देश में किन परिस्थितियों में लगाया जाता है आपातकाल? 1975 में हिंदुस्तान ने झेला था इसका दंश; 10 बड़ी बातें
आपातकाल लगाने का फैसला कोई आम फैसला नहीं होता है। इस पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाता है। आपातकाल की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों को संविधान में परिभाषित मानदंडों को पूरा करना होता है और सरकार को यह प्रदर्शित करना होता है कि राष्ट्र के कल्याण और सुरक्षा के लिए असाधारण उपाय आवश्यक हैं। आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार देश या प्रभावित राज्य के शासन पर अधिक नियंत्रण रखती है।

नई दिल्ली, अमित सिंह: भारत के इतिहास में 25 जून, 1975 का दिन उस स्याह कहानी को बयां करता है, जब देश में लोकतंत्र की हत्या कर एक प्रधानमंत्री ने सारी ताकतों की लगाम अपने हाथ में थाम ली। उस वक्त सियासी गलियारों में ऐसी अटकलें भी थीं कि आपातकाल का मुखौटा तो इंदिरा थीं, लेकिन वास्तव में सारा खेल संजय गांधी का रचाया हुआ था। भारत में आपातकाल लगाना एक गंभीर कदम है जिसे हिंदुस्तान के काले अध्याय के तौर पर देखा जाता है। इस दौरान लोगों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था।
देश में जिन परिस्थितियों में आपातकाल लगाया जा सकता है, उन्हें भारतीय संविधान द्वारा परिभाषित किया गया है। इस लेख का उद्देश्य उन परिस्थितियों पर प्रकाश डालना है जिनके चलते भारत में आपातकाल लगाया जा सकता है। भारतीय संविधान द्वारा परिभाषित आपातकाल की तीन परिस्थितियां हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा देश में लागू किया जा सकता है।
पहला: राष्ट्रीय आपातकाल
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जा सकता है यदि भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो। राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद से लिखित अनुशंसा प्राप्त होने पर राष्ट्रीय आपातकाल लगाने का अधिकार है। राष्ट्रपति की उद्घोषणा को एक महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
दूसरा: राज्य आपातकाल
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, राज्य आपातकाल, जिसे राष्ट्रपति शासन भी कहा जाता है, तब लगाया जा सकता है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि किसी विशेष राज्य का शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं किया जा सकता है। राज्य में आपातकाल लगाने के कारणों में संवैधानिक मशीनरी का टूटना, कानून और व्यवस्था की विफलता, या किसी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता शामिल हो सकती है। राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
तीसरा: वित्तीय आपातकाल
वित्तीय आपातकाल, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में उल्लिखित है, तब घोषित किया जा सकता है जब भारत की वित्तीय स्थिरता या साख को खतरा हो। यह प्रावधान राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद से लिखित सिफारिश प्राप्त होने पर वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति देता है। वित्तीय आपातकाल को दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
आपातकाल लागू करने के निहितार्थ
देश में आपातकाल लगाने का फैसला कोई आम फैसला नहीं होता है। इस पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाता है। आपातकाल की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों को संविधान में परिभाषित मानदंडों को पूरा करना होता है और सरकार को यह प्रदर्शित करना होता है कि राष्ट्र के कल्याण और सुरक्षा के लिए असाधारण उपाय आवश्यक हैं।
आपातकाल के दौरान, केंद्र सरकार देश या प्रभावित राज्य के शासन पर अधिक नियंत्रण रखती है। इस दौरान कुछ मौलिक अधिकारों का हनन होता है, जिसमें सरकार के पास भाषण, सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त, कार्यपालिका को कानून और व्यवस्था लागू करने की अधिक शक्ति प्राप्त हो जाती है।
भारत में आपातकाल से संबंधित 10 तथ्य
- भारतीय संविधान तीन प्रकार की आपात स्थितियों का प्राविधान करता है: राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल।
- भारत में राष्ट्रीय आपातकाल संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत घोषित किया जाता है, जबकि राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) अनुच्छेद 356 के तहत लगाया जाता है, और वित्तीय आपातकाल अनुच्छेद 360 के तहत घोषित किया जाता है।
- यदि युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत की सुरक्षा को खतरा हो तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।
- राष्ट्रपति के पास मंत्रिपरिषद से लिखित अनुशंसा प्राप्त होने पर राष्ट्रीय आपातकाल लगाने का अधिकार है, लेकिन उद्घोषणा को एक महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
- राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) तब लगाया जा सकता है जब संवैधानिक मशीनरी के टूटने, कानून और व्यवस्था की विफलता, या राजनीतिक अस्थिरता जैसे कारकों के कारण किसी विशेष राज्य का शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
- वित्तीय आपातकाल तब घोषित किया जा सकता है जब भारत की वित्तीय स्थिरता या साख को खतरा हो। मंत्रिपरिषद से लिखित अनुशंसा प्राप्त होने पर राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है, और इसे दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
- आपातकाल के दौरान, संविधान द्वारा गारंटीकृत कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, जैसे भाषण, सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
- आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन से कुछ अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसे आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधानों का उद्देश्य सरकार को गंभीर परिस्थितियों से निपटने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान करना है, लेकिन उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए वे संवैधानिक सुरक्षा उपायों और निरीक्षण के अधीन हैं।
निष्कर्ष
भारत में आपातकाल लगाना एक कठिन कदम है, जो सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को निलंबित कर देता है और सरकार को असाधारण शक्तियां प्रदान करता है। जबकि आपातकालीन स्थितियों का उद्देश्य राष्ट्र के लिए गंभीर खतरों से निपटना है, उन्हें लोकतंत्र के सिद्धांतों और व्यक्तिगत अधिकारों पर उचित विचार करते हुए, विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग किया जाना चाहिए। संविधान एक रूपरेखा प्रदान करता है जो उन विशिष्ट परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत आपातकाल लगाया जा सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि इसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है और इसका उपयोग असाधारण स्थितियों तक ही सीमित है।
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