90 के दशक में मारुति की जगह सोना खरीदने वाले आज कितनी संपत्ति के होते मालिक, ज्वैलरी की जगह क्या खरीद रहे लोग?
पिछले कुछ दशकों में सोने की कीमत में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जहाँ 1990 में एक किलोग्राम सोना मारुति 800 के बराबर था, वहीं अब यह लैंड रोवर के बराबर हो गया है। इस साल सोने ने 60% से अधिक का रिटर्न दिया है। वैश्विक अस्थिरता, अमेरिकी बॉन्ड रिटर्न में कमी और दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा खरीदारी सोने की बढ़ती मांग के प्रमुख कारण हैं।

ज्वैलरी की जगह लोगों का रुझान सिक्के व गोल्ड बार की खरीदारी में (फाइल फोटो)
राजीव कुमार, जागरण नई दिल्ली। वर्ष 1990 में अगर कोई व्यक्ति मारुति 800 कार की जगह एक किलोग्राम सोना खरीदा होता तो आज उस व्यक्ति की हैसियत लैंड रोवर कार खरीदने की होती। मशहूर उद्योगपति और आरपीजी समूह के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर बताया कि 1990 में एक मारुति कार और एक किलोग्राम सोना की कीमत बराबर थी।
दस साल बाद वर्ष 2000 में एक किलोग्राम सोने की कीमत एक एस्टीम कार के बराबर हो गई। मात्र पांच साल बाद 2005 में एक किलोग्राम सोने की कीमत इनोवा गाड़ी के बराबर तो वर्ष 2010 में फार्चुनर के बराबर हो गई। अब एक किलोग्राम सोने का भाव लैंड रोवर गाड़ी के बराबर हो गई। वर्ष 1990 में 24 कैरेट प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 3200 रुपए, वर्ष 2000 में 4400 रुपए, 2005 में 7000 रुपए, 2010 में 18,500 रुपए थी जो 2025 में 1.26 लाख रुपए तक पहुंच गई है।
सराफा बाजार में कितनी रही कीमत?
दिल्ली के सराफा बाजार में मंगलवार को 24 कैरेट के 10 ग्राम सोने की कीमत 1,28,500 रुपए बताई गई। इस साल सोना अब तक 60 प्रतिशत से अधिक का रिटर्न दे चुका है। सोने की इस बढ़ती कीमत के बीच ऐसा नहीं है कि सोने की खरीदारी थम गई है। कूंचा महाजनी स्थित दिल्ली सराफा बाजार के थोक कारोबारी विमल गोयल ने बताया कि कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी से जेवर की खरीदारी जरूर थोड़ी प्रभावित हुई है, लेकिन सिक्के व सोने की बार की बिक्री बढ़ गई है।
गोयल का मानना है कि इस साल धनतेरस पर भी सोने की कीमत मंगलवार के भाव की तरह ही या अधिकतम 500-1000 रुपए प्रति 10 ग्राम ऊपर-नीचे रहने की संभावना है। एलकेपी सिक्युरिटीज के वीपी रिसर्च एनालिस्टि (कमोडिटी एंड करेंसी) जतिन त्रिवेदी का मानना है कि अमेरिकी सरकार की जारी शटडाउन, अमेरिकी बांड की रिटर्न में कमी और वैश्विक उथल-पुथल की वजह से सोने में तेजी का रुख है।
अमेरिकी टैरिफ से कई देशों के शेयर बाजार प्रभावित
अमेरिका की टैरिफ नीति के बाद से दुनिया के तमाम शेयर बाजार प्रभावित हुए। प्रमुख देशों की राजनीतिक हालात में अस्थिरता है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, ईरान, इजरायल जैसे कई देश किसी न किसी कारण से उलझे हुए हैं। ऐसी स्थिति में निवेशकों का रुझान सोने को लेकर थमने का नाम नहीं ले रहा है। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत अवस्था में रखने के लिए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक की तरफ से सोने की खरीदारी में तेजी आई है।
सबसे बड़ी बात है कि सोने का वैश्विक उत्पादन हमेशा सोने की वैश्विक खपत से कम रहता है। वर्ष 2024 में सोने की वैश्विक खपत 4900 टन के पास रही तो सोने का वैश्विक उत्पादन 3800 टन रहा। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक वर्ष 2024 में दुनिया के विभिन्न सेट्रल बैंकों ने 1089 टन सोने की खरीदारी की।
कौन करता है सबसे ज्यादा उत्पादन
इस अवधि में ज्वैलरी निर्माण के लिए 1887 टन, टेक्नोलाजी में 326 टन तो निवेश के रूप में 1181 टन सोने की खरीदारी की गई। निवेश के रूप में सोने की खरीदारी की मात्रा लगातार बढ़ रही है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक चीन सालाना लगभग 380 किलोग्राम सोने का उत्पादन करता है। भारत का सोना उत्पादन में कोई स्थान नहीं है जबकि भारत में सालाना 800 टन की खपत है जो दुनिया में दूसरा सर्वाधिक खपत है।
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