जानें नाटो सहयोगी का दर्जा मिलने से भारत को क्या होगा फायदा, क्या कहते हैं एक्सपर्ट
अमेरिकी संसद में भारत को नाटो सहयोगी का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित होने के बाद भारत को फायदा हो सकता है। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अमेरिकी सीनेट में भारत को नाटो सहयोगी का दर्जा देने वाला प्रस्ताव पारित होने के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा। इस प्रस्ताव के पास होने से भारत को निश्चित तौर पर फायदा होगा। इसके अलावा दोनों देशों की सामरिक भागीदारी को बढ़ावा देने में भी यह फायदेमंद साबित होगा। आपको बता दें कि ये प्रस्ताव पारित होने के बाद भारत का दर्जा इजरायल और दक्षिण कोरिया के समान हो जाएगा। इस बारे में दैनिक जागरण ने विदेश मामलों के जानकार और ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेश के प्रोफेसर हर्ष वी पंत से बात की और भारत को इससे होने वाले फायदे को जानने की कोशिश की।
इस मसले पर प्रोफेसर पंत ने कहा कि इसका सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि हम जिस तरह की रक्षा तकनीक की अपेक्षा अमेरिका से मिलने की बात करते हैं वह हमें हासिल हो सकेंगी। इस प्रस्ताव के पास होने से पहले जब भारत तकनीक ट्रांसफर की बात करता था तो सबसे बड़ी बाधा यही थी कि हम नाटो के सहयोगी देश नहीं थे। इसलिए अमेरिका को तकनीक देने में हमेशा झिझक बनी रहती थी। इतना ही नहीं वहां के मिलिट्री इंडस्ट्रीयल कांप्लैक्स को भी रक्षा तकनीक भारत को देने में परेशानी बनी रहती थी। लेकिन, अब जबकि नाटो सहयोगी का दर्जा देने का प्रस्ताव पास हो गया है तो ऐसी दिक्कत नहीं आएगी।
प्रोफेसर पंत का ये भी कहना था कि इस प्रस्ताव के पास होने से भारत को रक्षा क्षेत्र में काफी बड़ी कामयाबी मिल सकेगी। उनके मुताबिक यह नाटो सहयोगी देश का दर्जा मिल जाने के बाद भारतीय सेना की रिस्ट्रक्चरिंग का काम तेजी से हो सकेगा। इस प्रस्ताव को पास कर अमेरिका ने पूरी दुनिया को एक मैसेज भी दिया है। इसके तहत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका जो अपनी नई रणनीति बना रहा है उसमें भारत की भूमिका काफी अहम है। इसमें भारत की भूमिका ऐसी ही है जैसे एक समय में नाटो सदस्य देश की हुआ करती थी।

इस प्रस्ताव के पीछे अमेरिका के मसकद या रणनीति के बाबत सवाल पूछे जाने पर पंत का कहना था कि इसका ईरान-अमेरिका तनाव से कोई लेना-देना नहीं है। न ही अमेरिका ने यह प्रस्ताव इसलिए पास किया है क्योंकि नाटो ने ईरान से युद्ध में अपनी सेना न उतारने का फैसला लिया है। न ही इसका मकसद ये है कि ईरान से यदि युद्ध छिड़ा तो भारत उसमें किसी भी किस्म की सैन्य मदद देगा। यह प्रस्ताव इनसे पूरी तरह से अलग है और सिर्फ अमेरिका और भारत से संबंधित है। इसका आधार भी दोनों देशों के बीच सुधरते संबंध ही बनें हैं। उनका ये भी कहना था कि भारत के संबंध में जो प्रस्ताव पास किया गया है वह नॉन नाटो एलाइस का है, लिहाजा इस आशंका की कोई वजह नहीं है।
आपको यहां पर ये भी बता दें दक्षिण कोरिया को भी इसी तरह का दर्जा काफी पहले से दिया जा चुका है। वहां पर उसके हजारों की तादाद में जवान तैनात हैं। लेकिन क्या भविष्य में इस प्रस्ताव के पास होने के बाद अमेरिकी फौज भारत में भी डेरा डाल देगी। इस सवाल के जवाब में उनका सीधा जवाब न में था। उनका कहना था कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो समीकरण बने थे उसके बाद ही दक्षिण कोरिया को यह दर्जा दिया गया था। इसका मकसद कहीं न कहीं जापान को साधना भी था। लेकिन, भारत के संदर्भ में इस तरह की चीज सामने नहीं आएगी। इस प्रस्ताव की सबसे खास बात यही है कि भारत नाटो का सदस्य न बनते हुए भी नाटो को मिलने वाले फायदे उठा सकेगा।

यहां पर एक चीज बेहद साफ है कि न तो भारत ने नाटो का सदस्य बनने की बात कही है और न ही अमेरिका ने इस तरह की कोई मंशा जाहिर की है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि ताजा प्रस्ताव यूएस कांग्रेस का प्रपोजल है। सदन द्वारा राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए) के इस संस्करण को जुलाई में किसी समय पेश करने की संभावना है क्योंकि अगस्त में एक महीने के अवकाश के लिए 29 जुलाई को सदन स्थगित कर दिया जाएगा।वित्त वर्ष 2020 के लिए पिछले सप्ताह पारित राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए) में इस तरह का प्रस्ताव निहित था। सीनेट इंडिया कॉकस के सह अध्यक्ष सांसद मार्क वार्नर एवं जॉन कॉर्निन द्वारा पेश किए गए संशोधन में मानवीय मदद, आतंकवाद, जल-दस्युओं से निपटने और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में हिंद महासागर में भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है।

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