अंतरिक्ष में आज भी मौजूद है केसरबाई की आवाज, गुरुदेव ने उन्हें दी थी सुरश्री की उपाधि
भारत की मशहूर क्लासिकल सिंगर केसरबाई केरकर की आवाज के साथ वॉयजर गोल्डन डिस्क आज भी सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद है। ...और पढ़ें

नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। केसरबाई केरकर किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। ये नाम है उस शास्त्रिय संगीत की महान गायिका का जिसकी आवाज आज अंतरिक्ष में मौजूद वोयजर के गोल्डन डिस्क का हिस्सा है। वर्ल्ड फेमस एथ्नोम्यूजोकोलोजिस्ट रोबर्ट ब्राउन ने उनके गायक को सर्वश्रेष्ठ माना था। केसरबाई भारत का वो चमकीला हीरा हैं जिनकी आवाज से आज पूरा ब्रह्मांड गूंज रहा है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है लेकिन ये सच है कि उन्होंने संगीत की शिक्षा महज आठ वर्ष की आयु में ही लेनी शुरू कर दी थी।
वॉयजर 1 और 2 के गोल्डन रिकॉर्ड
आपको बता दें कि वैज्ञानिकों ने सुदूर अंतरिक्ष में अन्य जीवों की खोज और अपनी मौजूदगी बताने के लिए वॉयजर गोल्डन डिस्क लॉन्च किया था। ये दो फोनोग्राफिक रिकार्ड हैं। इसमें धरती पर मौजूद लगभग हर चीज की आवाज है। इसमें से एक आवाज केसरबाई की भी है। इसके अलावा इस पर कुछ चित्र भी बने हुए हैं। इस डिस्क को अंतरिक्ष में भेजन का मकसद ये बताना है कि हम कौन हैं और कहां रहते हैं। दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ब्रह्मांड में हमारे अलावा भी कोई और है। इसकी वजह वैज्ञानिक धरती पर आने वाली उड़न तश्तरियों को भी मानते हैं। वॉयजर को वर्ष 1977 में सुदूर अंतरिक्ष में खोज के लिए लॉन्च किया था।
संगीत की प्रारंभिक शिक्षा
पद्म भूषण से सम्मानित केसरबाई का जन्म 13 जुलाई 1892 मे गोवा मे हुआ था। उस वक्त गोवा पुर्तगालियों के कब्जे में था और भारत पर अंग्रेजों का राज था। गोवा के छोटे से ताल्लुका पोंडा के एक गांव केरी से निकलकर वो अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आ गई थीं। यहां से ही उन्होंने उस्ताद करीम खान की शार्गिदी में सुरों को पहचाना और उनकी बारीकियों पर अपनी पकड़ बनानी शुरू की थी। कुछ समय बाद वो वापस अपने गृहनगर में स्थित लामगांव वापस गईं और गायक रामाकृष्णाबुवा वाजे से संगीत की आगे की शिक्षा ली।
बॉम्बे में ली आगे की शिक्षा
ये वो दौर था जब भारत के दूर-दराज से लोग बॉम्बे प्रजीडेंसी पहुंचते थे। उस वक्त बॉम्बे एक व्यापारिक केंद्र के रूप में खुद को स्थापित भी कर चुका था। यहां पर सुविधाएं भी थीं और अपनी कला को दूसरों तक पहुंचाने का ये एक अहम जरिया भी था। 16 वर्ष की उम्र में केसरबाई अपने अंकल और मां के साथ दोबारा बॉम्बे वापस आईं। उनके गायन शैली से प्रभावित होकर बॉम्बे के एक स्थानीय व्यापारी सेठ विठ्ठलदास द्वारकादास ने उनकी आगे पढ़ाई में मदद की। इस मदद से उन्होंने उस्ताद बरकतुल्लाह खान से आगे की शिक्षा हासिल की। उन्होंने खान से गायन की दूसरी बारीकियां भी सीखीं। बरकतुल्लाह पटियाला रियासत के बड़े संगीतकार थे और सितारवादक भी थे।

प्रोफेशनल सिंगर के तौर पर शुरुआत
उन्होंने लगातार दो वर्ष तक केसरबाई को संगीत के विभिन्न आयाम सिखाए। इसके बाद उनके गुरू मैसूर रियासत के सबसे बड़े सगीतज्ञ बन गए थे। केसरबाई ने भास्करबुवा बाखले से भी संगीत की शिक्षा हासिल की थी। केसरबाई ने करीब 11 वर्षों तक उस्ताद अलादिया खान से भी संगीत की शिक्षा हासिल की थी। ये उस दौर के सबसे बड़े उस्तादों में से एक थे और जयपुर अतरौली घराने के संस्थापक भी थे। 1930 में केसरबाई ने प्रोफेशनल सिंगर के तौर पर शुरुआत की। वे बतौर शार्गिद 1946 तक उस्ताद अलादिया से जुड़ी रहीं। 1946 में उस्ताद का निधन हो गया था।
कई आयाम स्थापित किए
केसरबाई ने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कई आयाम स्थापित किए। आगे चलकर किशोरी अमोनकर, गंगुबाई हंगल और हीराबाई बरोडकर ने उनकी गायन शैली को आगे बढ़ाया। केसरबाई ने उस वक्त विश्व विख्यात एचएमवी के लिए रिकॉर्डिंग दी। उन्होंने खुद खयाल गायिका के तौर पर स्थापित किया। केसरबाई केरकर को कला क्षेत्र में भारत सरकार वर्ष 1953 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार वर्ष 1969 मे पद्म भूषण से सम्मानित किया । केसरबाई केरकर को गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर ने ' सुरश्री ' की उपाधि दी थी । 16 सितंबर 1977 को उनका देहांत हो गया।

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