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    ‘हम कुछ नहीं कर सकते’, SC ने खारिज की दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका

    Updated: Mon, 27 Jan 2025 03:29 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसके लिए समाज को बदलना होगा हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। याचिका में कहा गया था कि मौजूदा दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है ऐसे में इनमें सुधार किए जाने चाहिए।

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    SC ने खारिज की दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका (फाइल फोटो)

    एएनआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसके लिए समाज को बदलना होगा, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते।

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    याचिका में कहा गया था कि मौजूदा दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है, ऐसे में इनमें सुधार किए जाने चाहिए।

    न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि समाज को बदलना होगा और वह कुछ नहीं कर सकता।

    याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, समाज को बदलना होगा, हम कुछ नहीं कर सकते। संसदीय कानून हैं।

    यह याचिका अधिवक्ता विशाल तिवारी ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार और हाल ही में बेंगलुरु के तकनीकी विशेषज्ञ अतुल सुभाष की आत्महत्या के मद्देनजर उनके दुरुपयोग को रोकने की मांग की थी।

    याचिका में ऐसे कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे।

    याचिका में सरकार को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वह विवाह के दौरान दी गई वस्तुओं/उपहारों/धन की सूची बनाए तथा उसे हलफनामे के साथ बनाए रखे तथा उसका रिकॉर्ड रखा जाए तथा उसे विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र के साथ संलग्न किया जाए।

    याचिकाकर्ता ने कहा, दहेज निषेध अधिनियम और आईपीसी की धारा 498 ए का उद्देश्य विवाहित महिलाओं को दहेज की मांग और उत्पीड़न से बचाना है, लेकिन हमारे देश में ये कानून अनावश्यक और अवैध मांगों को निपटाने और पति-पत्नी के बीच किसी अन्य प्रकार का विवाद उत्पन्न होने पर पति के परिवार को दबाने के हथियार बन गए हैं और इन कानूनों के तहत विवाहित पुरुषों को गलत तरीके से फंसाए जाने के कारण महिलाओं के खिलाफ वास्तविक और सच्ची घटनाओं को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि दहेज के मामलों में पुरुषों को झूठे तरीके से फंसाने की कई घटनाएं और मामले सामने आए हैं, जिनका बहुत दुखद अंत हुआ है और इससे हमारी न्याय और आपराधिक जांच प्रणाली पर भी सवाल उठे हैं।

    उन्होंने आगे कहा कि यह केवल अतुल सुभाष का मामला नहीं है, बल्कि ऐसे पुरुषों की संख्या में कमी आई है, जिन्होंने अपनी पत्नियों द्वारा उन पर लगाए गए कई मामलों के कारण आत्महत्या की है।

    उन्होंने कहा, दहेज कानूनों के घोर दुरुपयोग ने इन कानूनों के उद्देश्य को विफल कर दिया है, जिसके लिए इन्हें बनाया गया था।

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