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    काम के घंटे के बहस के बीच WHO की पूर्व चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने दिखाया 'आईना', दिया ये शानदार जवाब

    काम के घंटों को लेकर चल रही बहस में डब्ल्यूएचओ की पूर्व मुख्य विज्ञानी सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि काम की गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण है न कि काम के घंटे। उनका मानना है कि लंबे समय तक काम करने से थकावट और बर्नआउट हो सकता है जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होती है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सही काम के घंटे और ब्रेक जरूरी हैं।

    By Jagran News Edited By: Chandan Kumar Updated: Sun, 09 Mar 2025 11:46 PM (IST)
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    सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि काम के घंटे नहीं, काम की गुणवत्ता मायने रखती है।

    पीटीआई, नई दिल्ली। देश में काम के घंटों पर चल रही बहस के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य विज्ञानी सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि काम के घंटे नहीं, काम की गुणवत्ता मायने रखती है। उत्पादकता या काम का परिणाम काम के घंटे के बजाए काम की गुणवत्ता पर निर्भर है।

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    गौरतलब है कि इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने यह कहकर नई बहस छेड़ दी थी कि भारतीयों को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए। इसे एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यम ने 90 घंटे प्रति सप्ताह की पैरवी करके आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए।

    'शरीर को नींद की होती जरूरत'

    सौम्या ने कहा, "आप 12 घंटे तक अपने डेस्क पर बैठ सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि आठ घंटे के बाद आप अच्छी गुणवत्ता वाला काम न कर पाएं। शरीर को नींद की जरूरत होती है।"

    "मानसिक रूप से भी ब्रेक लेना जरूरी है ताकि आपकी सोचने-समझने की क्षमता बनी रहे।" WHO की पूर्व मुख्य विज्ञानी

    सौम्या ने इंटरव्यू में कहा, "आपका शरीर आपको थकावट के बारे में बताता है। आपको अपने शरीर की भी बात सुननी होगी। लंबे समय तक अत्यधिक काम करने से 'बर्नआउट' या थकान हो सकती है और कार्यक्षमता कम हो सकती है।"

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