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    Lateral Entry: क्या है लेटरल एंट्री? जिस पर मचा सियासी बवाल; यह है इसके पीछे की पूरी कहानी

    Updated: Mon, 19 Aug 2024 07:00 AM (IST)

    लेटरल एंट्री के मुद्दे पर देश में सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। गांधी ने कहा कि इससे लोक सेवकों की भर्ती में आरक्षण खत्म हो जाएगा। वहीं भाजपा ने राहुल गांधी पर पलटवार किया और उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। सियासी हंगामे के बीच आइए जानते हैं क्या है लेटरल एंट्री... कब हुई इसकी शुरुआत।

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    लेटरल एंट्री के मुद्दे पर देश में सियासत गर्माई।

    जागरण, नई दिल्ली। संघ लोक सेवा आयोग की सेवाओं में लेटरल एंट्री को लेकर आजकल सियासत गरम है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। जिस मुद्दे को लेकर विपक्ष हंगामा मचा रहा है, जानते हैं इसके पीछे की कहानी।

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    संप्रग काल में आई पहली बार अवधारणा

    लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका समर्थन किया था।

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    एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था।

    एआरसी ने ये दिए थे तर्क

    • कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है जो पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए विषय विशेषज्ञों को शामिल करना जरूरी है।
    • इससे विशेषज्ञों का एक पूल तैयार होगा। ये विषय विशेषज्ञ अर्थशास्त्र, वित्त, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे।
    • लेटरल एंट्री को मौजूदा सिविल सेवाओं में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखते हुए उनके विशेषज्ञ कौशल का लाभ उठाया जा सके।

    मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार आयोग ने तैयार किया था आधार

    1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी। बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिये भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 वर्ष से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है।

    मोदी सरकार के दौरान लेटरल एंट्री की औपचारिक शुरुआत

    लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया।

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