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    क्या होता है क्रायोजेनिक टैंकर, ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए क्यों अहम है, कैसे लिक्विड ऑक्सीजन गैस में बदल जाती है, जानिए पूरी जानकारी

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Tue, 27 Apr 2021 08:17 PM (IST)

    कोरोना संक्रमण में कई मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए क्रायोजेनिक टैंकर का इस्तेमाल किया जा ...और पढ़ें

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    लिक्विड ऑक्सीजन को बाहर की गर्मी से बचाता है टैंकर।

    नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना संक्रमण में कई मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए क्रायोजेनिक टैंकर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन टैंकरों की कमी की बात भी सामने आ रही है। आइए समझें कि क्रायोजेनिक टैंकर क्या होता है और ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए क्यों अहम माना जाता है।

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    लिक्विड ऑक्सीजन को बाहर की गर्मी से बचाता है टैंकर

    क्रायोजेनिक टैंकर में ऐसी गैसों का परिवहन किया जाता है, जिनके लिए बेहद कम तापमान की आवश्यकता होती है। इन गैसों में लिक्विड ऑक्सीजन, लिक्विड हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, हीलियम आदि शामिल हैं। ऑक्सीजन को टैंकर में बहुत कम तापमान (माइनस डिग्री) पर रखा जाता है। इस टैंकर में दो परतें होती हैं। अंदर वाली परत में लिक्विड ऑक्सीजन होती है। दोनों परतों के बीच निर्वात जैसी स्थिति रखी जाती है ताकि बाहर के वातावरण की गर्मी गैस तक न पहुंच सके।

    ऑक्सीजन की मात्रा मापने का तरीका

    लिक्विड ऑक्सीजन को लीटर में मापा जाता है। जब यह गैस रूप में आती है तो क्यूबिक मीटर में इसकी गणना की जाती है। जैसे एक किलोग्राम .876 लीटर और .77 क्यूबिक मीटर के बराबर होगा। एक टन ऑक्सीजन में 794.5 लीटर या 0.7945 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन होगी। ऑक्सीजन रखने के लिए पोर्टेबल सिलिंडर 2.7 किलोग्राम, 3.4 किलोग्राम, 4.9 किलोग्राम और 13.5 किलोग्राम क्षमता वाले होते हैं। ये सामान्यत: क्रमश: दो घंटा 4 मिनट, तीन घंटा 27 मिनट, पांच घंटा 41 मिनट और 14 घंटे 21 मिनट चलते हैं।

    कैसे लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदला जाता है

    लिक्विड ऑक्सीजन को गैस के रूप में बदलने के लिए वाष्पीकरण की तकनीक अपनाई जाती है। इसके लिए ऑक्सीजन प्लांट में उपकरण होते हैं। जैसे ही तापमान बढ़ता है, लिक्विड ऑक्सीजन गैस के रूप में बदलने लगती है। इसे सिलिंडर में भरने के लिए प्रेशर तकनीक अपनाई जाती है। छोटे सिलिंडर में कम दबाव तथा बड़े सिलिंडर में अधिक दबाव से गैस भरी जाती है।