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यूपी पंचायत चुनाव का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को दी गई चुनौती

यूपी पंचायत चुनाव मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के गत 15 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई है। उस आदेश में हाईकोर्ट ने 16 सितंबर 2015 के शासनादेश की आरक्षण नीति के मुताबिक पंचायत चुनाव कराने का आदेश दिया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 09:24 PM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 09:24 PM (IST)
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 15 मार्च के आदेश को दी गई चुनौती।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश का पंचायत चुनाव मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के गत 15 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई है। उस आदेश में हाईकोर्ट ने 16 सितंबर 2015 के शासनादेश की आरक्षण नीति के मुताबिक पंचायत चुनाव कराने का आदेश दिया है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के 15 मार्च के आदेश को दी गई है चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका सीतापुर जिले के बरोसा गांव के रहने वाले दिलीप कुमार ने दाखिल की है। याचिका में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट ने उस आदेश में 11 फरवरी 2021 का शासनादेश रद कर दिया है जिसमें 1995 से लेकर अभी तक सिर्फ 2015 को छोड़कर आरक्षण का रोटेशन सिस्टम अपनाया गया था। याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने 2015 की आरक्षण नीति के हिसाब से पंचायत चुनाव कराने को कहा है। 2015 में नए सिरे से आरक्षण का रोटेशन सिस्टम अपनाया गया था।

याचिकाकर्ता ने कहा- हाईकोर्ट ने कानूनी मुद्दा तय किये बगैर आदेश जारी कर दिया

याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार ने 11 फरवरी के आदेश के मुताबिक चुनाव की सारी तैयारी कर ली थी और अंतिम सूची प्रकाशित होने वाली थी। याचिकाकर्ता ने कहा है कि वह अनुसूचित जाति का है। हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में वह या उसके समकक्ष कोई भी पक्षकार नहीं था। याचिकाकर्ता के गांव के लोगों की याददाश्त के मुताबिक उसके गांव में कभी अनुसूचित जाति का प्रधान नहीं हुआ है। 1995 में हुए 73वें संशोधन के बाद से तो नहीं ही हुआ है। कहा गया है कि हाईकोर्ट ने कानूनी मुद्दा तय किये बगैर आदेश जारी कर दिया।

हाईकोर्ट को रोटेशनल और डीलिमिटेशन आरक्षण का कानूनी मुद्दा तय करना चाहिए

हाईकोर्ट को रोटेशनल और डीलिमिटेशन आरक्षण का कानूनी मुद्दा तय करना चाहिए था। याचिका में याचिकाकर्ता के गांव के आरक्षित और गैर-आरक्षित वर्ग की जनसंख्या का ब्योरा दिया गया है। कहा गया कि सीतापुर के बरोसा गांव में 27.80 फीसद अनुसूचित जाति वर्ग के लोग हैं और पिछले 25 सालों से (1995) से अभी तक कभी एससी वर्ग के प्रधान के लिए सीट आरक्षित नहीं हुई। यह मौका 2015 में आया था लेकिन उस समय रोटेशन सिस्टम नए सिरे से सेट हो गया। इस बार फिर हुआ है। हाईकोर्ट के आदेश के कारण आरक्षण के रोटेशन सिस्टम के हिसाब से बरोसा गांव में एससी वर्ग का नंबर 2041 में आएगा। अन्य क्षेत्रों में भी यही स्थिति है।


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