विभाजन की वह विभीषिका जिसमें 1.3 करोड़ लोगों को छोड़ना पड़ा था अपना आशियाना, मारे गए थे पांच से 10 लाख लोग
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दिन को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। भारत और पाकिस्तान का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और पलायन की ऐसी दर्दनाक कहानी है जिसमें लाखों लोग मारे गए थे।

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भाजपा 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मना रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (Jagat Prakash Nadda), केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर मौन मार्च में शामिल हुए। इस अवसर पर केंद्र सरकार की ओर से एक बुकलेट भी जारी की गई। पीएम मोदी ने कहा कि देश के बंटवारे के दर्ज को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहन और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी।
मानव विस्थापन और पलायन की दर्दनाक कहानी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हीं लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। वहीं सरकार की ओर से जारी बुकलेट में कहा गया है कि भारत का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और पलायन की दर्दनाक कहानी है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें लाखों लोग एकदम विपरीत वातावरण में नया आशियाना तलाश रहे थे।
जाते जाते गहरी टीस दे गए थे अंग्रेज
केंद्र सरकार की ओर से जारी बुकलेट में बताया गया है कि 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने एलान किया कि ब्रिटिश हुकूमत ने 30 जून, 1948 से पहले सत्ता का हस्तांतरण कर भारत छोड़ने का फैसला किया है। हालांकि अंग्रेजों ने जाते जाते भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की वह टीस भी दी जिसे आज तक नहीं भुलाया जा सका है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 2 जून, 1947 को विभाजन की योजना पर सहमति बनी थी।
कुछ नेताओं को इसमें नजर आ रहा था उज्ज्वल भविष्य
इस इतिहास की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि विभाजन के लिए वे ही नेता मानसिक रूप से तैयार थे, जिन्हें इसमें अपना हित और उज्ज्वल भविष्य नजर आ रहा था। 4 जून, 1947 को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने एक ऐतिहासिक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इसमें कोई दिक्कत नहीं है लोग खुद को स्थानांतरित कर लेंगे। लेकिन विभाजन के चलते 1.3 करोड़ लोगों को अपनी जड़ों से उखड़ कर विस्थापन का शिकार होना पड़ा था।
तार-तार हो गया था सामाजिक तानाबाना
बुकलेट के मुताबिक यह विश्वास और धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की कहानी होने के अतिरिक्त उस दर्ज की भी कहानी है कि कैसे लोगों का वर्षों पुराने सह-अस्तित्व का युग अचानक समाप्त हो गया था। लगभग 60 लाख गैर-मुसलमान उस क्षेत्र से पलायन कर गए जो बाद में पश्चिमी पाकिस्तान बन गया। 65 लाख मुसलमान पंजाब, दिल्ली, आदि के भारतीय हिस्सों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए थे।
मारे गए थे पांच से 10 लाख लोग
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के चलते 20 लाख गैर मुसलमान पूर्वी बंगाल से निकल कर पश्चिम बंगाल आए। पूर्वी बंगाल बाद में पूर्वी पाकिस्तान बन गया। 1950 में 20 लाख और गैर मुस्लमान पश्चिम बंगाल आए। दस लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान चले गए। इस विभीषिका में मारे गए लोगों का आंकड़ा पांच लाख बताया जाता है। लेकिन अनुमान है कि इस विभीषिका में लगभग पांच से 10 लाख लोगों की मौत हुई थी।
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