Exclusive Interview : केंद्रीय मंत्री आर के सिंह बोले, ग्रीन हाइड्रोजन निर्यात का हब बनेगा भारत
क्या देश में मौजूद अपार कोयला भंडारों का कभी इस्तेमाल नहीं हो पाएगा? किस तरह से इस लक्ष्य को हासिल करने की तरफ बढ़ा जाएगा? इन सब सवालों के साथ दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने बिजली व रिनीवेबल मंत्री राज कुमार सिंह से बात की।

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भारत सरकार ने वर्ष 2070 तक अपने यहां कार्बन उत्सर्जन को बहुत ही कम करने का ऐलान कर दिया है। इस ऐलान ने कई सवाल पैदा किये हैं। मसलन, कोयला आधारित और क्रूड आधारित उद्योगों का क्या होगा? क्या ऊर्जा के स्त्रोत को पूरी तरह से बदलने की तकनीकी व आर्थिक क्षमता भारत के पास है? क्या स्वच्छ ऊर्जा के दौर में भी भारत एक ऊर्जा आयातक देश ही बना रहेगा? क्या देश में मौजूद अपार कोयला भंडारों का कभी इस्तेमाल नहीं हो पाएगा? किस तरह से इस लक्ष्य को हासिल करने की तरफ बढ़ा जाएगा? इन सब सवालों के साथ दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने बिजली व रिनीवेबल मंत्री राज कुमार सिंह से बात की।
प्रश्न: नेट जीरो 2070 को लेकर आपके मंत्रालय की क्या भूमिका होगी और किस तरह से अब आगे बढ़ने की तैयारी है?
उत्तर: आप सभी को मालूम है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में आयोजित काप-26 सम्मेलन में नेट जीरो-2070 का ऐलान किया है जिसका मकसद यह है कि वर्ष 2070 तक भारत में कार्बन उत्सर्जन यानी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले गैस उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। जहां तक बिजली व रिनीवेबल मंत्रालय का सवाल है तो यह बहुत ही अहम भूमिका निभाएगा। हम उद्देश्य की व्यापकता को देखते हुए काम शुरुू कर चुके हैं। अगर सिर्फ बिजली क्षेत्र की बात करें तो वर्ष 2030 तक हमारे पास रिनीवेबल (गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों) सेक्टर से पांच लाख मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता होगी। इसके लिए हमें अगले 8-9 वर्षों में रिनीवेबल सेक्टर में तीन लाख मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता और जोड़नी होगी। अभी इस सेक्टर में हमारी क्षबिजली उत्पादन क्षमता 1.50 लाख मेगावाट है जबकि 63 हजार मेगावाट निर्माणाधीन है। यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा। दूसरा अहम काम हम ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनाने को लेकर कर रहे हैं। इस नीति पर कैबिनेट के बीच एक बार चर्चा हो चुकी है। हम नई नीति अप्रैल, 2022 से लागू करेंगे ताकि इसके बाद दो वर्षों के भीतर तमाम उपकरणों या दूसरी तकनीक क्षमता विस्तार का काम हो सके।
प्रश्न: ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य क्या होगा और किस तरह से लागू किया जाएगा?
उत्तर: ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत उन सभी उद्योगो में जहां जहां प्रदूषण फैलाने वाले इंधनों का इस्तेमाल किया जाता है वहां ग्रीन हाइड्रोडन इंधन का इस्तेमाल किया जाएगा। अभी देश में जितना प्रदूषण होता है उसमें आठ-नौ उद्योगों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी होती है। इनमें रिफाइनरी सेक्टर है, मोबिलिटी यानी आटोमोबाइल है, सीमेंट, स्टील, सभी तरह के उर्वरक उद्योग और रसायन उद्योग है। इन सभी सेक्टरों में एक-एक करके ईंधन के मौजूदा स्त्रोतों की जगह पर ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होगा। हर सेक्टर के लिए चरणबद्ध तरीके का कार्यर्क्म बनेगा। जैसे रिफाइनिंग उद्योग की बात करें तो वर्ष 2030 तक इनके कुल ऊर्जा उपयोग में 50 फीसद ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होने लगेगा। फर्टिलाइजर उद्योग में वर्ष 2035 तक 75 फीसद ग्रीन हाइड्रोजन आधारित बना दिया जाएगा। पूरी तरह से ग्रीन इनर्जी पर आधारित 22.6 लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता के दो डीएपी उवर्रक प्लांट लगाने की भी हमारी योजना है। आटोमोबाइल सेक्टर में एक साथ कई क्षेत्रों पर काम शुरू हो चुका है और आप देखेंगे वर्ष 2030 तक भारत में सबसे ज्यादा बिजली से चलने वाले वाहनों की बिक्री शुरु हो जाएगी। इससे जुड़े सरकार के भीतर तमाम मंत्रालयों के भीतर एक सामंजस्य बनाने का काम भी शुरु हो गया है। हमें पूरा भरोसा है कि नेट जीरो-2070 के लक्ष्यों को लेकर बुनियाद बनाने का काम वर्ष 2030 तक पूरा हो जाएगा। हालांकि वर्ष 2025 में आप कई उद्योगों में आप पांच फीसद ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल देख सकेंगे।
प्रश्न: तकनीकी तौर पर यह कितना चुनौतीपूर्ण होगा, क्या फोसिल फ्यूल (क्रूड व गैस) की तरह नए ईंधन के क्षेत्र में भी हम एक आयातक देश तो नहीं बन जाएंगे?
