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    क्या है एनआरएचएम घोटाला

    केद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम] योजना के मद मे छह वर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश को 8657 करोड़ रुपये मिले, लेकिन अधिकारियो व चिकित्सको ने इसमे पाच हजार करोड़ रुपये की बदरबाट कर ली। इसका राजफास नियत्रक एव महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट मे हुआ।

    By Edited By: Updated: Mon, 07 May 2012 11:09 AM (IST)

    नई दिल्ली [इंटरनेट डेस्क]। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम] योजना के मद में छह वर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश को 8657 करोड़ रुपये मिले, लेकिन अधिकारियों व चिकित्सकों ने इसमें पांच हजार करोड़ रुपये की बंदरबांट कर ली। इसका राजफास नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट में हुआ।

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    यूपी सरकार की नाक के नीचे हुए इस घोटाले की जांच का काम सीबीआई को सौंपे जाने के बाद मंत्री, राजनेता व वरिष्ठ अधिकारियों के नाम सामने आए। इस घोटाले में तीन सीएमओ समेत सात लोगों की जान जा चुकी है।

    कैग की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2005 ंसे मार्च 2011 तक एनआरएचएम में लोगों की सेहत सुधार के लिए 8657.35 करोड़ रुपये मिले, जिसमें से 4938 करोड़ रुपये नियमों की अनदेखी कर खर्च किए गए। करीब तीन सौ पेज की रिपोर्ट में लिखा गया है कि एनआरएचएम में 1085 करोड़ रुपये का भुगतान बिना किसी के हस्ताक्षर ही कर दिया गया। बिना करार के ही 1170 करोड़ रुपये का ठेका चंद चहेते लोगों को दिया गया। निर्माण एवं खरीद संबंधी धनराशि को खर्च करने के आदेश जारी करने में सुप्रीम कोर्ट एवं सीवीसी के निर्देशों का पालन नहीं किया गया। परिणाम स्वरूप जांच में केंद्र से मिले 358 करोड़ और कोषागार के 1768 रुपयों करोड़ का हिसाब राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी की फाइलों में सीएजी को नहीं मिला। 23 जिलों की सीएजी जांच के दौरान एनआरएचएम में मिली धनराशि के खर्च का लेखा-जोखा तैयार करने के दौरान सच्चाई सामने आई।

    1.40 की खरीद, बिल 18 का

    रिपोर्ट बताती है कि एक रुपये 40 पैसे में मिलने वाले 10 टेबलेट के पत्तों को अलग अलग जिलों में दो रुपये 40 पैसे से लेकर 18 रुपये तक में खरीदा गया। वर्ष 2008-09 के वित्तीय वर्ष में दवा खरीद मामले में 1.66 करोड़ रुपये का घोटाला होने की बात रिपोर्ट में है। एनआरएचएम के कार्यक्रम मूल्यांकन महानिदेशक की ओर से 2005 से 2007 के बीच 1277.06 करोड़ रुपये एनआरएचएम के लेखा-जोखा से मेल नहीं खाते हैं।

    गैर पंजीकृत सोसाइटी को 1546 करोड़

    गैर पंजीकृत सोसाइटी को 1546 करोड़ रुपये दिए जाने पर रिपोर्ट में आपत्ति जताई गई। 2009-10 में बिना उपयोगिता प्रमाण पत्र के उपकेंद्रों को 52 करोड़ रुपये मुहैया कराए जाने को नियम विरुद्ध बताया गया। सीएजी ने लिखा है कि चार जिलों के परीक्षण में ही पाया है कि 4.90 करोड़ रुपये व्यर्थ खर्च किए गए।

    कम रखे गए स्टाफ नर्स

    केंद्र सरकार से डाक्टर, नर्स व एनम रखने के लिए धनराशि मिलने के बावजूद 8327 की जगह केवल 4606 स्टाफ नर्से ही रखी गई। स्टाफ के मद में सरकार 76 फीसदी कोटा ही पूरा कर सकी। सीएजी ने पाया कि प्रदेश सरकार ने घरेलू उत्पाद का केवल 1.5 फीसद ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया है। जबकि लक्ष्य दो से तीन फीसद रखा गया था। रिपोर्ट में लोगों की सेहत सुधार के नाम पर हुए इस घोटाले के कई चौंकाने वाले तथ्य शामिल हैं।

    जननी सुरक्षा योजना में भी धांधली

    एनआरएचएम में शिशु एवं प्रसव मृत्यु दर कम करने तथा जनसंख्या पर कारगर रोक लगाने संबंधी कार्यक्रमों में जमकर धांधली की गई। सीएजी ने पाया है कि एक डीएम की कार का उपयोग टीकाकरण के कार्यक्रम में करने की हिम्मत राज्य के घोटालेबाजों ने कर डाली।

    सीएजी रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षित मातृत्व योजना में बीपीएल परिवार की महिलाओं का प्रसव कराने वाले निजी नर्सिग होम को प्रति डिलीवरी 1850 रुपये मिलना था। इस योजना के तहत बहराइच में राज अस्पताल को 258 बीपीएल महिलाओं का प्रसव कराने के लिए 6.77 लाख रुपये दिए गए लेकिन किसी महिला से बीपीएल का दस्तावेज नहीं लिया गया जो जरूरी था। इसी तरह की धांधली रज्च्य के अन्य जिलों में भी हुई। जननी सुरक्षा योजना के तहत स्वास्थ्य केंद्र में च्च्चा पैदा करने वाली महिलाओं को 1400 रुपये और बीपीएल परिवार की महिलाओं को घर पर प्रसव की स्थिति में 500 रुपये की नकद सहायता दी जानी थी। इन्हें जिले के स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल लाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को 600 रुपये मानदेय दिया जाना था। वर्ष 2005-11 के बीच इस योजना के तहत 69 लाख महिलाओं के लिए 1219 करोड़ रुपये खर्च किए गए। सीएजी ने पाया कि इस योजना के 10 प्रतिशत मामलों में दी गई सहायता की जांच प्रदेश सरकार को करनी थी, लेकिन 2008 से 2011 के बीच इस योजना में खर्च हुए 1085 करोड़ रुपये की जांच नहीं की गई। शाहजहांपुर के स्वास्थ्य केंद्र जलालाबाद में जिस नंबर की गाड़ी को किराए पर दो बार लिया गया दिखाया वो गाड़ी तो शाहजहांपुर के डीएम की सरकारी कार थी।

    इसी प्रकार 2005-11 के बीच 26 लाख लोगों का नसबंदी करने में नकद राशि देने के लिए 181 करोड़ रुपये खर्च किए गए। सीएजी ने पाया कि मिर्जापुर के चुनार में 10.81 लाख रुपये 1518 पुरुषों को दिए गए, लेकिन भुगतान रजिस्टर में न तो इनका अंगूठा लिया गया और न ही दस्तखत करवाए गए। जहां अंगूठा या दस्तखत लिया गया, वहां राशि अंकित नहीं की गई।

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