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विश्व नगर दिवस : वैशाली को जीतने के लिए बसाया गया था पाटलिपुत्र

पटना ऐसी कई खूबियों से भरा पड़ा है इस शहर को जितना पढ़ेंगे, जितना समझेंगे, उतना ज्यादा इसके प्रति गौरव बढ़ता जाएगा।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 04:50 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 04:50 PM (IST)
विश्व नगर दिवस : वैशाली को जीतने के लिए बसाया गया था पाटलिपुत्र
विश्व नगर दिवस : वैशाली को जीतने के लिए बसाया गया था पाटलिपुत्र

कुमार रजत, पटना। आइए, आपको एक शहर घुमाते हैं। बेहद पुराना शहर, जो कैलेंडर हम देखते हैं उससे भी पुराना। जो हजारो साल पहले भी राजधानी थी और आज भी है। जहां की इमारतें सैकड़ों साल पुरानी हैं, ऐसा शहर जिसे विश्वविजेता सिकंदर भी नहीं जीत पाया। इस शहर में एक कुआं है, जिसकी गहराई अभी तक नहीं मापी जा सकी है। इतने पुराने पेड़ की लकड़ी है, जो अब पत्थर बन गई है।

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लाइब्रेरी इतनी पुरानी है, जिसमें सोने के अक्षरों से लिखा रामायण है। जानते हैं, ये शहर कौन सा है, ये शहर अपना पटना है। वह कुआं है मौर्यकालीन अगमकुआं, वह पेड़ पटना संग्रहालय में रखा विशाल वृक्ष है, जिसकी उम्र 10 करोड़ साल बताई जाती है। वह लाइब्रेरी खुदाबख्श लाइब्ररी है, जिसका नाम देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान से लिया जाता है। पटना ऐसी कई खूबियों से भरा पड़ा है। इस शहर को जितना पढ़ेंगे, जितना समझेंगे, उतना ज्यादा इसके प्रति गौरव बढ़ता जाएगा।

ढाई हजार साल पहले बसा पाटलिपुत्र
पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है, यानी आज से लगभग ढाई हजार साल पहले। तब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहां स्थापित की और पाटलिपुर शहर की नींव पड़ी। उद्देश्य था वैशाली साम्राज्य पर कब्जा। पाटलिपुत्र नाम पाटलि वृक्षों के कारण पड़ा जो यहां बहुतायत संख्या में थीं। अब भी शहर में इसके पेड़ इक्का-दुक्का दिख जाते हैं। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अंतिम दिनों में पाटलिपुत्र से गुजरे। उन्होने ये भविष्यवाणी की थी कि नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा, पर इसे पानी, आग और अंतर्कलह से हमेशा खतरा रहेगा।

1,000 वर्ष तक पाटलिपुत्र का इतिहास ही भारत का इतिहास
321 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफगानिस्तान तक फैला था। पाटलिपुत्र साम्राज्य के गौरव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 1,000 वर्षों तक पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बना रहा। माना जाता है कि इस दौरान पाटलिपुत्र का इतिहास ही भारत का इतिहास है।

लकड़ियों से बनी थीं नगर की दीवारें 
पाटलिपुत्र नगर गंगा के किनारे बसा था। यह शहर चारों ओर से मजबूत लकड़ियों की दीवारों से घिरा था। आज भी पटना सिटी का पश्चिम दरवाजा और पूरब दरवाजा इसकी याद दिलाते हैं। अशोक राजपथ मुख्य सड़क थी जो सीधे दुर्ग तक जाती थी। बाद में सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना मे तब्दील किया। चीन के फाहियान ने, जो कि सन् 399-414 तक भारत यात्रा पर था, अपने यात्रा-वृतांत में यहां के शैल संरचनाओं का वर्णन किया है। यूनानी इतिहासकार मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया और इंडिका नाम के किताब की रचना की। ज्ञान की खोज में, बाद में कई चीनी यात्री यहां आए और उन्होने भी यहां के बारे में, अपने यात्रा-वृतांतों में लिखा है।

1704 में मिला नया नाम 'अजीमाबाद'
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा। 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया। हालांकि पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा। मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने यहां अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस काल में कुछ समय के लिए शेरशाह सूरी ने पाटलिपुत्र को फिर से पुराना गौरव दिलाने की कोशिश की। अकबर के सचिव अबुल फजल ने अपनी लिखी किताब आइने अकबरी में पाटलिपुत्र को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र बताया है। पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल का उल्लेख भी मिलता है। इसके बाद 1704 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने प्यारे पोते और पटना के सूबेदार मुहम्मद अजीम के अनुरोध पर शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया।

1764 ई. में बक्सर के युद्ध के बाद पटना ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा। अंग्रेजी शासन में बंग-भंग हुआ जिसके बाद बिहार और ओडिशा बंगाल से अलग हो गए। इसके बाद 1912 ईं. में पटना को फिर से राजधानी बनने का गौरव हासिल हुआ।


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