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    Vikram-S rocket launch: भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत, एक्सपर्ट व्यू

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Sat, 26 Nov 2022 12:35 PM (IST)

    इसरो की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा में प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट से आज हम चंद्रयान मंगलयान एवं गगनयान के प्रक्षेपण का सपना अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी आत्मनिर्भरता के कारण ही देख पा रहे हैं। यहआत्मनिर्भरता हमारे विज्ञानियों के परिश्रम और सरकार की स्वावलंबी योजनाओं के कारण प्राप्त हुई है।

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    देश की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र का प्रवेश भी हो गया है

    डा. राम प्रसाद प्रजापति। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आज हमें आत्मनिर्भरता हमारे विज्ञानियों के अथक परिश्रम और भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग की स्वावलंबी योजनाओं के कारण प्राप्त हुई है। डा. विक्रम साराभाई के प्रयासों से 1962 में भारत सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया और 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गई। इसरो की इस ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा में प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट से आज हम चंद्रयान, मंगलयान एवं गगनयान के प्रक्षेपण का सपना अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी आत्मनिर्भरता के कारण ही देख पा रहे हैं। इस कड़ी में इसरो द्वारा आज पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-6 और आठ नैनो उपग्रह पीएसएलवी-सी54 राकेट की सहायता से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किए जाएंगे।

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    यह भारत से पीएसएलवी की 56वीं उड़ान होगी और 2022 में इस राकेट का पांचवां और अंतिम प्रक्षेपण होगा। यह उपग्रह ओशनसैट शृंखला में तीसरी पीढ़ी का उपग्रह है, जो ओशनसैट-2 की सेवाओं को निरंतरता प्रदान करेगा। ये सभी उपग्रह मेक इन इंडिया के तहत देश में स्वनिर्मित हैं, जो कि अंतरिक्ष विज्ञान में हमारी आत्मनिर्भरता को दर्शाते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में उपलब्धियों की हमारी यह यात्रा कई सफलता और असफलताओं से होकर गुजरी है।

    भारतीय अंतरिक्ष विज्ञानियों के अथक प्रयासों से भारत के प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। हालाकि आर्यभट्ट ने कुछ ही दिनों में कार्य करना बंद कर दिया था, परंतु यह भारतीय विज्ञानियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी जिसने उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। भास्कर एवं रोहिणी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए स्वदेशी प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया गया। वर्तमान में मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी तकनीक आधारित श्रेष्ठ प्रक्षेपण यान बनाए गए हैं। इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के कारण हमने चंद्रयान तथा मंगलयान जैसे महत्वाकांक्षी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। इसके परिणामस्वरूप ही हम मंगलयान को सबसे कम खर्च और प्रथम प्रयास में प्रक्षेपित करने वाले पहले देश बने।

    इसरो के विभिन्न केंद्र आज बहुआयामी शोध क्षेत्रों जैसे-अंतरिक्ष विज्ञान, समुद्री विज्ञान, कृषि विज्ञान, सुदूर संवेदन, रक्षा संचार प्रणाली, मौसम विज्ञान इत्यादि में न केवल हमें आत्मनिर्भर बनाए हुए हैं, अपितु अन्य देशों की इन क्षेत्रों में हम पर निर्भरता बनी हुई है। इसरो ने आज तक लगभग 350 से अधिक उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है जिनमें 32 अन्य देशों के उपग्रह शामिल हैं। भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह आइआरएस-1 देश का पहला सुदूर संवेदी उपग्रह था, जिसके द्वारा मौसम संबंधी जानकारियों को प्राप्त किया जाता था। इस तकनीक को इसरो ने और विकसित कर आज कार्टोसैट, रिसैट, ओशनसैट शृंखला के उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए हैं, जो मौसम की सटीक जानकारी हमें प्रदान करते हैं। इन उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए आज हम अमेरिका और रूस की निर्भरता से मुक्त होकर आत्मनिर्भर बने हैं। पीएसएलवी-सी49 (पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल) स्वदेशी राकेट एसएलवी एवं जीएसएलवी का ही उन्नत संस्करण है।

    यह हमारे विज्ञानियों की मेहनत का फल है। यह उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में हमें वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ बनाए हुए है। राकेट निर्माण की तकनीक में आत्मनिर्भरता के लिए डा. अब्दुल कलाम का योगदान सदैव याद किया जाता है। इसरो की सुदूर संवेदन तकनीकों से आज देश में कृषि क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं जैसे फसल बीमा का लाभ, सिंचित एवं असिंचित भूमि का अनुमान, फसल क्षेत्रफल का निर्धारण, पेराई योग्य गन्ने का उत्पादन अनुमान, भू-जल की गुणवत्ता, ग्रामीण स्तर पर भू-जल की उपलब्धता इत्यादि का निर्धारण करने में बहुत सहायता मिल रही है। इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में आधुनिक लड़ाकू विमानों के परिचालन, जल, थल एवं नभ में सीमा चौकसी इसरो द्वारा संचालित उपग्रहों के कारण अत्यंत ही आसान हुई है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना, राष्ट्रीय जल परियोजना, आपदा प्रबंधन आदि में इसरो की तकनीकें सार्थक सिद्ध हुई हैं।

    खगोल क्षेत्र में एस्ट्रोसैट भारत का पहला मिशन है, जो लगातार खगोल एवं अंतरिक्ष के क्षेत्र में विज्ञानियों को महत्वपूर्ण सूचनाएं प्रेषित कर रहा है। वहीं आदित्य-1 भारत की अंतरिक्ष आधारित सौर वेधशाला है। इसके द्वारा सूर्य के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन, सूर्य द्वारा प्रेषित उच्च ऊर्जायुक्त सोलर तरंगें, सूर्य के वर्णमंडलीय में प्लाज्मा के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा, जिसका ताप लगभग एक लाख डिग्री सेल्सियस होता है। इसरो की भविष्य की महत्वपूर्ण योजनाओं में समानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम “गगनयान” है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2023 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना तथा उन्हें सुरक्षित धरती पर वापस लाने की योजना पर भी तीव्र गति से कार्य हो रहा है।

    भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भरता का प्रमुख कारण इसरो के विज्ञानियों द्वारा किए गए शोध एवं तकनीक का विस्तार है। आज हम अंतरिक्ष विज्ञान प्रणाली में अमेरिका की नासा, रूस की रासकासमास जैसी प्रतिष्ठित अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मनुष्य के सुगम्य जीवन के लिए विभिन्न परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं, जो अंतरिक्ष विज्ञान में हमारी आत्मनिर्भरता का प्रमाण है। इसरो की इन उपलब्धियों से निश्चित ही हमें गर्व की अनुभूति होती है, जो हमें अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करती है।

    [सह-प्राध्यापक, जेएनयू एवं इसरो परियोजना समन्वयक]

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