एंटोनियो गुटेरेस से भी बताएगा भारत अपनी चार बड़ी पीड़ाएं! जानें क्या है पूरा मामला
एक बार फिर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का मामला गरमा सकता है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में गिलगिट-बाल्टिस्तान में चल रही परियोजना का विरोध कर रहा है।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस भारत की यात्रा पर सोमवार को यहां पहुंच रहे हैं। गुटेरेस की भारत यात्रा के दौरान भारत अपनी चार ज्वलंत समस्याओं को उनके समक्ष उठा सकता है। आइए जानते हैं कि गुटेरेस के भारतीय यात्रा के क्या निहितार्थ होंगे। भारत उनके समक्ष कौन-कौन से मसले उठा सकता है। इसके साथ यह भी जानेंगे कि कौन हैं एंटोनियो गुटेरेस।
1 - उठ सकता है गिलगिट-बाल्टिस्तान परियोजना का मसला
एक बार फिर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का मामला गरमा सकता है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में गिलगिट-बाल्टिस्तान में चल रही परियोजना का विरोध कर रहा है। इसके बावजूद चीन-पाकिस्तान अपनी योजनाएं आगे बढ़ा रहे हैं। अब चीन काशगर-ग्वादर को वन बेल्ट-वन रोड की योजना को साकार करने का मार्ग मान रहा है, जिसमें श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी जुड़े हुए हैं। भारत इसे अपनी संप्रभुता के लिए संकट मानता है। दरअसल, 1947 में हुए विलय के आधार पर पूरा जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न हिस्सा है, गिलगित-बाल्टिस्तान इलाका उसी राज्य में शामिल है। पाकिस्तान जबरन कब्जे वाले इस क्षेत्र में कोई भी ऐसी परियोजना को भारत स्वीकार नहीं कर सकता है, जो उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर उसकी मूल चिंताओं को अनदेखा करती है।
.jpg)
इसके अलावा यहां के स्थानीय लोग जब इस क्षेत्र में चीनी गतिविधियों या उसकी दखलअंदाजी का विरोध करते हैं तब पाकिस्तान सेना इसे कुचल देती है। चीन-पाकिस्तान गलियारे का विरोध करने वालों पर आतंकवाद रोधी कानून लगाया जाता है। बड़े पैमाने पर पाकिस्तान ने यहां स्थानीय लोगों पर दमनचक्र चला रखा है। ऐसे में जब गुटेरेस भारत की यात्रा पर होंगे तो भारत उनको अपनी चिंताओं से फिर अवगत करा सकता है। बता दें कि गिलगिट-बाल्टिस्तान परियोजना चीन और पाकिस्तान की संयुक्त योजना है। यह एक 2000 किलोमीटर लंबा आर्थिक गलियारा है, जिसके तहत उत्तर पश्चिमी चीन में काशगर और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को पहले सड़क और फिर रेल के ज़रिए जोड़ा जाएगा। साथ ही पाइपलाइन भी होगी।
2- पाकिस्तान द्वारा प्रायाेजित आंतकवाद का उठ सकता है मामला
भारत एक बार फिर जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायाेजित आंतकवाद का मामला उठा सकता है। दरअसल, यह मामला इसलिए भी उपयोगी हो जाता है] क्यों कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ रहने वाले लोग पीड़ित हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए जल्द से जल्द अंतरराष्ट्रीय दख़ल की ज़रूरत है। साथ ही ऐसे मामलों की अंतरराष्ट्रीय जांच कराए जाने की जरूरत बताई थी। भारत के लिए इस रिपोर्ट को एक बड़े राजनयिक झटके के रूप में देखा गया था। संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में अपनी तरह की पहली रिपोर्ट जारी की थी। ऐसे में यह उम्मीद जताई जा रही है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख के समक्ष अपना पक्ष रखने के साथ वह अपनी चिंताओं को प्रमुखता से उठा सकता है।
इसके अलावा रिपोर्ट में पाकिस्तान से ख़ास तौर पर कहा गया है कि वह आतंक-निरोधक कानून के दुरुपयोग पर जल्द लगाम लगाए। इसके जरिए शांतिपूर्ण तरीकों से अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। इस पर चिंता जाहिर की गई थी कि पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कई आतंकी संगठन भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में सक्रिय हैं। वे वहां हत्या, अपहरण, यौन हिंसा जैसे अपराधों को अंज़ाम दे रहे हैं। इसके साथ ही हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी को भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराए जाने और उसके बाद घाटी में महीनों चली हिंसा का भी उल्लेख किया गया है।
3- सुरक्षा परिषद की दावेदारी का मामला
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई सदस्यता का मामला भी उठ सकता है। भारत संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा स्वरूप में बदलाव का हिमायती रहा है। भारत का मानना है कि 1945 और दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया की तस्वीर बदल चुकी है। इसलिए इस संगठन में बदलाव की दरकार है। इस क्रम में वह सुरक्षा परिषद में अपनी स्थाई सदस्यता की दावेदारी भी करता रहा है। भारत का तर्क है कि उसकी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दावेदारी बेबुनियाद नहीं है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रितक देश होेने के नाते यह उसका हक़ है। इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है। भारत का यह भी तर्क रहा है कि गठन के 71 साल बाद भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की नुमाइंदगी सही तरीके से नहीं हो सकी है। भारत सुरक्षा परिषद मे अपनी दावेदारी बात महासचिव के समक्ष उठा सकता है।

4- रोहिंग्या शरणार्थियों के मसले को भी उठा सकता भारत
भारत रोहिंग्या शरणार्थियों के मसले को भी उठा सकता है। म्यांमार से भाग कर भारत आए रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या पिछले एक दशक में 40 हजार तक पहुंच गई है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इनमें से करीब 15 हजार लोगों को शरणार्थी दस्तावेज दिए गए हैं। हालांकि, भारत इन सभी को देश से बाहर भेजना चाहता है। रोहिंग्या शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र पहले से अपनी चिंता जता चुका है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी कहा है। चूंकि नए महासचिव दुनियाभर में शरणार्थियों पर विशेष कार्य के लिए जाने जाते हैं, ऐसे में भारत इनके समक्ष अपनी चिंताओं को उठा सकता है।
.jpg)
कौन हैं गुटेरेश
- पुर्तगाल के एंटोनियो गुटेरेश पेशे से एक कारोबारी है। 1976 में उन्होंने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत की। 1976 में पुर्तगाल में कार्नेशन रेवोल्यूशन यानी तानाशाही व्यवस्था का अंत हुआ और पांच दशकों की तानाशाही के बाद पहली बार लोकतांत्रिक चुनाव हुए।
- गुटेरेश का राजनीतिक कद बढ़ता गया और 1992 में सोशलिस्ट पार्टी के नेता बन कर उभरे। 1995 में वह देश के प्रधानमंत्री बने। जनवरी 2017 में बान की मून का कार्यकाल समाप्त हाेने के बाद एंटोनियो गुटेरेश नए महासचिव बने। मून दस वर्षों तक महासचिव रहे।
- इसके पहले गुटेरेश संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था यूएनएचसीआर के लिए 2005 से 2015 तक प्रमुख रहे। सीरिया, अफ़गानिस्तान और इराक़ सहित दुनिया के कई शरणार्थी संकट में उनकी भूमिका अहम रही है। बताया जाता है कि इस मुश्किल दौर में उन्होंने संस्था के प्रमुख के रूप में शरणार्थी संकट से जूझ रहे लोगों की मदद करने के लिए पश्चिम देशों से लगातार अपील की।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।