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    देश में भिक्षावृत्ति उन्मूलन की जरूरत, बेरोजगारी और निर्धनता निभा रही अहम भूमिका

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Thu, 05 Aug 2021 12:50 PM (IST)

    पूरे देश में पिछले लगभग 60 वर्षो से भिक्षावृत्ति निरोधक कानून चला आ रहा है लेकिन भीख मांगने पर रोक लगाने में इस कानून को कोई खास सफलता नहीं मिली है। दिल्ली में सालाना लगभग 215 करोड़ रुपये की भिक्षावृत्ति का कारोबार है।

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    भिक्षावृत्ति के पीछे बेरोजगारी और निर्धनता की अहम भूमिका है।

    [देवेंद्रराज सुथार] गत दिनों सर्वोच्च अदालत ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए भिखारियों और बेघरों को सड़कों से हटाने का आदेश देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा आभिजात्य आदेश नहीं दे सकते। लोग मजबूरी में भीख मांगते हैं। यह स्थिति शिक्षा और रोजगार में अवसरों की कमी से पैदा होती है। देखा जाए तो कई कारण हैं जो देश में भिक्षावृत्ति को जन्म देते हैं। गरीबी और बेरोजगारी इसकी प्रमुख वजह हैं। अंधों, अपाहिजों तथा रोगियों के कल्याण के लिए देश में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। अत: वे भीख मांगने को मजबूर हैं। पिछड़ी जातियों की विधवाएं या परित्यक्त महिलाएं भीख मांगती हैं। कई मानसिक रोगी आवारा बन जाते हैं और भीख मांगकर जीवन यापन करते हैं। बाढ़, भूकंप या अकाल आदि आपदाओं के कारण हजारों लोग बेघर और असहाय हो जाते हैं और अपने जीवन यापन के लिए भीख मांगने लगते हैं। कमाने वाले की मौत भी कभी-कभी घर की महिलाओं और बच्चों को भिखारी बना देती है।

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    केंद्र सरकार के अनुसार देश में कुल 4,13,670 भिखारी हैं, जिनमें से 2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं हैं। सबसे ज्यादा भिखारी बंगाल में हैं। वहां भिखारियों की संख्या 81,000 है। केंद्र शासित प्रदेशों में भिखारियों की संख्या सबसे कम है। इस सूची में दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां भिखारियों की संख्या 65,835 है। जबकि आंध्र प्रदेश तीसरे नंबर पर है। वहां 30,218 भिखारी हैं। बिहार की बात करें तो वहां 29,723 भिखारी हैं। पूवरेत्तर राज्यों में असम में सबसे ज्यादा 22,116 और मिजोरम में सबसे कम 53 भिखारी हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में सालाना लगभग 215 करोड़ रुपये की भिक्षावृत्ति का कारोबार है। पूरे देश में पिछले लगभग 60 वर्षो से भिक्षावृत्ति निरोधक कानून चला आ रहा है, लेकिन भीख मांगने पर रोक लगाने में इस कानून को कोई खास सफलता नहीं मिली है। इस कानून को लाने के पीछे सरकार की मंशा थी कि भिक्षावृत्ति को एक व्यवस्थित व्यवसाय न बनने दिया जाए, लेकिन भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, धार्मिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक आदि कारकों ने मिलकर इस समस्या को बहुत गंभीर बना दिया है।

    भिक्षावृत्ति की पृष्ठभूमि में बेरोजगारी और निर्धनता की अहम भूमिका है। इसलिए देश में उत्पादन के साधनों को बढ़ाना होगा। योजनाओं के माध्यम से ऐसी व्यवस्था करनी होगी, ताकि हर कुशल और अकुशल श्रमिक को नौकरी मिल सके। शहरों और महानगरों में गुप्त तरीके से काम करने वाली कई ऐसी संस्थाएं हैं, जो बच्चों को पकड़कर, पीटकर, धमकाकर या अपंग बनाकर बेवजह भीख मंगवाती हैं। ऐसे संगठनों का पता लगाया जाना चाहिए और ऐसे संगठन चलाने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)