍वाति मोहन भी हैं। स्‍वाति मोहन नासा की जेट प्रपल्‍शन लैब में इस प्रोग्राम की नेवीगेशन गाइडेंस और कंट्रोल ऑपरेशन (GNC) की हैड हैं। नासा का रोवर इसी लैब में तैयार किया गया है। इसके पीछे वर्षों की मेहनत है। नासा के इस मिशन में रोवर परसिवरेंस के साथ एक मिनी हैलीकॉप्‍टर इनज्‍यूनिटी भी सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर पहुंच गया है। ये इस पूरी टीम के लिए गौरव का पल है। स्‍वाति की बात करें तो वो इसकी टीम से बीते आठ वर्षों से जुड़ी हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्‍वाति के ऊपर मार्स रोवर परसिवरेंस को सही जगह पर उतारने और इसके लिए एकदम सही जगह का चयन करने की जिम्‍मेदारी थी। वो केवल इसी मिशन के साथ जुड़ी नहीं रही है बल्कि इससे पहले वो शनि ग्रह पर भेजे गए कासिनी यान और नासा के चांद पर भेजे गए ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लैबोरेटरी (ग्रेल) यान से भी जुड़ी रह चुकी हैं। 

     

    नासा के रोवर परसिवरेंस मिशन को लेकर स्‍वाति कुछ बीते दिनों में कुछ ट्वीट भी किए हैं। इनमें से एक ट्वीट में उन्‍होंने लिखा कि वो काफी बिजी शडयूल के बाद और काफी देर तक काम करने के बाद घर जा रही हैं। इसके बाद उन्‍होंने इसकी लैंडिंग की उलटी गिनती कर रही एक क्‍लॉक की फोटो भी ट्वीट की थी।रोवर की मार्स पर लैंडिंग से पहले उन्‍होंने लिखा कि अपनी टीम की मांग पर उन्‍होंने अपने बालों को ऐसा रूप दिया है।

    स्‍वाति इस पूरे मिशन में जीएनसी और दूसरी टीमों के बीच एक की-कम्‍यूनिकेटर की भी भूमिका निभा रही हैं। बेहद कम लोग इस बात से वाकिफ होंगे कि जब वो महज एक वर्ष की थी तब उनके पैरेंटस अमेरिका में उत्‍तरी वर्जीनिया चले गए थे। उन्‍होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल एंड एयरोस्‍पेस इंजीनियरिंग में बीएस की डिग्री हासिल की। इसके बाद मैसेचुसेट्स यूनिवर्सिटी से एयरोनॉटिक्‍स में एमएस और पीएचडी की डिग्री हासिल की।

    अपने वैज्ञानिक बनने और नासा से जुड़ने की बात का खुलासा करते हुए एक बार उन्‍होंने कहा था कि वो जब 9 वर्ष की थीं तब टीवी पर आने वाले प्रोग्राम स्‍टार ट्रेक को बेहद मन से देखा करती थीं। इससे उन्‍हें ब्रह्मांड के नए खुलासे करने का मन करता था। उन्‍हें ये जानने में अच्‍छा लगता था कि पृथ्‍वी से करोड़ों किमी दूर भी कुछ है। यहां से उन्‍हें ब्रह्मांड को खंगालने की धुन सवार हुई थी। उन्‍हें लगने लगा था कि उन्‍हें भी इस ब्रह्मांड के नए सवालों का जवाब तलाशने हैं। जब वो 16 वर्ष की थीं तब उनके दिमाग में पैड्रीटिशियन बनने का ख्‍याल आया। लेकिन इसी दौरान उन्‍हें मिले फिजिक्‍स के टीचर की बदौलत उनके मन में दोबारा इंजीनियर बनने का ख्‍याल मन में आया था। इसके बाद उनकी दिलचस्‍पी स्‍पेस एक्‍सप्‍लोरेशन में बढ़ती ही चली गई।

     

    जिस वक्‍त उनकी वर्षों की मेहनत को मंगल ग्रह के लिए लॉन्‍च किया जाना था उस वक्‍त वो और उनकी पूरी टीम काफी नर्वस हो गई थी। इसकी वजह थी कि मंगल की पथरीली सतह पर उनका रोवर कितनी सफलता से उतरेगा। उनके और उनकी टीम में इस दौरान कई तरह के विचार आ रहे थे। इनमें एक ये भी था कि यदि किसी गलती की वजह से मिशन नाकाम रहा तो उनकी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। उनकी वर्षों की मेहनत रोवर परसिवरेंस की लैंडिंग के आखिरी 7 मिनट पर टिकी हुई थी, क्‍योंकि ये पल बेहद मुश्किलों भरे थे। इस रोवर एक ऐसी जगह पर उतरना था जो बेहद पथरीली थी और जहां पर बड़ी-बड़ी चट्टानें और बड़े बड़े पत्‍थर थे। यहां पर वो सबकुछ था जो रोवर को नुकसान पहुंचा सकता था।

    comedy show banner
    comedy show banner