राज्य और केंद्र के बीच विवादों के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता अनुच्छेद 131
केंद्र और राज्य के बीच जब भी विवाद होता है यह अनुच्छेद सामने आता है। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में तीन तरह के मामले आते हैं जिनमें वास्तविक अपीलीय और परामर्श शामिल हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ सड़कों पर हिंसक रोष के बाद अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उधर, छत्तीसगढ़ सरकार भी यूपीए सरकार के बनाए राष्ट्रीय जांच एजेंसी कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है। इन दोनों मामलों में एक बात समान है और वो अनुच्छेद 131 है। जिसके तहत राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं। केंद्र और राज्य के बीच जब भी विवाद होता है यह अनुच्छेद सामने आता है। आइए जानते हैं क्या है यह अनुच्छेद और कैसे करता है काम।
यह है अनुच्छेद 131
सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में तीन तरह के मामले आते हैं, जिनमें वास्तविक, अपीलीय और परामर्श शामिल हैं। इनमें वास्तविक अधिकार क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट के पास निर्णय देने की विशेष शक्तियां होती हैं। अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमा तभी दाखिल किया जा सकता है जब वह केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद हो। साथ ही इसमें कानून और तथ्यों को लेकर सवाल होना चाहिए। जिस पर राज्य या केंद्र के कानूनी अधिकार का अस्तित्व निर्भर करता है। 1978 में कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ के बीच विवाद को लेकर न्यायमूर्ति पीएन भगवती ने कहा था कि अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट को एक मुकदमे को स्वीकार करने के लिए, राज्य को यह दिखाने की आवश्यकता नहीं है कि उसके कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है, लेकिन विवाद में कानूनी सवाल शामिल होना चाहिए।
विवादों के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट
संविधान के अंतर्गत बनाए गए कानूनों को उस वक्त तक संवैधानिक माना जाता है जब तक कि कोई अदालत उस पर रोक नहीं लगा देती है। हालांकि भारत के अद्र्ध संघीय ढांचे में अंतर सरकारी विवाद असामान्य नहीं है। संविधान निर्माताओं ने ऐसे मतभेदों की पहले से ही अपेक्षा की थी। यही कारण है कि उन्होंने समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट के वास्तविक मूल अधिकार क्षेत्र को जोड़ा। 1950 में अद्र्ध संघीय ढांचे की परिकल्पना की गई थी। इस परिकल्पना में राज्यों की शक्तियों को सम्मिलित किया गया था।
अन्य याचिकाओं से ऐसे अलग
केरल सरकार के अतिरिक्त कई और याचिकाएं भी सीएए के खिलाफ दायर की गई हैं। हालांकि सीएए को चुनौती देने वाली दूसरी याचिकाओं को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर किया गया है। यह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर अदालत को रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। राज्य सरकार इस प्रावधान के तहत अदालत का रुख नहीं कर सकती है, क्योंकि केवल लोग और नागरिक मौलिक अधिकारों का दावा कर सकते हैं। अनुच्छेद 131 के तहत, चुनौती तब दी जाती है जब किसी राज्य या केंद्र के अधिकार और शक्ति का प्रश्न हो। हालांकि सीएए के खिलाफ दायर दोनों ही तरह की याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक बताया गया है।
राजनीतिक मतभेद
सुलझाने के लिए नहीं अनुच्छेद 131 का उपयोग विभिन्न दलों के नेतृत्व वाली राज्य और केंद्र सरकारों के बीच राजनीतिक मतभेदों को सुलझाने के लिए नहीं किया जा सकता है।
केंद्र दे सकता है निर्देश
केंद्र के पास यह सुनिश्चित करने के लिए शक्तियां होती हैं, जिससे कानूनों को लागू किया जा सके। संसद द्वारा पारित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र, राज्य सरकार को निर्देश दे सकता है। यदि राज्य सरकार इन निर्देशों का पालन नहीं करती है तो केंद्र सरकार अदालत को कानून के अनुपालन के लिए बाध्य करने के लिए राज्यों के खिलाफ एक स्थायी निषेधाज्ञा मांग सकती है। अदालत के आदेशों का पालन न करने पर अदालत की अवमानना हो सकती है, और अदालत आमतौर पर कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार राज्यों के मुख्य सचिवों को दोषी मानती है।
सीएए पर उत्तर भारतीयों की सर्वाधिक सहमति
सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) के पक्ष और विपक्ष में दलीलें थम नहीं रही हैं। इस मसले पर बहस से ज्यादा प्रदर्शन हुएर्, ंहसक घटनाएं हुईं और आपराधिक मामले दर्ज हुए। यह बात और है कि देश का बड़ा हिस्सा सीएए को लेकर एकमत है, वो इस कानून से सहमत है। आइएएनएस सी वोटर स्नैप पोल के मुताबिक उत्तर भारतीयों में यह प्रतिशत सबसे ज्यादा है जबकि असहमति के पक्ष में असम खड़ा है।
असम में सिर्फ 31 फीसद समर्थन
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर असम के अलावा देशभर इसके पक्ष में आधी से ज्यादा आबादी है। पोल के मुताबिक 67.7 प्रतिशत उत्तर भारतीयों की आवाज सीएए के पक्ष में है। पश्चिम में यह प्रतिशत 64.2, दक्षिण में 58.5, पूर्व में 57.3, उत्तर पूर्व में 50.6 और असम में 31 है।
यूपी में सबसे ज्यादा घटनाएं
सीएए पर दो हिस्सों में बंटा देश अपनी तरह से सहमति और असहमति जता रहा था लेकिन 6 जनवरी का हिंसक प्रदर्शन 31 लोगों की मौत का सबब साबित हुआ। सबसे ज्यादा हिंसा उत्तर प्रदेश ने सही। जहां करीब 20 जिलों में प्रदर्शन के दौरान हादसे, आपराधिक घटनाएं और 22 लोगों की मौत के मामले दर्ज किए गए। इस दौरान हुई हिंसा में कर्नाटक में 2, असम में 6 और बिहार में एक मौत हुई। कुल 14 राज्यों के करीब 94 जिलों में सीएए को लेकर प्रदर्शन और हिंसा हुई।