अपनी ही तलवार से मारे गए जोधपुर के राजकुमार या कुछ और? रहस्यमयी मौत, जो आज तक बनी हुई है एक पहेली
राजस्थान के शाही इतिहास में राव राजा हुकुम सिंह की कहानी अनसुलझी है। जोधपुर नरेश हनमंत सिंह के बेटे हुकुम सिंह की 1981 में हत्या हो गई थी। माता-पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण सौतेली मां ने किया। युवा कांग्रेस में शामिल होने और जायदाद में हिस्सा मांगने से परिवार में कलह हुई। हत्या के बाद गुमान सिंह नामक व्यक्ति गिरफ्तार हुआ, पर जांच ठंडी पड़ गई, और रहस्य बरकरार रहा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजस्थान का शाही इतिहास काफी पुराना है। यहां अनगिनत कहानियां अपने आप को बयां करती है। ऐसी ही एक कहानी है राव राजा हुकुम सिंह कि जो जोधपुर नरेश हनमंत सिंह और एक्ट्रेस जुबैदा के बेटे थे। हुकुम सिंह ने अपना पूरा जीवन बहादुरी से जिया लेकिन मौत उन्हें बेहद हिंसक मिली। उनकी हत्या को चार दशक से भी ज्यादा का समय बीत चूका है। 17 अप्रैल, 1981 की रात को हुई उनकी नृशंस हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या का रहस्य राजस्थान के शाही गलियारों में अभी भी घूमता रहा है।
कम उम्र में उठा माता-पिता का साया
जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह और उनकी दूसरी पत्नी ज़ुबैदा के घर 1951 में जन्मे हुकम सिंह की कहानी शुरू से ही दुखभरी रही। 1952 में जब वे महज 1 साल के थे एक विमान दुर्घटना में उनके माता-पिता की मौत हो गई थी। इसके बाद, इस शिशु राजकुमार का पालन-पोषण उनकी सौतेली मां राजमाता कृष्णा देवी, उनके सौतेले भाई महाराजा गज सिंह द्वितीय के साथ मिलकर किया।
राजपरिवार का बागी राजकुमार
जोधपुर के राजपरिवार का जनसंघ से पुराना संबंध था। हालांकि, हुकम सिंह अपनी राह खुद तय करने पर अड़े हुए थे। अपने परिवार के राजनीतिक रुख़ को दरकिनार करते हुए, उन्होंने युवा कांग्रेस का दामन थाम लिया, उनके इस फैसले से महल में हडकंप मच गया। यह उनका इकलौता विद्रोह नहीं था। वे अक्सर अपनी जायदाद, आभूषण और विरासत में अपना हिस्सा मांगते थे। ये दावे शाही परिवार में कलह का कारण बनते थे। इस बीच राजेश्वरी देवी से जल्दी ही उनकी शादी कर दी गई थी, इस उम्मीद में कि इससे उनका स्वभाव शांत हो जाएगा, लेकिन परिणाम इसके उलट हुए। हुकम की बेचैनी बढ़ती ही गई।
हत्या के रहस्य से नहीं उठ सका पर्दा
17 अप्रैल 1981 की वो काली रात जब हुकुम सिंह कि हत्या की गई। इस संबंध में कई कहानी प्रचलित है। आधिकारिक बयान के अनुसार, हुकम सिंह ने उस दिन बहुत ज़्यादा शराब पी रखी थी। इस बीच नशे में धुत चार-पांच आदमियों से उनका झगड़ा हो गया। बहस इतनी बढ़ गई कि तलवारें निकल आईं । इसी झड़प में राजकुमार की हत्या कर दी गई। भले ही ये कहानी बयानों के मुताबिक़ गढ़ी गई लेकिन शुरू से ही इसमें विरोधाभास देखा गया। दरअसल उनकी पत्नी राजेश्वरी ने जांचकर्ताओं को बताया कि उनके पति ने अपनी मौत से एक साल पहले ही शराब पीना छोड़ दिया था।
इस हत्या के संबंध में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है। इसमें कहा गया है कि हुकम सिंह पर जब हमला हुआ तो वे अपने घर राय का बाग हवेली के बगीचे में चारपाई पर सो रहे थे। उनकी चारपाई टूटी हुई मिली, उनकी कलाई पर घड़ी टूटी हुई थी, और ज़मीन पर झड़प के निशान थे। बस पास में पड़ा एक छोटा सा पानी का बर्तन ही सही सलामत बचा था। जिन लोगों ने इस दृश्य को देखा वे पहली कहानी पर कभी यकीन नहीं कर पाएं।
इस घटना पर एक तीसरी कहानी भी चर्चे में थी। फिल्म निर्माता इस्माइल मर्चेंट ने अपनी आत्मकथा " माई पैसेज फ्रॉम इंडिया" में दावा किया है कि वह और उनके सौतेले भाई, महाराजा गज सिंह, उम्मेद भवन पैलेस में एक रात्रिभोज में शामिल हुए थे, जब हुकुम सिंह अचानक तलवार लेकर वहां पहुंचे जहां उनकी हत्या कर दी गई। मर्चेंट और उनके प्रकाशकों को बाद में इस विवरण के लिए मानहानि के मुकदमे का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विवरण हास्यपूर्ण ढंग से लिखा गया था और इसे शाब्दिक रूप से नहीं लिया जाना चाहिए।
समय के साथ ठंडी पड़ी जांच
हुकुम सिंह की हत्या के तुरंत बाद गुमान सिंह नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन मामला उससे आगे नहीं बढ़ पाया। एक साल के भीतर ही गुमान सिंह गायब हो गया। कुछ पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि वह "बहुत बूढ़ा और कमज़ोर" था और उसकी मौत हो गई, जबकि कुछ ने कहा कि उसे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत कभी नहीं मिले। जांच जल्द ही बंद हो गई। कुछ ही महीनों में मामला ठंडा पद गया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।