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    प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, विष्णु शंकर जैन बोले- 712 ईस्वी से पहले की स्थिति बहाल हो

    1991 के जिस प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला अक्सर दिया जाता है उसी की संवैधानिकता को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है। वकील विष्णु शंकर जैन ने इस संबंध में शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की है। समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए विष्णु शंकर जैन ने कहा हमने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

    By Jagran News Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Thu, 05 Dec 2024 03:11 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट में वर्शिप एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती (फोटो: एएनआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 1991 के जिस प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला अक्सर दिया जाता है, उसी की संवैधानिकता को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है। वकील विष्णु शंकर जैन ने इस संबंध में शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की है।

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    समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए विष्णु शंकर जैन ने कहा, 'हमने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद इस एक्ट का हवाला देते हुए कह रहा है कि आप राम मंदिर के अलावा किसी अन्य मामले में अदालत नहीं जा सकते'

    एक्ट को बताया असंवैधानिक

    जैन ने कहा, 'ये पूरी तरह से गलत और असंवैधानिक है। सबसे जरूरी बात ये है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में कटऑफ डेट 15 अगस्त 1947 क्यों रखी गई है। कट ऑफ डेट 712 ईस्वी होना चाहिए, जब मोहम्मद बिन कासिम ने पहला आक्रमण किया था और मंदिर तोड़े थे।'

    विष्णु जैन ने आगे कहा कि 'कट ऑफ डेट असंवैधानिक है। संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती, जो लोगों के कोर्ट जाने का अधिकार छीनती है।' जैन ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए कहा कि हमने आर्टिकल 14, 15, 19, 21 और 25 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी है।

    क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?

    1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार एक कानून लेकर आई थी, जिसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट कहा जाता है। इसके मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है।

    उस वक्त राम मंदिर का मामला कोर्ट में था, इसलिए उसे कानून से बाहर रखा गया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में सजा का भी प्रावधान था। उल्लंघन पर एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता था।

    क्यों पड़ी थी कानून की जरूरत?

    1990 के दौर में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। सोमनाथ से निकली रथयात्रा को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन उससे पहले ही बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। नरसिम्हा राव की सरकार आते-आते अयोध्या जैसे कई विवाद उठ खड़े हुए।

    इसे ही रोकने के लिए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लाया गया। लेकिन तब भी संसद में भाजपा ने इसका विरोध किया था। बिल को जेपीसी के पास भेजने की मांग की गई थी, लेकिन बावजूद इसके यह पास हो गया था।

    सुप्रीम कोर्ट में होनी है सुनवाई

    प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने से जुड़ी कुल 6 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। आज गुरुवार को इन मामलों में सुनवाई होनी है। चीफचीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच इनकी सुनवाई करेगी।