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    क्या है ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ का सिद्धांत? जिसका मनीष सिसोदिया की जमानत पर SC ने दिया हवाला

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मनीष सिसोदिया की जमानत के वक्त ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ सिद्धांत का हवाला दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है कि अधीनस्थ अदालतों और उच्च न्यायालयों को इस सिद्धांत को मान्यता देनी चाहिए। बता दें कि दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया 26 फरवरी 2023 से जेल में बंद थे।

    By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sat, 10 Aug 2024 12:26 AM (IST)
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    दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया। ( फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिल गई है। जमानत देते वक्त शीर्ष अदालत ने ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ सिद्धांत को आधार बनाया है। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अपराध में दोषी घोषित होने से पहले लंबी अवधि तक जेल में रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। अनिश्चितकाल तक जेल में रखने से अनुच्छेद-21 में मिला स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार छिनता है।

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    अक्सर 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है' का जिक्र किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने लगभग 47 वर्ष पहले अपने ऐतिहासिक फैसले में पहली बार इस सिद्धांत का प्रतिपादित किया गया था। शुक्रवार को मनीष सिसोदिया को जमानत देते वक्त भी शीर्ष न्यायालय ने इसका हवाला दिया।

    1977 में पहली बार हुआ उल्लेख

    'जमानत नियम है और जेल अपवाद है' का पहली बार जिक्र 1977 में न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर ने ‘राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ ​​बलिया’ मामले में किया था। उस वक्त अदालतों ने कई मामलों में इसका उल्लेख किया था।

    देश में चार लाख से ज्यादा विचाराधीन कैदी

    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक 2022 तक देश में विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या चार लाख से अधिक थी। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन, बीआरएस नेता के. कविता, तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी, टीएमसी नेता अनुब्रत मंडल और यूनिटेक के प्रवर्तक संजय और अजय चंद्रा जैसे कुछ जाने-माने लोग भी शामिल हैं।

    शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कई बार 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है' सिद्धांत का उल्लंघन होता है। अब समय आ गया है कि अधीनस्थ अदालतों और उच्च न्यायालयों को इस सिद्धांत को मान्यता देनी चाहिए।

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