अगर आप भी मानते हैं कि टूटते तारे मुराद पूरी करते हैं तो आज वो रात है...
सवाल यह नहीं है कि क्या सच में टूटता तारा मन की मुराद पूरी करता है या नहीं। सवाल तो यह है कि क्या सच में कोई तारा ऐसे टूटता है?
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। क्या आपने कभी टूटते तारे को देखा है? अगर हां, तो यह भी सुना होगा कि टूटते तारे से जो मांगो वह मुराद पूरी हो जाती है। हालांकि कुछ लोग टूटते तारे से मन की मुराद मांगने को बुरा भी मानते हैं। अगर आपने भी अपने बचपन में टूटता हुआ तारा देखा होगा तो जरूर कुछ मांगा होगा। बॉलीवुड फिल्मों में भी टूटते तारे से आंख बंद करके चुपचाप अपने मन की मुराद मांगने के दृश्य आपने देखे होंगे।
सवाल यह नहीं है कि क्या सच में टूटता तारा मन की मुराद पूरी करता है या नहीं। सवाल तो यह है कि क्या सच में कोई तारा ऐसे टूटता है? अगर नहीं, तो फिर वह क्या है जिसे हम बचपन से टूटता हुआ तारा समझकर मुराद मांगते फिरते हैं?
टूटता तारा नहीं है यह...
दरअसल यह उल्का पिंड होता है। यह एक सामान्य खगोलीय घटना है। सालभर में ऐसी 8-10 घटनाएं होती हैं। गुरुवार रात से रविवार तक ऐसी ही खगोलीय घटना हो रही है। शुक्रवार व शनिवार की रात यह घटना अपने चरम पर रहेगी. ऐसे में आपके पास इस अनोखी घटना को देखने का भरपूर मौका है। आधी रात के दौरान आपको एक घंटे में लभगभ 30 उल्काएं आसमान से गिरती नजर आएंगी. ये अलग बात है कि आप इन्हें टूटता हुआ तारा समझकर मुराद भी मांग सकते हैं, लेकिन इसका वैज्ञानिक आधार हमने आपको बता दिया है।
नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के बताते हैं कि यह खगोलीय घटना हेली कॉमेट के कारण होती है। जब भी कोई ऐसा कॉमेट पृथ्वी की कक्षा से होकर गुजरता है तो उसके पीछे उल्काओं का ढेर सारा अवशेष छूट जाता है। बाद में पृथ्वी जब अपने पथ से गुजरती है तो ये अवशेष धरती के वातावरण से टकराकर जल उठते हैं। ऐसे में आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलता है। कुछ लोग इन्हें टूटता हुआ तारा भी कह देते हैं।
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उल्का पिंड क्या होते हैं
उल्कापिंड असल में छोटे-छोटे पत्थर या मेटैलिक बॉडी होते हैं, जो बाहरी अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं। उल्कापिंड भी एस्टेरॉयड (क्षुद्रग्रह) की तरह ही होते हैं, लेकिन यह उनसे काफी छोटे होते हैं। यह एक छोटे से अनाज के दाने से लेकर एक मीटर तक बड़े होते हैं। यह ज्यादातर अपने कॉमेट (पुच्छल तारा) या एस्टेरॉयड से अलग हो जाते हैं और कुछ अन्य ग्रहों के अवशेष के रूप में अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं।
कैसे चमक उठते हैं ये उल्का पिंड
अंतरिक्ष में घूमते हुए उल्का पिंड जब धरती के वायुमंडल में पहुंचते हैं तो उनकी गति 20 किमी प्रति सेकेंड यानी 72 हजार किमी प्रति घंटा तक होती है। इतनी तेज गति से धरती के वायुमंडल में पहुंचने से घर्षण के कारण इनमें आग लग जाती है। जिसकी वजह से यह चमक उठते हैं और टूटते हुए तारे का आभास देते हैं।
ऐटा एक्वारिड मेटियोर शॉवर
कॉमेट हेली के छोटे अवशेषों के कारण चार दिन तक आसमान में होने वाली इस आतिशबाजी की अनोखी खगोलीय घटना को वैज्ञानिकों ने ऐटा एक्वारिड मेटियोर शॉवर नाम दिया है। इस कॉमेट की खोज वैज्ञानिक एडमंड हेली ने की थी। पिछली बार यह कॉमेट 1986 में सूर्य के निकट आया था। अब अगली बार 2061 में आएगा।
फिर कब दिखेगी उल्का बारिश
इस तरह की खगोलीय घटनाओं में रुचि रखने वालों को इस साल चार बार मेटियोर शॉवर का लुत्फ लेने का मौका मिलेगा। इसमें एटा एक्वारिड के बाद 12 अगस्त को पर्शिड, 21 अक्टूबर ओरिओनिड, 16 नवंबर लिओनिड व 15 दिसंबर को जेमिनिड शॉवर के चलते आसमानी आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलेगा।
क्या कोई उल्का पिंड धरती पर भी गिर सकता है
वैसे तो ज्यादातर उल्का पिंड धरती के वातारण में आकर जल उठते हैं और पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह धरती तक नहीं पहुंच पाते। हर साल काफी मात्रा में उल्का पिंड धरती पर गिरते हैं। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, अक्सर यह ऐसी जगह गिरते हैं, जहां इंसानी बस्ती नहीं होती, इसलिए इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती।

साल 2013 में रूस में गिरे एक उल्का पिंड
नासा के वैज्ञानिक बताते हैं कि 90-95 फीसद उल्का पिंड धरती के वातारण में आकर नष्ट हो जाते हैं। साल 2009 में कनाडा के ओंटारियो में ग्रिमस्बी उल्का पिंड धरती तक पहुंचने में सफल रहा था, लेकिन इससे पहले यह कई टुकड़ों में टूट गया था। इसकी वजह से एक एसयूवी की विंडशील्ड टूट गई थी। साल 2013 में चेलिबिंस्क नाम का 6 मजिंला बिल्डिंग जितना बड़ा एक अल्कापिंड (असल में एस्टेरॉयड) रूस के आसमान में कई हिस्सों में टूट गया और यहां 24 किमी के क्षेत्र में उसके अवशेष गिरे। इस घटना में 1600 लोग घायल हो गए थे।

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