कांग्रेस को भाजपा का डर दिखाकर गठबंधन में साथ रखना चाहते हैं उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे, कांग्रेस को भाजपा का डर दिखाकर गठबंधन में साथ रखना चाहते हैं। उनकी रणनीति है कि कांग्रेस को भाजपा के संभावित खतरे से अवगत कराकर गठबंधन में एकजुट रखा जाए। ठाकरे का उद्देश्य है कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन अटूट बना रहे। वे कांग्रेस को यह समझाना चाहते हैं कि भाजपा से मिलकर मुकाबला करने में ही उनकी भलाई है।

भाजपा का डर दिखाकर कांग्रेस को साथ रखना।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई, 18 नवंबर। महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव कांग्रेस ने अकेले लड़ने की मंसा जताई है। लेकिन उसकी यह मंसा शिवसेना (यूबीटी) को रास नहीं आ रही है। उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे कांग्रेस को भाजपा का डर दिखाते हुए नसीहत दे रहे हैं अलग-अलग लड़ने से नुकसान होगा।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों की शुरुआत हो चुकी है। कई वर्षों के बाद होने जा रहे इन चुनावों में लगभग सभी दलों के स्थानीय नेता अपना भाग्य आजमाना चाहते हैं।
भाजपा का डर दिखाकर कांग्रेस को साथ रखना
इसी तर्क के आधार पर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्द्धन सपकाल ने कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव स्वतंत्र लड़ने की कार्यकर्ताओं की भावना का सम्मान किया जाना चाहिए। जबकि उद्धव ठाकरे को कांग्रेस का यह निर्णय रास नहीं आ रहा है।
वह भाजपा का डर दिखाकर कांग्रेस को गठबंधन में रहकर ही निकाय चुनाव लड़ने का दबाव बना रहे हैं। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में मंगलवार को लिखा गया है कि चुनाव अकेले लड़ने की कांग्रेस पार्टी की घोषणा 'आत्मघाती' होगी। भाजपा को मात देने के लिए विपक्षी एकता ज़रूरी है।
गठबंधन में एकता बनाए रखने की रणनीति
संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा की गुंडागर्दी, भीड़तंत्र, धनबल और पुलिस बल के अत्यधिक प्रयोग के ज़रिए चुनाव प्रणाली को हाईजैक करके मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की योजना को रोकने के लिए एकता ज़रूरी है। संपादकीय में मराठी कार्ड खेलते हुए लिखा गया है कि महाराष्ट्र मराठी जनभावनाओं के ख़िलाफ़ जाने वालों को माफ़ नहीं करेगा।
संपादकीय में बिहार के चुनाव परिणामों का डर दिखाकर लिखा गया है कि भाजपा और उसके 'बैकबेंचर' किस स्तर पर चुनावी खेल खेलते हैं इसका अहसास बिहार के चुनाव में हुआ है। ऐसे समय में, एक ही रास्ता है कि एकजुट होकर लड़ा जाए, बिना यह देखे कि किसकी क्या विचारधारा है।
उद्धव ठाकरे का राजनीतिक प्रयास
हम एक-दूसरे की संस्कृति और विचारधारा पर बाद में चर्चा कर सकते हैं। राहुल गांधी पहले ही मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को सबक सिखाने की बात कह चुके हैं। यह सबक तभी सिखाया जा सकता है जब विपक्ष एकजुट रहे। लेकिन शिवसेना का यह तर्क भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के गले नहीं उतर रहा है।
उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र में मिलकर लड़ने से लोकसभा में तो जीत हासिल हुई, लेकिन विधानसभा में हम हार गए। बिहार में भी 10 दलों का गठबंधन था। फिर भी जीत हासिल नहीं हुई। माना जा रहा है कि हर्षवर्द्धन सपकाल को महाविकास आघाड़ी में राज ठाकरे को शामिल करने की उद्धव की मंसा भी रास नहीं आ रही है।
उन्होंने साफ कहा कि आईएनडीआईए गठबंधन में कोई नया दल शामिल होता है, तो उस पर चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होती है। उसके लिए प्रस्ताव आना चाहिए। जब कोई प्रस्ताव ही नहीं आया, तो चर्चा किस बात पर होगी ?

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