जानिए, क्या है डब्ल्यूटीओ? यह कैसे काम करता है? इसमें सुधार की मांग क्यों उठ रही है?
डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों की हर दो साल पर मंत्रिस्तरीय बैठक होती है जिसमें आम राय से फैसले होते हैं। अब तक 11 बैठके हो चुकी हैं।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। अमेरिका सहित कई देशों की संरक्षणवादी नीतियों के चलते प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मध्य व्यापार युद्ध (ट्रेड वार) की स्थिति बन गयी है। देश मुक्त व्यापार की राह में बाधाएं खड़ी करने लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था को उदार बनाने के लिए स्थापित हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें सुधार की मांग उठने लगी है। बाहरी मोर्चे पर तेजी से बदल रहे घटनाक्त्रम के मद्देनजर 'दैनिक जागरण' अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित जटिल शब्दावली और अवधारणाओं को सरल रूप में प्रस्तुत करने जा रहा है। इसकी शुरुआत हम डब्ल्यूटीओ से कर रहे हैं। डब्ल्यूटीओ क्या है? यह कैसे काम करता है? इसमें सुधार की मांग क्यों उठ रही है? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने की कोशिश करेंगे।
::: जागरण पाठशाला :::
विश्व व्यापार संगठन एक बहुपक्षीय संस्था है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियमन करती है। इसकी स्थापना एक जनवरी 1995 को हुई और इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में है। फिलहाल 164 देश इसके सदस्य हैं। भारत शुरु से ही डब्लयूटीओ का सदस्य रहा है। आज विश्व का 98 प्रतिशत व्यापार डब्ल्यूटीओ के दायरे में होता है। वर्ष 2017 में पूरी दुनिया में 17.43 ट्रिलियन डालर (एक ट्रिलियन यानी एक लाख करोड़) मूल्य की वस्तुओं का निर्यात हुआ। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डब्ल्यूटीओ कितना अहम संगठन है।
डब्ल्यूटीओ नया संगठन है, लेकिन इसका इतिहास पुराना है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने ब्रेटनवुड्स सम्मेलन कर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की तो इसके एक साल बाद संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन (आइटीओ) का विचार दिया। हवाना घोषणापत्र में इस पर सहमति भी बनी लेकिन यह विचार फलीभूत नहीं हो सका।
आखिरकार 23 देशों ने मिलकर जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) पर हस्ताक्षर किए। इस तरह विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1948 से विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक वार्ताओं का केंद्र गैट बन गया। गैट के तत्वाधन में कई दौर की व्यापारिक वार्ताएं चलीं। अंतत: गैट के अंतिम और सबसे बड़े दौर की वार्ता जिसे उरुग्वे राउंड (1986 से 1994) के तौर पर जाना जाता है, के बाद डब्ल्यूटीओ का जन्म हुआ।
गैट और डब्ल्यूटीओ में फर्क यह है कि गैट मुख्यत: वस्तुओं के कारोबार का नियमन करता था जबकि डब्ल्यूटीओ वस्तुओं और सेवाओं के कारोबार के साथ-साथ बौद्धिक संपदा (इंटलेक्च्युल प्रॉपर्टी) जैसे आविष्कार, रचनाएं और डिजाईन के व्यापार का भी नियमन करता है।
डब्ल्यूटीओ का मकसद संरक्षणवाद (प्रोटैक्शनिज्म) को खत्म कर भेदभावरहित, पारदर्शी औैर मुक्त व्यापार व्यवस्था बनाना था ताकि सभी देश एक दूसरे के साथ बिना किसी बाधा (अत्यधिक टैरिफ या प्रतिबंध) के व्यापार कर सकें। साथ ही व्यापारिक विवादों को हल करने में भी इसे भूमिका निभानी थी। डब्ल्यूटीओ की कार्यप्रणाली संयुक्त राष्ट्र की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक है।
संयुक्त राष्ट्र में जहां पांच स्थायी सदस्यों को वीटो पावर (विशेष शक्तियां) प्राप्त हैं वहीं डब्ल्यूटीओ में किसी भी राष्ट्र को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। सबके मत बराबर हैं। डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों की हर दो साल पर मंत्रिस्तरीय बैठक होती है जिसमें आम राय से फैसले होते हैं। अब तक 11 बैठके हो चुकी हैं। अगली बैठक कजाखस्तान के अस्ताना में 2020 में होगी। डब्ल्यूटीओ काफी हद तक अपना मकसद पूरा करने में सफल रहा है, लेकिन हाल के वषरें में कई देशों में आयातों पर टैरिफ बढ़ाकर संरक्षणवादी नीतियां अपनायी गयीं हैं जो डब्ल्यूटीओ की भावना के विरुद्ध हैं। यही वजह है कि अब इसमें सुधार की मांग जोर पकड़ने लगी है।
असल में संरक्षणवाद हमेशा महंगा पड़ता है। इससे लोगों का रहन-सहन महंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया में संरक्षणवादी नीतियों के चलते आयातित कार 43 प्रतिशत महंगी हो जाती है। जब संरक्षणवादी नीतियां खत्म होती हैं और मुक्त व्यापार के रास्ते खुलते हैं तब लोगों की आय बढ़ती है। डब्ल्यूटीओ का अनुमान है कि व्यापार खुलने से अमेरिका में 1945 से 2012 के बीच प्रति परिवार सालाना 9000 डालर आय बढ़ गयी।
(अगले सप्ताह पढ़ें- क्या है ट्रेड वार?)
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