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    Vikram Batra को क्यों कहा जाता है कारगिल युद्ध का ‘शेरशाह’, पाकिस्तान के कई सैनिकों को चटाई थी धूल

    By Versha SinghEdited By: Versha Singh
    Updated: Fri, 07 Jul 2023 03:50 PM (IST)

    देश में जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है तो कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम इस युद्ध के साथ आज भी याद किया जाता है। इस युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा ने जिस तरह से पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लिया था उसका जिक्र आज भी सबकी जुबान पर होता है। इस खबर में हम जानेंगे विक्रम बत्रा की शौर्य की कहानी...

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    Vikram Batra को क्यों कहा जाता है कारगिल युद्ध का 'शेरशाह'

    नई दिल्ली, वर्षा सिंह। Vikram Batra Death Anniversary: जब-जब कारगिल युद्ध की बात आती है तब-तब सेना के एक ऐसे जांबाज का नाम जरूर लिया जाता है जिन्होंने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की धज्जियां उड़ा दी थीं। सेना के इस जांबाज सैनिक का नाम कैप्टन विक्रम बत्रा है। जिन्हें उनके दोस्त और आज जनता आज भी 'शेरशाह' के नाम से जानती है। 

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    बता दें कि आज शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की 24वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 7 जुलाई 1999 को पालमपुर के वीर सिपाही कैप्टन विक्रम बत्रा ने वीरगति प्राप्त की थी। उस समय दुश्मन विक्रम बत्रा के नाम से भी कांपते थे। 14 सितंबर 1974 को कांगड़ा जिले के पालमपुर के घुग्गर गांव में जन्में शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी सैन्य टुकड़ी शेरशाह के नाम से जानती थी। उनके अदम्य साहस और नेतृत्व प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था।

    कारगिल युद्ध को सालों बीत चुके हैं लेकिन आज भी इस जाबाज सिपाही की वीरता की कहानियां हमारी रगों में जोश भर देती हैं। आज भी जब युवा इनकी वीरता के परिचय को सुनते हैं तो हर एक युवा का मन करता है कि वह भी अपने देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हों जाए और देश की सेवा करे। 

    ये दिल मांगे मोर

    कारगिल युद्ध की सबसे मुश्किल चुनौतियों में शुमार प्वाइंट 4875 पर मोर्चा संभालना लोहे के चने चबाने जैसा था। ऊपर चढ़ने की संकरी जगह और ठीक सामने दुश्मन की ऐसी पोजीशन पर होना जहां से आसानी से वो आपको अपना निशाना बना सकता है। इन सब मुश्किलों के बाद भी कैप्टन विक्रम बत्रा के कदमों को दुश्मन रोक नहीं सके थे।

    बिजली की गति से दुश्मन के मोर्चे पर धावा बोलकर कैप्टन विक्रम बत्रा ने पहले हैंड टू हैंड फाइट की और उसके बाद प्वाइंट ब्लैक रेंज से दुश्मन के 5 सैनिकों को मिट्टी में मिला दिया। गहरे जख्म होने के बाद भी बत्रा यहीं नहीं रुके, वो क्रॉलिंग करते हुए दुश्मन के करीब तक पहुंचे और ग्रेनेड फेंकते हुए पोजीशन को क्लियर कर दिया।

    टीम का नेतृत्व कर रहे विक्रम बत्रा ने अपनी टीम में पूरी ताकत के साथ लड़ने का जुनून भरा। जब जख्मी विक्रम बत्रा को उनके सूबेदार ने रेस्क्यू करने की कोशिश की तो वो बोले तू बाल बच्चेदार है, हट जा पीछे। इसके बाद दुश्मन की गोली से विक्रम बत्रा शहीद हो गए। बाद में उनकी टीम ने प्वाइंट 4875 को वापस कब्जाने का लक्ष्य हासिल कर लिया। आज भी प्वाइंट 4875 को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है।

    'शेरशाह' नाम से जाने जाते थे बत्रा

    श्रीनगर-लेह रास्ते के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण चोटी 5140 को फतेह करने की जिम्मेदारी कैप्टन विक्रम बत्रा की टुकड़ी को दी गई थी। कैप्टन बत्रा पूर्व दिशा से इस चोटी की तरफ बढ़ रहे थे। बत्रा के इस ऑपरेशन की भनक तक दुश्मनों को नहीं लग सकी थी। जब टुकड़ी दुश्मनों के करीब पहुंच गई तो पाकिस्तानियों को इसका अंदाजा हो गया। जिसके तुरंत बाद दोनों तरफ से फायरिंग शुरु हो गई। इस दौरान विक्रम बत्रा की टीम ने 4 दुश्मनों को मार गिराया।

    20 जून 1999 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर बत्रा की टीम ने प्वाइंट 5140 चोटी पर कब्जा कर लिया। इस चोटी से बत्रा ने रेडियो पर संदेश दिया कि ये दिल मांगे मोर। इस ऑपरेशन के दौरान बत्रा को 'शेरशाह' कोड नेम दिया गया था।

    बता दें कि कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत कारगिल युद्ध के लिए भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

    कैप्टन विक्रम बत्रा को लेकर अधिक जानकारी के लिए हमने उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा जी से बात की। उन्होंने अपने बेटे में कई रोचक जानकारी हमारे साथ साझा कीं। 

    पालमपुर में जन्मे थे बत्रा

    कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता जी एल बत्रा ने दैनिक जागरण को बताया कि बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। विक्रम बत्रा का एडमिशन सबसे पहले DAV पब्लिक स्कूल पालमपुर में कराया गया था जहां उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद बत्रा का एडमिशन केंद्रीय विद्यालय पालमपुर में कराया गया था जहां उन्होंने कक्षा 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की थी। बचपन से ही बत्रा की रूची सेना के जवानों में थी। बचपन से ही बत्रा को वीरता की कहानियां बहुत पसंद आती थीं।

    सैनिकों की कहानियों में थी रुचि

    12वीं की पढ़ाई के बाद बत्रा अपनी आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चले गए और DAV कॉलेज में विज्ञान (मेडिकल ग्रुप) विषय से ग्रेजुएशन किया। कॉलेज में बत्रा NCCA एयर विंग, NCC में भी शामिल हुए। NCC में विक्रम बत्रा सीनियर अंडर ऑफिसर के पद पर थे। साल 1994 में बत्रा को एक शिपिंग कंपनी के साथ मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने अपना इरादा बदल दिया और साल 1995 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

    पहले ही प्रयास में हुआ था सिलेक्शन

    उन्होंने अंग्रेजी से एमए की पढ़ाई के लिए पंजाब विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, क्योंकि बत्रा आगे UPSC की तैयारी करना चाहते थे। उन्हें पता था कि उनका उद्देश्य आर्मी में जाना था। लेकिन उन्होंने बाद में CDS की परीक्षा दी। जिसे उन्होंने अच्छी रैंक से पास किया। जिसके बाद पहले ही प्रयास में उनका सिलेक्शन हो गया था। उन्होंने बताया कि बत्रा हमेशा से पढ़ाई और खेल कूद में अव्वल थे। वो हर चीज में ऑलराउंडर थे।