Uniform Civil Code: मार्गदर्शक बनने योग्य गोवा का समान नागरिक संहिता माडल
Uniform Civil Code कानून के जानकारों का एक बड़ा वर्ग पूरे देश में सभी के लिए एक समान नागरिक संहिता का पक्षधर है वहीं एक अन्य वर्ग इसे संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के लिहाज से सही नहीं मानता है।

नई दिल्ली, जेएनएन। देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग के बीच गोवा का नागरिक संहिता माडल चर्चा में है। गोवा में इसे पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 के नाम से जाना जाता है। यह नागरिक संहिता, नागरिक कानूनों का एक समूह है जो राज्य के सभी निवासियों को उनके धर्म और जातीयता के बावजूद नियंत्रित करता है। गोवा की नागरिक संहिता के चार भाग हैं, जो नागरिकों की धारण शक्ति, अधिकारों का अधिग्रहण, संपत्ति का अधिकार और अधिकारों और उपचारों का उल्लंघन से संबंधित हैं। इसके तहत विवाह का रजिस्ट्रेशन सिविल अथारिटी के पास कराना आवश्यक है। इसके अंतर्गत अगर तलाक होता है तो महिला भी पति की संपत्ति में आधे हिस्सा की हकदार है। इसके अतिरिक्त अभिभावकों को अपनी कम से कम आधी संपत्ति का मालिकाना हक अपने बच्चों को देना होता है जिसमें बेटियां भी शामिल होंगी।
गोवा में जब समान नागरिक संहिता कानून बना तो इसने हर किसी के लिए एक ही शादी का प्रविधान किया। इसके साथ ही इस कानून में ऐसा प्रविधान भी है कि कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते। उल्लेखनीय है कि गोवा में लागू समान नागरिक संहिता के अंतर्गत यहां पर उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के संबंध में हिंदू, मुस्लिम और क्रिश्चियन के लिए एक ही कानून है। यह देखा गया है कि राज्य के अधिकांश लोग इस माडल से काफी खुश और संतुष्ट हैं।
कह सकते है यह समान नागरिक संहिता के शांतिपूर्ण क्रियान्वयन का जीवंत उदाहरण है जहां कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा के अलावा धर्म की परवाह किए बिना यह सभी के लिए लागू होता है। ऐसे में गोवा इस तरह के कानून को लागू करना चाह रहे अन्य राज्यों के लिए एक माडल हो सकता है। भारत जैसे विविधता वाले देश में इस तरह के कानून को लागू करना थोड़ा कठिन कार्य जरूर है। लेकिन जब गोवा जैसे राज्य में इसे लागू किया जा सकता है तो अन्य राज्यों तथा केंद्र स्तर पर यह क्यों नहीं कार्य कर सकता?
गोवा से प्रेरणा लेकर सभी राज्यों को समान नागरिक संहिता लागू की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और आम राय बनाने का प्रयास होना चाहिए। इसी साल दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए केंद्र को इसे लागू करने के लिए समुचित कदम उठाने के लिए कहा था। लिहाजा इस दिशा में हमें आगे बढ़ना चाहिए।
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