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जानिए, क्या है टैरिफ और यह कितने प्रकार का होता है?

डब्ल्यूटीओ में मामला सुलझने में एक साल का वक्त लगता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 06:44 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 06:44 PM (IST)
जानिए, क्या है टैरिफ और यह कितने प्रकार का होता है?
जानिए, क्या है टैरिफ और यह कितने प्रकार का होता है?

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। विश्व व्यापार से जुड़ी खबरों में आजकल टैरिफ शब्द काफी चर्चा में है। पिछले हफ्ते भारत ने गैर-जरूरी आयात को कम करने के लिए 19 वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाया जबकि इससे कुछ समय पहले अमेरिका और चीन भी एक दूसरे खिलाफ टैरिफ बढ़ाने के कदम उठा चुके हैं। टैरिफ क्या है? जब कोई देश एक स्तर से अधिक टैरिफ बढ़ाता है तो प्रभावित देश किस तरह डब्ल्यूटीओ में उसके खिलाफ शिकायत करते हैं? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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                                                         ::: जागरण पाठशाला :::

वस्तुओं के आयात पर लगने वाली ड्यूटी को टैरिफ कहते हैं। टैरिफ से दो फायदे होते हैं। पहला, इससे सरकार को राजस्व मिलता है और दूसरा, देश में निर्मित वस्तुओं की कीमत आयातित की तुलना में कम रहने से घरेलू निर्माताओं को लाभ होता है। उरुग्वे दौर की वार्ताएं (जिसके बाद डब्ल्यूटीओ बना) का एक उद्देश्य यह भी था कि सभी देशों ने कस्टम ड्यूटी यानी आयात शुल्क की सीमा तय करने की प्रतिबद्धता जतायी। विकसित देशों ने तो अपने यहां कई आयातित चीजों पर टैरिफ की दर घटाकर शून्य ही कर दी थी।

टैरिफ तीन प्रकार के होते हैं:-

(1) बाउंड टैरिफ- यह वस्तु या सेवाओं के आयात पर उच्चतम दर है,

(2) प्रीफेरेंशियल टैरिफ- यह न्यूनतम दर है,

(3) मोस्ट-फेवर्ड नेशन टैरिफ- यह दर इन दोनों के बीच में होती है।

असल में जब कोई देश विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनता है और अन्य देशों के साथ व्यापारिक वार्ताओं में भाग लेता है तब वे टैरिफ के बाउंड रेट तय करते हैं। इसका मतलब है कि वह देश आयातित सामान पर बाउंड रेट से अधिक टैरिफ नहीं लगाएगा। अगर वह ऐसा करेगा तो डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश उसकी शिकायत कर सकते हैं। डब्ल्यूटीओ में विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी डिस्प्यूट सैटलमेंट बॉडी (डीएसबी) की है जिसमें सभी सदस्य राष्ट्र शामिल होते हैं।

टैरिफ घटा-बढ़ाकर व्यापार को नियंत्रित करते हैं देश

जब कोई देश दूसरे के खिलाफ शिकायत करता है तो डब्लयूटीओ में पहले उसे आपस में परामर्श और मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए दोनों पक्षों को 60 दिन का वक्त दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारत ने इस साल 23 मई को अमेरिका के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में शिकायत की है। भारत का कहना है कि अमेरिका ने स्टील पर 25 प्रतिशत और एल्युमिनियम पर 10 प्रतिशत ड्यूटी लगाकर डब्ल्यूटीओ के समझौते का उल्लंघन किया है।

अगर आपसी परामर्श से मामला नहीं सुलझता है तो डिस्प्यूट सैटलमेंट बॉडी 45 दिन के भीतर विशेषज्ञों का 'पैनल' गठित कर सकती है। जिस देश के खिलाफ शिकायत की गयी है वह सिर्फ एक बार ही पैनल के गठन की प्रक्ति्रया को रोक सकता है। डिस्प्यूट सैटलमेंट बॉडी को पुन: पैनल गठित करने से नहीं रोका जा सकता। शिकायतकर्ता देश और जिसके खिलाफ शिकायत की गयी है अपने पक्ष पैनल के समक्ष रखते हैं। पैनल 6 माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दोनों पक्षों को सौंप देते हैं। इसके बाद तीन माह के भीतर रिपोर्ट डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों को सौंप दी जाती है।

'बाउंड रेट' से अधिक टैरिफ रखने पर हो सकती है डब्लुटीओ में शिकायत

अगर कोई देश 'पैनल' की रिपोर्ट के खिलाफ अपील नहीं करता तो डिस्प्यूट सैटलमेंट बॉडी 60 दिन के भीतर उस रिपोर्ट को स्वीकार कर लेती है। डब्ल्यूटीओ में मामला सुलझने में एक साल का वक्त लगता है। अगर कोई देश पैनल की रिपोर्ट के विरुद्ध अपील करता है तो मामला सुलझने में तीन माह का और वक्त लग जाता है।

पैनल अगर उस देश के खिलाफ रिपोर्ट देता है जिसके खिलाफ शिकायत की गयी है तो ऐसी स्थिति में उक्त देश को शिकायत करने वाले देश को अपनी टैरिफ की दर घटानी होंगी और शिकायत करने वाले देश को मुआवजा देना पड़ेगा। अगर मुआवजे की राशि पर सहमति नहीं बनती तो शिकायत करने वाला देश भी अपने यहां जवाबी कार्रवाई करते हुए टैरिफ बढ़ा सकता है।


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