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    Verghese Kurien Birth Anniversary: खुद दूध न पीने वाले वर्गीज कुरियन ने रखी थी देश में दुग्ध क्रांति की आधारशिला

    By Vinay TiwariEdited By:
    Updated: Tue, 26 Nov 2019 08:23 AM (IST)

    Verghese Kurien Birth Anniversary तमाम तरह की तकनीकी शिक्षा लेने वाले वर्गीज कुरियन ने देश में दुग्ध क्रांति की आधारशिला रखी थी उनको ही इसका जन्मदायक माना जाता है।

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    Verghese Kurien Birth Anniversary: खुद दूध न पीने वाले वर्गीज कुरियन ने रखी थी देश में दुग्ध क्रांति की आधारशिला

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आमतौर पर इंजीनियरिंग करने वाले स्टूडेंट किसी निजी या सरकारी संस्थान में नौकरी की तलाश करते हैं मगर वर्गीज कुरियन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने विज्ञान में स्नातक किया, चेन्नई के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली उसके बाद फिर डेयरी इंजीनियरिंग में डिग्री ली। बेंगलूर के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कुरियन अमेरिका गये जहां उन्होंने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था। भारत लौटने पर कुरियन को अपने बांड की अवधि की सेवा पूरी करने के लिए गुजरात के आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करने का मौका मिला।

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    सरकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की रखी आधारशिला

    भारत को दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बनाने के लिए श्वेत क्रांति लाने वाले वर्गीज कुरियन को देश में सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखने का श्रेय जाता है। अरबों रुपये वाले ब्रांड ‘अमूल’ को जन्म देने वाले कुरियन की आज जयंती है। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए रैमन मैग्सेसे पुरस्कार और अमेरिका के इंटरनेशनल पर्सन ऑफ द ईयर सम्मान से भी नवाजा गया।

    जन्म और शिक्षा

    केरल के कोझिकोड में 26 नवंबर, 1921 को जन्मे कुरियन ने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जी सी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। जमशेदपुर स्थित टिस्को में कुछ समय काम करने के बाद कुरियन को डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी गई।

    एक छोटे से गैराज से हुई अमूल की शुरुआत

    आजाद भारत को श्वेत क्रांति की राह दिखाने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन ने मध्य गुजरात के आणद में आकर एक छोटे से गैराज से अमूल की शुरुआत कर सहकारी साम्राज्य की स्थापना की। अपने साथी त्रिभुवन भाई पटेल के इसी गैराज में उन्होंने अपने जीवन के कई साल गुजारे थे। डॉ. कुरियन 13 मई 1949 को आणद आ गए थे। ईसाई समुदाय से होने और मांसाहारी होने के चलते उन्हें यहां किसी ने अपना घर किराए पर नहीं दिया। लिहाजा, उन्होंने 1949 में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड के अध्यक्ष त्रिभुवन दास पटेल के अनुरोध पर डेयरी का काम संभाला। उस समय डेयरी उद्योग पर निजी लोगों का कब्जा था। सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर इस डेयरी की स्थापना की गयी थी। बाद में पटेल ने कुरियन को एक डेयरी प्रसंस्करण उद्योग बनाने में मदद करने के लिए कहा जहां से ‘अमूल’ का जन्म हुआ। 

    अमूल के सहकारी मॉडल को मिली सफलता, गुजरात में हुई चर्चा

    अमूल के सहकारी मॉडल को सफलता मिली और पूरे गुजरात में इसे देखा जाने लगा। बाद में अलग अलग दुग्ध संघों को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) के बैनर तले एक जगह लाया गया। कुरियन ने सहकारिता के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में अपना कॅरियर समर्पित कर दिया और 1973 से 2006 तक जीसीएमएमएफ की सेवा की। उन्होंने 1979 से 2006 तक ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (आईआरएमए) में भी काम किया।

    भारतीय दुग्ध उद्योग की बदल दी दिशा और दशा

    आणंद में कुरियन के काम करने के दौरान भारतीय दुग्ध उद्योग की दिशा और दशा ही बदल गयी। गुजरात में पहले दुग्ध सहकारी संघ की शुरूआत 1946 में की गयी थी जब दो गांवों की समितियां इसकी सदस्य बनीं। सदस्य समितियों की संख्या आज 16,100 हो गयी है जिसमें 32 लाख सदस्य दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। भैंस के दूध से पहली बार पाउडर बनाने का श्रेय भी कुरियन को जाता है। उनके प्रयासों से ही दुनिया में पहली बार गाय के दूध से पाउडर बनाया गया।

    राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड का हुआ था गठन

    अमूल की सफलता से अभिभूत होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया जिससे पूरे देश में अमूल मॉडल को समझा और अपनाया गया। कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। एनडीडीबी ने 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरूआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। कुरियन ने 1965 से 1998 तक 33 साल एनडीडीबी के अध्यक्ष के तौर पर सेवाएं दीं। 60 के दशक में भारत में दूध की खपत जहां दो करोड़ टन थी वहीं 2011 में यह 12.2 करोड़ टन पहुंच गयी।

    मिल्कमैन ऑफ इंडिया बने

    कुरियन के निजी जीवन से जुड़ी एक रोचक और दिलचस्प बात यह है कि देश में ‘श्वेत क्रांति’ लाने वाला और ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर यह शख्स खुद दूध नहीं पीता था। वह कहते थे, मैं दूध नहीं पीता क्योंकि मुझे यह अच्छा नहीं लगता।

    फिल्म मंथन की कहानी भी लिखी

    वर्गीज कुरियन और श्याम बेनेगल ने मिलकर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म मंथन की कहानी भी लिखी है जिसे करीब 5 लाख किसानों ने वित्तीय सहायता दी। विश्व बैंक ने गरीबी उन्मूलन के लिए अमूल मॉडल को चिन्हित किया है। अमूल मॉडल को व्यापक और लोकप्रिय बनाने में वर्गीज़ की बड़ी भूमिका रही है। ‘अमूल’ के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वयं जवाहर लाल नेहरू इसके उद्घाटन के अवसर पर आए थे।