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    वेदांता समूह के चेयरमैन ने बताया कैसे आयातित तेल पर निर्भरता को खत्म कर सकता है भारत, अनिल अग्रवाल ने बताए तरीके

    By Jagran NewsEdited By: Abhinav Atrey
    Updated: Fri, 03 Nov 2023 07:58 PM (IST)

    वेदांता समूह ने पूर्व में भारत की प्रमुख निजी हाइड्रोकार्बन कंपनी केयर्न इनर्जी का अधिग्रहण किया था। यह भारत के घरेलू कच्चे तेल उत्पादन का तकरीबन 25 फ ...और पढ़ें

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    अनिल अग्रवाल ने बताया कैसे आयातित तेल पर निर्भरता को खत्म कर सकता है भारत (फोटो एक्स)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2015 में आयोजित ऊर्जा संगम कार्यक्रम में वर्ष 2020 तक कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता 10 फीसद घटाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन हकीकत में आज भारत अपनी जरूरत का 87 फीसद तक कच्चा तेल बाहर आयात करने लगा है।

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    भारत के हाइड्रोकार्बन सेक्टर में काफी रूचि रखने वाले प्रसिद्ध उद्योगपति और वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने केंद्र सरकार के समक्ष कुछ प्रस्ताव रखे हैं, जिससे भारत अपने फील्डों से कच्चे तेल का उत्पादन काफी बढ़ा सकता है। इसमें एक प्रमुख सुझाव यह है कि दूसरे उद्योगों की तरफ भारत में तेल खोज और शोधन के लिए पीएलआई या एक्सप्लोरेशन आधारित स्कीम की घोषणा करनी चाहिए और टैक्स बोझ को कम करना चाहिए।

    गैस और तेल सेक्टर को कुछ नहीं दे रही सरकार- अग्रवाल

    वेदांता समूह ने पूर्व में भारत की प्रमुख निजी हाइड्रोकार्बन कंपनी केयर्न इनर्जी का अधिग्रहण किया था। यह भारत के घरेलू कच्चे तेल उत्पादन का तकरीबन 25 फीसद उत्पादित करती है। अग्रवाल ने शुक्रवार को सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी बात विस्तार से रखी है। उन्होंने लिखा है कि भारत सरकार हर सेक्टर को कृषि, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा को सब्सिडी दे रही है। लेकिन गैस और तेल सेक्टर को कुछ नहीं दिया जा रहा है, जबकि हम अभी 100 डॉलर प्रति बैरल की दर से उनका आयात कर रहे हैं।

    अनिल अग्रवाल का दूसरा सुझाव

    उन्होंने कहा कि इनके लिए प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम या एक्सप्लोरेशन लिंक्ड स्कीम होनी चाहिए। अनिल अग्रवाल की दूसरी मांग यह है कि अभी इस सेक्टर की कंपनियों पर 60-70 फीसद तक टैक्स लगाया जाता है, जिसे घटा कर 30 फीसद के स्तर पर लाया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने इसे स्पष्ट नहीं किया है। उनका तीसरा सुझाव है कि अभी कच्चे तेल उत्पादन की खोज और उत्पादन के लिए 10 वर्ष का लाइसेंस दिया जा रहा है, जबकि यह अवधि 70 वर्षों के लिए होनी चाहिए तभी कंपनियां अधिकतम निवेश कर सकेंगी।

    अनिल अग्रवाल का अंतिम सुझाव

    अंतिम सुझाव के तौर पर उन्होंने सरकार के मंजूरियों को देने में होने वाली लेट-लतीफी का मुद्दा उठाया है और आग्रह किया है कि सभी तरह की मंजूरियां एक निर्धारित समय सीमा के भीतर देने की व्यवस्था होनी चाहिए। यह पहला मौका नहीं है कि जब वेदांता समूह की तरफ से हाइड्रोकार्बन सेक्टर में नीतिगत खामियों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करवाया गया है।

    कुछ वर्ष पहले इस समूह ने तकरीबन सभी प्रमुख समाचार पत्रों में एक पेज का विज्ञापन दे कर तकरीबन यही बातें उठाई थी। आज भी उन्होंने भारत के पेट्रोलियम सेक्टर की स्थिति को काफी मजेदार तरीके से पेश किया है।

    एशिया का सबसे पहला तेल कुंआ भारत में खोदा गया

    अग्रवाल ने लिखा है कि, "अगर मैं आपसे पूंछू कि एशिया का सबसे पहला तेल कुंआ कहां खोदा गया था तो आप संभवत: पश्चिम एशिया का नाम लेंगे, लेकिन सबसे पहला तेल कुंआ भारत में खोजा गया था। भारत के पास इसकी सालाना क्षमता से तीन गुणा ज्यादा तेल भंडार है, लेकिन यह अपनी जरूरत का 90 फीसद आयात करता है। जब तक ढूंढेंगे नहीं तब तक मिलेगा नहीं।"

    बताते चलें कि पिछले दो दशकों में निजी क्षेत्र को भारत के हाइड्रोकार्बन सेक्टर में तेल खोज और शोधन के लिए आमंत्रित करने की काफी कोशिश की गई हैं, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ है। हर बार पेट्रोलियम मंत्रालय पिछली बार से बेहतर नीति बनाने का दावा करता है लेकिन जमीन पर कोई असर नहीं हुआ है।

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