अमेरिका के 100% टैरिफ पर क्या है भारत का प्लान? चीन से बाहर मैन्यूफैक्चरिंग का विकल्प तलाश रही कई कंपनियां
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्स देशों को धमकी दी कि अगर वे डॉलर की जगह किसी दूसरी करेंसी को सपोर्ट करेंगे तो अमेरिका उन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। ट्रंप की इस धमकी के बाद भारत चीन और कनाडा समेत कई देशों ने इसपर एतराज जताया। वहीं रिसर्च इंस्टीट्यूट जीटीआरआई ने डोनाल्ड ट्रंप की इस धमकी को अवास्तविक बताया।

पीटीआई, नई दिल्ली। सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत को चीन प्लस वन रणनीति अपनाने में अब तक सीमित सफलता मिली है। ट्रेड वॉच क्वार्टरली रिपोर्ट में नीति आयोग ने कहा कि इस नीति का अब तक वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया को बड़ा फायदा मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सस्ता श्रम, सरल कर कानून, कम शुल्क और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर हस्ताक्षर करने में तेजी जैसे कारकों से इन देशों को अपनी निर्यात हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिली।
तलाशने होंगे मैन्यूफैक्चरिंग के विकल्प
अमेरिका ने चीन की वृद्धि और तकनीकी प्रगति पर होने वाले खर्च को सीमित करने के लिए चीनी वस्तुओं पर सख्त निर्यात नियंत्रण और उच्च शुल्क लागू किए हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बड़ा बदलाव आया और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चीन से बाहर मैन्यूफैक्चरिंग का विकल्प तलाशना पड़ा।
मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाने का अवसर
भारत को उन कंपनियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य के रूप में देखा जाता है जो अपना मैन्यूफैक्चरिंग केंद्र चीन से बाहर स्थानांतरित करना चाहती हैं। यह बदलाव देश को घरेलू खासतौर पर उच्च तकनीक उद्योगों में अपनी मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। हालांकि, भारत को अब तक 'चीन प्लस वन रणनीति' अपनाने में सीमित सफलता मिली है।
उभरते बाजारों में संभावनाएं तलाशने के अवसर
हाल के वर्षों में श्रम आधारित क्षेत्रों के वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी घटी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन कई प्रमुख उत्पाद श्रेणियों में मुख्य प्रतिस्पर्धी है, जिससे भारत के लिए इन उत्पादों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विकसित बाजारों में शीर्ष उत्पाद श्रेणियों में मजबूत पकड़ बना ली है, लेकिन उभरते बाजारों में संभावनाएं तलाशने के लिए भी अवसर हैं।
ईयू के सीबीएएम से प्रभावित होंगे भारतीय उद्योग
यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) का आकलन करने वाले कई अध्ययनों में अफ्रीकी और एशियाई देशों को इसके प्रभावों के प्रति ''सबसे अधिक'' संवेदनशील बताया गया है। सीबीएएम का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को रोकना है और यह जनवरी 2026 से सीमेंट, लोहा और इस्पात, एल्युमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन जैसे उच्च जोखिम वाले आयातों पर लागू होगा।
भारतीय उत्पादों की मांग कम
ईयू को भारत के कुल निर्यात में लोहा और इस्पात उद्योग की 23.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। सीबीएएम लागू होने से भारतीय कंपनियों पर 20-35 प्रतिशत टैरिफ लग सकता है। इससे लागत बढ़ सकती है, प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है और ईयू के बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग कम हो सकती है। ईयू भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023-24 में भारत के कुल निर्यात में ईयू की करीब 17.4 प्रतिशत (76 अरब डालर) हिस्सेदारी रही है।
ट्रंप के उच्च आयात शुल्क के भारत को मिलेगा लाभ
रिपोर्ट जारी करने के बाद नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने बुधवार को कहा कि अमेरिका ने निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन और अन्य कारोबारी भागीदारों पर उच्च आयात शुल्क लगाने से भारत को निर्यात के मोर्चे पर लाभ मिलेगा। नीति आयोग के सीईओ ने घरेलू उद्योगों से इस अवसर का लाभ उठाने के लिए खुद को तैयार रहने के लिए भी कहा। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने अमेरिका को 77.51 अरब डालर का निर्यात किया। इस दौरान भारत का अमेरिका से आयात 42.2 अरब डालर रहा है। भारत के आइटी निर्यात राजस्व में अमेरिका की 70 प्रतिशत हिस्सेदारी रही है।
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