Waqf Bill: लोकसभा में आज पेश होगा वक्फ बिल, क्या है संसद का नंबर गेम?
Waqf Bill लोकसभा और राज्यसभा का अंक गणित स्पष्ट है कि वक्फ संशोधन विधेयक की राह दोनों सदनों में निर्बाध है। अब सभी की नजरें राजनीतिक दलों के रुख पर है क्योंकि देश के अधिकतर दलों के लिए मुस्लिम वोट बैंक एक बड़ा सहारा है। केंद्र सरकार या कहें कि भाजपा चाहती है कि इस विधेयक पर अधिक से अधिक चर्चा हो।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली: वक्फ संशोधन विधेयक प्रत्यक्ष तौर पर वक्फ संपत्ति से जुड़ा मुद्दा है, लेकिन राजनीतिक दल बारीकी से इस पर भी नजर जमाए हैं कि वोटों के गुणा-भाग पर यह कितना असर डाल सकता है। पाला खींचकर निस्संकोच खड़ी भाजपा का तार्किक पक्ष है कि वह वक्फ कानून की विसंगतियों को दूर कर गरीब और पिछड़े मुस्लिमों का भला चाहती है।
इस तर्क से सहमति जताते हुए राजग सरकार के प्रमुख सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) सरकार का समर्थन तो कर रहे हैं, लेकिन सधे शब्दों में दलों की पुरानी ''सेक्युलर छवि'' को बचाए-बनाए रखने की चिंता झलकती है।
मुस्लिम वर्ग को विपक्ष क्या देना चाहता संदेश?
वहीं, विपक्षी खेमे से विधेयक के विरोध का सुर साझा है। निस्संदेह उनका दमखम विधेयक के बहुमत से पारित की राह में कोई रोड़ा नहीं बन सकता, लेकिन मुस्लिम वर्ग को यह संदेश देने का प्रयास संभावित है कि कौन कितना लड़ा, क्योंकि वोटों की तराजू में तेवरों की तौल से ही आस है।
मुस्लिम वोट बैंक पर हर पार्टी की निगाह
लोकसभा और राज्यसभा का अंक गणित स्पष्ट है कि वक्फ संशोधन विधेयक की राह दोनों सदनों में निर्बाध है। अब सभी की नजरें राजनीतिक दलों के रुख पर है, क्योंकि देश के अधिकतर दलों के लिए मुस्लिम वोट बैंक एक बड़ा सहारा है। केंद्र सरकार या कहें कि भाजपा चाहती है कि इस विधेयक पर अधिक से अधिक चर्चा हो। अल्पसंख्यक व संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजीजू ने स्पष्ट कहा है कि देश जानना चाहता है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर किस दल का क्या स्टैंड है। हजारों वर्षों तक यह रिकार्ड में भी रहेगा।
नीतीश-नायडू पर दबाव बनाना चाहते थे विपक्ष
इसके पीछे भाजपा की मंशा विपक्षी दलों को मुस्लिम तुष्टिकरण के कठघरे में खड़ा करने की दिखती है। मगर, विधेयक तो राजग सरकार ला रही है, जिसके प्रमुख घटक दल जदयू और तेदेपा भी हैं। इनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु, दोनों की छवि सेक्युलर नेताओं की रही है। विपक्षी इन्हीं दोनों पर दबाव बनाना चाह रहा था।
चूंकि, गठबंधन धर्म भी निभाना है, इसलिए दोनों दलों ने यह रुख तो स्पष्ट कर दिया कि वह पूरी तरह सरकार के साथ हैं और बिल का समर्थन करेंगे, लेकिन अपने शब्दों से मुस्लिम वर्ग को संदेश भी देने का प्रयास किया। जैसे कि लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता ललन ¨सह ने कहा कि जदयू या नीतीश को कांग्रेस के प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है। मुस्लिमों के लिए जितना काम नीतीश सरकार ने किया है, उतना किसी ने नहीं किया, जबकि विपक्ष के लिए सेक्युलर सिर्फ नारा है।
इसी तरह तेदेपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम कुमार जैन ने बयान जारी किया कि तेदेपा विधेयक का समर्थन करेगी। साथ ही जोड़ दिया कि सीएम नायडु हमेशा कहते हैं कि मुस्लिमों के हितों की रक्षा करेंगे। हिंदू और मुस्लिम उनकी दो आंखें हैं। आशा है कि सरकार ने बिल में उनकी पार्टी के सुझावों को शामिल किया होगा। अब बचा विपक्षी खेमा तो इसमें होड़ दिख रही है कि कौन मुस्लिमों के पक्ष में कितनी मजबूती से खड़ा दिख सकता है।
गौरव गोगोई ने बिजनेस एडवाइजरी कमेटी का किया बहिष्कार
कांग्रेस खुले विरोध का ऐलान कर चुकी। सांसद गौरव गोगोई ने बिजनेस एडवाइजरी कमेटी का बहिष्कार कर इसका संकेत दे दिया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव हों या प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव, वह कह चुके कि विधेयक का विरोध करेंगे, क्योंकि भाजपा सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना चाहती है।
मुस्लिम राजनीति के प्रमुख चेहरे एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि नीतीश हों, नायडु हों, चिराग पासवान या जयंत चौधरी, जो भी बिल का समर्थन करेगा, उसे खामियाजा भुगतना पड़ेगा। डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा है कि संसद में बिल का पुरजोर विरोध करेंगे।
वहीं, उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम गठजोड़ को अपनी राजनीति का आधार बनाना चाह रहे भीम आर्मी प्रमुख के सांसद चंद्रशेखर ने संसद से सड़क तक संघर्ष का ऐलान किया है। ऐसे में तय है कि लोकसभा में यह मौका हंगामेदार होगा, लेकिन किसके तेवर कितने तीखे होंगे, यह देखने वाला होगा।
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