उत्तर: तकनीक के तौर पर यह काफी चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन भारत ने पिछले कुछ वर्षों में साबित किया है कि पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में हम ऐतिहासिक काम कर सकते हैं। साथ ही हमारी ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का एक अहम उद्देश्य यह होगा कि हमें नए जमाने में ऊर्जा आयातक देश नहीं बल्कि ऊर्जा निर्यातक देश बनना है। हमारी गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पहले वर्ष में ही हम ग्रीन हाइड्रोजन के लिए बेहद जरूरी इलेक्ट्रोलाइजर का सबसे बड़ा निर्माता देश बन जाएंगे। अगले वित्त वर्ष के शुरुआत में ही 8800 मेगावाट क्षमता के इलेक्ट्रोलाजर निर्माण के प्लांट लगाने काम शुरु जाएगा। भारत सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के लिए ग्रीन हाइड्रोडन बनाएगा। पूरी दुनिया में मौजूदा ईंधन की जगह ग्रीन हाइड्रोजन की जरूरत होगी। जापान व दूसरे विकसित देशों को भारत से इसकी आपूर्ति आसानी से की जा सकती है। भारत के पास तकनीक, जमीन और प्रतिभा सभी है जिसके आधार पर हम नई ऊर्जा सेक्टर में एक प्रमुख निर्यातक के तौर पर स्थापित हो सके।
प्रश्न: क्या हम यह विकसित देशों के दवाब में कर रहे हैं?
उत्तर: बिल्कुल नहीं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भारत की वचनबद्धता साबित हो चुकी है। आर्थिक तौर पर दुनिया के शीर्ष 20 देशों में सिर्फ भारत ने ही पेरिस समझौते के तहत लक्ष्यों को हासिल किया है। दूसरे देश सिर्फ बात करते हैं। एक उदाहरण आपको इलेक्ट्रोलाजर के संदर्भ में देता हूं। पूरी दुनिया में महज 2000 मेगावाट इलेक्ट्रोलाइजर बनाने की क्षमता है जबकि हम पहले दौर में ही 8800 मेगावाट क्षमता के इलोक्ट्रोलाजर बनाने का काम करने जा रहे हैं। कई उदाहरण मैं बता सकता हूं जहां इन विकसित देशों का प्रदर्शन नाकाफी है। जैसे कुछ उद्योग ऐसे हैं जहां प्रदूषण वाले इंधनों का कोई विकल्प नहीं है, वहां हम उत्सर्जिक कार्बन डायआक्साइड से कार्बन निकालने का काम करने जा रह हैं। आपको बता दूं कि इसकी तकनीक है लेकिन सिर्फ कनाडा में और वह भी बेहद सीमित स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है। भारत इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम करने जा रहा है।
प्रश्न: तो क्या भारत के पास जो कोयला भंडार है उसका एक बड़ा हिस्सा कभी निकाला जा सकेगा?
उत्तर: हां, इसकी संभावना है। देश की कुल बिजली क्षमता में कोयला आधारित बिजली घरों की हिस्सेदारी अभी 60 फीसद है जो वर्ष 2030 तक घट कर 35 फीसद हो जाएगी। पिछले पांच वर्षों में 13,382 मेगावाट क्षमता की ऐसी 166 बिजली संयंत्रों को बंद कर चुके हैं। लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा कि देश की आर्थिक प्रगति के लिए जितनी बिजली की जरूरत हो उसमें किसी तरह की कमी ना हो। रिनीवेबल सेक्टर और परमाणु सेक्टर से बिजली बनाने का काम और तेज होगा।

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