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    महज 40 घंटे की लड़ाई के बाद गोवा के पुर्तगाली गवर्नर ने भारतीय सेना के समक्ष किया था 'सरेंडर'

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Thu, 19 Dec 2019 05:31 PM (IST)

    गोवा को भारत में शामिल करने के लिए भारतीय सेना को केवल 40 घंटे लगे। इस दौरान गोवा में मौजूद पुर्तगाली गवर्नर जनरल ने सरेंडर कर दिया था।

    महज 40 घंटे की लड़ाई के बाद गोवा के पुर्तगाली गवर्नर ने भारतीय सेना के समक्ष किया था 'सरेंडर'

    नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। देश के इतिहास में 19 दिसंबर 1961 का दिन स्‍वर्ण अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के कब्‍जे से मुक्‍त करवा कर भारत में शामिल किया था। पु‍र्तगालियों का यहां पर साढ़े चार सौ वर्ष का शासन इसके साथ ही खत्‍म हो गया था और यहां पर शान से तिरंगा लहराया था।गोवा को भारत में शामिल करने के लिए बड़ी सैन्‍य कार्रवाई की गई थी। 30 मई 1987 को गोवा को राज्‍य का दर्जा दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। इसी गोवा में मिली इसी जीत के नाम पर हर वर्ष 'गोवा मुक्ति दिवस' मनाया जाता है। 

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    भारत आ रहे पुर्तगाल के प्रधानमंत्री 

    इसको इत्‍तफाक ही कहा जा सकता है कि इसी खास दिन पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्‍टा भी भारत आ रहे हैं। हालांकि वह पहले भी भारत आ चुके हैं। वह गोवा मूल के एक कवि ओर्लान्दो के बेटे हैं। उन्‍होंने गोवा की औपनिवेशिक सामंतवादी व्यवस्था पर एक किताब ‘ओ सिंग्नो दा इरा’ भी लिखी है। कोस्‍टा को लिस्बन का गांधी भी कहा जाता है। गोवा में आज भी उनकी बहन रहती है और यहां पर उनका पुराना घर आज भी है। 

    पहले और आखिरी यूरोपीय शासक थे पुर्तगाली

    गौरतलब है कि पुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वह यहां पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे। वहीं 1961 में वह भारत छोड़ने वाले भी अंतिम यूरोपीय शासक थे। गोवा में पुर्तगालियों का शासन अंग्रेजों से काफी अलग था।यहां के शासकों ने गोवा के लोगों को वही अधिकार दिए थे तो पुर्तगाल के लोगों को थे। हालांकि हाईक्‍लास हिंदुओं और ईसाइयों के साथ-साथ अमीर लोगों को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्‍त थे। ये साधन संपन्‍न लोग शासकों या सरकार को संपत्ति कर भी देते थे और 19वीं शताब्दी के मध्य में उन्‍हें मताधिकार का अधिकार भी मिल गया था।

    छोटा लेकिन अहम था गोवा

    गोवा क्षेत्रफल में छोटा जरूर था लेकिन रणनीतिकतौर पर काफी अहम था। छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और यहां पर विदेशी व्‍यापारी काफी आते थे। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ही मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी इसकी तरफ आकर्षत होने से खुद को नहीं रोक पाए थे। गोवा पर काफी समय तक बाहमानी सल्तनत और विजयनगर सम्राज्य की हुकूमत रही है। 1954 में, भारतीयों ने दादर और नागर हवेली के ऐंक्लेव्स पर कब्जा कर लिया था। इसकी शिकायत पुर्तगाली शासन ने इसकी शिकायत हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में की थी। 1960 में इस कोर्ट का फैसला भारत के खिलाफ आया और कोर्ट ने गोवा पर पुर्तगालियों के कब्‍जे को सही बताया था। 

    बातचीत की पेशकश ठुकराता रहा पुर्तगाल

    इसके बाद भारत सरकार ने गोवा सरकार से लगातार बातचीत करने की कोशिश की लेकिन हर बार यह पेशकश ठुकरा दी गई। 1 सितंबर 1955 को भारत ने गोवा में मौजूद अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया। साथ ही पंडित नेहरू ने कहा कि भारत सरकार गोवा में पुर्तगाली शासन की मौजूदगी को किसी भी सूरत से बर्दाश्‍त नहीं करेगी। इसके लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया। गोवा ने इस मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन भारतीय दांव के आगे ये कोशिश विफल साबित हुई। दरअसल, पंडित नेहरू ने ब्‍लॉकेड के बावजूद वहां पर यथास्थिति को बरकरार रखा था। 

    भारतीय सेना की अंतिम चढ़ाई और गवर्नर का सरेंडर 

    18 दिसंबर 1961 को आखिरकार वो दिन आया जब भारतीय सेना को गोवा पर चढ़ाई का आदेश दे दिया गया। आदेश के साथ ही सेना नने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी। इसको ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था। इस ऑपरेशन के इंचार्ज मेजर जनरल कुन्‍हीरमन पलट कानडेथ थे। भारतीय सेना की त्‍वरित कार्रवाई के बाद पुर्तगालियों की सेना बुरी तरह बिखर गई और टूट गई। नतीजतन भारतीय सेना गोवा में प्रवेश कर चुकी थी। इस दौरान करीब 40 घंटे तक सेना ने गोवा में जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए गए। आखिरकार कानडेथ के सामने पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा को आत्‍म समर्पण करना पड़ा था। कानडेथ लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए थे। 19 मई 2003 को दिल्‍ली में उन्‍होंने अंतिम सांस ली थी। 

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