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    देश में कैसे हुई संविधान की हत्या? सुधांशु त्रिवेदी ने सात प्वाइंट्स में बताया; कांग्रेस को दी बड़ी चुनौती

    Updated: Sat, 13 Jul 2024 04:03 PM (IST)

    Sudhanshu Trivedi संविधान हत्या दिवस पर सियासी हंगामा जारी है। शनिवार को भाजपा के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर संविधान की हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सात तरीके से संविधान की हत्या की। त्रिवेदी ने यह भी बताया कि देश में आपातकाल लगाने की जरूरत क्यों पड़ी। उन्होंने कांग्रेस को आपातकाल के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने की चुनौती भी दी।

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    Sudhanshu Trivedi: भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी।

    ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। 12 जुलाई को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार ने 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' (Samvidhaan Hatya Diwas) मनाने का एलान किया। समूचे विपक्ष ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया। इसके एक दिन बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता सुधांशु त्रिवेदी (Sudhanshu Trivedi) ने विपक्ष पर कटाक्ष किया और पूछा कि क्या जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन अराजक था? मैं अखिलेश यादव से पूछना चाहता हूं कि क्या उनके पिता मुलायम सिंह अराजकता का हिस्सा थे?"

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    संविधान की हत्या क्या होती है? सुधांशु त्रिवेदी ने बताया

    1. आपातकाल में देश के सभी नागरिकों के मूल अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।
    2. पुलिस के पकड़ने पर कोई भी व्यक्ति अदालत नहीं जा सकता था।
    3. अगर कोई व्यक्ति यह कह दे कि 'इंदिरा गांधी की सरकार हटानी है' इस बात पर उसे जेल में डाला जा सकता था।
    4. आपातकाल में पूरा विपक्ष जेल में था। करीब डेढ़ लाख आम जनता 18 महीने जेल में रही।
    5. 38वां और 39वां संविधान संशोधन करके सरकार के किसी भी निर्णय पर न्यायिक समीक्षा का अधिकार समाप्त कर दिया गया था।
    6. संविधान की प्रस्तावना को बदल दिया गया था और सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्दों को जोड़ दिया गया... यह तब किया गया जब पूरा विपक्ष जेल में था।
    7. देश के ऊपर एक नेता को कर दिया गया था। 'इंदिरा इज इंडिया' कर दिया गया। कांग्रेस ने सात तरीके से संविधान की हत्या की। कांग्रेस से जवाब चाहिए। इजराइल-हमास युद्ध पर प्रस्ताव पारित करने वाली कांग्रेस वार्किंग कमेटी ने आज तक इस कृत्य पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया।

    क्यों लगाया गया था आपातकाल?

    त्रिवेदी ने कहा कि भारत के इतिहास में एक ही उदाहरण है जब किसी प्रधानमंत्री को चुनाव में धांधली का दोषी पाया गया। इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनावी कदाचार और चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी पाया था। उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उनकी सदस्यता बरकरार रखी गई। मगर वह सांसद के रूप में काम नहीं कर सकती थीं। वह छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकती थीं। लोकसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकीं और वोट भी नहीं दे सकती थीं। तभी उन्होंने आपातकाल लगाया। प्रधानमंत्री के किसी निर्णय पर कोई टिप्पणी भी कोर्ट नहीं कर सकता था।

    नेहरू सरकार पर भी साधा निशाना

    सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू सरकार में पहला संविधान संशोधन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए किया गया था। यह 1951 में चुनाव होने से पहले किया गया था। बाबासाहेब अंबेडकर ने इस निर्णय से इतना आहत महसूस किया कि उन्होंने एक बयान जारी करके अपना दुख व्यक्त किया।

    आलोचना करने पर होती थी जेल

    'संविधान की हत्या' तब हुई जब पंडित नेहरू की कार्यशैली की तुलना हिटलर से करने पर मजरूह सुल्तानपुरी को दो साल तक जेल में डाल दिया गया। 'संविधान की हत्या' तब हुई जब गायक किशोर कुमार के गीतों को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रतिबंधित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने से इनकार कर दिया था। 1980 में जब इंदिरा गांधी फिर सत्ता में वापस आईं तो राज्यों में विपक्ष की सभी सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया था।

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