संक्रामक रोगों से बचाव में मददगार है गिद्ध, विलुप्त होती इस प्रजाति के लिए गुड न्यूज
छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में तेजी से बढ़ रही संख्या, ऊंची पहाड़ी पर मिले प्राकृतिक आवास ने आसान किया काम, ब्रीडिंग सेंटर बनाने के प्रयास
बिलासपुर (शिव सोनी)। भारत जैवविविधताओं से परिपूर्ण देश है, जहां पूरी दुनिया का आठ फीसद जैवविविधता वाला भाग मौजूद है। सभी जीव एक दूसरे से खाद्य शृंखला द्वारा संबंधित हैं। इनमें से किसी एक का विलुप्त हो जाना, पूरी पारिस्थिति की को प्रभावित करता है।
गिद्ध को आहार शृंखला के सर्वोच्च स्थान पर आंका गया है। 90 के दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे, जो 12 लाख टन मांस को वार्षिक दर से समाप्त किया करते थे। आज इनकी 99 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है। ऐसे में अच्छी खबर छत्तीसगढ़ से आई है, जहां अचानकमार टाइगर रिजर्व के औरापानी बफर जोन में गिद्ध बड़ी संख्या में उड़ान भरते नजर आ रहे हैं।
बनाया जाएगा प्रजनन केंद्र
यहां गिद्धों की एकाएक बढ़ी संख्या को लेकर गंभीर वन विभाग अब इन्हें संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने की कवायद कर रहा है। डीएफओ कृष्ण जाधव ने बताया कि मुख्यालय से आदेश मिलने के बाद प्रजनन केंद्र स्थापित करने की योजना तैयार की जा रही है। इसके लिए भोपाल स्थित नेशनल पार्क और हैदराबाद जू के विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी।
उड़ते दिख रहे 50 से अधिक गिद्ध
कृष्ण जाधव ने बताया कि वर्तमान में यहां करीब 50 गिद्धों को उड़ान भरते देखा गया है। सुरक्षित स्थान होने के कारण कुनबा बढ़ रहा है। यह यहां किसी ऊंचे पेड़ या पहाड़ पर अपना भद्दा सा घोसला बनाते हैं। मादा एक या दो सफेद अंडे देती है।
यहां इसलिए बचे हैं गिद्ध
नेचर क्लब के संयोजक पर्यावरणविद मंसूर खान बताते हैं कि भौरमगढ़ पहाड़ 500 फीट की ऊंचाई पर है। जिस पर ऊंचे पेड़ों सहित एक गुफा भी है। यहां मानव दखलअंदाजी नहीं है। इस वजह से गिद्धों ने यह रहवास नहीं बदला। यहां गिद्ध 50 साल से रह रहे हैं। 1975-76 से इन्हें लगातार देखा जा रहा है। अब इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है।
राजाजी टाइगर रिजर्व में भी दिख रहे गिद्ध: हिमालय की तलहटी में स्थित राजाजी टाइगर रिजर्व में में पिछले दिनों अखिल भारतीय बाघ गणना के दौरान सफेद रंग के दो दर्जन गिद्ध देखे गए। अधिकारियों के मुताबिक इनकी संख्या यहां बढ़ रही है।
क्यों हुए विलुप्त
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. पीके चंदन बताते हैं कि खेतों में फर्टिलाइजर के अधिक प्रयोग व पालतू जानवरों को बीमारियों से बचाने के लिए दी जाने वाली डाइक्लोफेनेक दवा ने गिद्धों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया। मृत मवेशी के शरीर से यह रसायन गिद्ध तक पहुंचकर उसकी किडनी पर गंभीर असर करता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है।
क्यों जरूरी है गिद्ध
गिद्ध मृतोपजीवी पक्षी है, जिसका पाचनतंत्र मजबूत होता है, जिससे यह रोगाणुओं से परिपूर्ण सड़ा गला मांस भी पचा जाते हैं और संक्रामक रोगों का विस्तार रोकते हैं। इनके न होने से जंगली पशु-पक्षियों में विभिन्न संक्रामक रोग फैल रहे हैं।
ऐसे किया जा रहा संरक्षण
भारत सरकार ने गिद्धों के संरक्षण के लिए एक्ससीटू संरक्षण कार्यक्रम चला रखा है, जिसका उद्देश्य साल 2030 तक भारत में गिद्धों की पर्याप्त संख्या हासिल करना है। संरक्षित प्रजनन और सुरक्षित प्राकृतिक आवास मुहैया कराना इसमें शामिल हैं। वर्तमान में ऐसे प्राकृतिक क्षेत्रों को चिन्हित किया जा रहा है जहां गिद्धों की प्राकृतिक आबादी है और नए गिद्ध जन्म ले रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों के आस-पास डाइक्लोफेनेक-मुक्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करके उन्हें गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाना है।
काम कर रहे आठ प्रजनन केंद्र
तीन प्रजनन केंद्र पिंजौर (हरियाणा), राजभत्खावा (पश्चिम बंगाल) और रानी (असम) में चलाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा पांच चिड़ियाघरों जो कि जूनागढ़, भोपाल, हैदराबाद, गुवाहाटी और भुवनेश्वर में स्थित हैं, को भी गिद्ध प्रजनन के लिए मान्यता प्रदान की गई है।
स्वच्छ भारत अभियान का स्वयंसेवक
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर गिद्धों को स्वच्छ भारत अभियान का सबसे बड़ा स्वयंसेवक बताते हुए इनके संरक्षण के लिए सभी जरूरी कदम उठाने की बात कह चुके हैं।