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    EC: दोहरे ईपिक नंबरों की दो दशक पुरानी गड़बड़ी हुई दुरुस्त, जारी किए गए यूनिक नंबर

    Updated: Tue, 13 May 2025 11:30 PM (IST)

    आयोग ने इसी साल मार्च में ईपिक से जुड़े इस मामले के तूल पकड़ने के बाद देश भर में अभियान चलाकर इसे दुरुस्त किया है। आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक 99 करोड़ से अधिक मतदाताओं के बीच दोहरे ईपिक नंबर वाले मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। जो औसतन प्रत्येक चार मतदाता केंद्रों पर एक ही थी। देश में मौजूदा समय में 10.50 लाख मतदान केंद्र है।

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    चुनाव आयोग ने दोहरे ईपिक नंबरों की दो दशक पुरानी गड़बड़ी हुई दुरुस्त (फाइल फोटो)

     जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों में मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपिक) नंबरों में पिछले दो दशकों से चली आ रही गड़बड़ी को चुनाव आयोग ने दुरूस्त करने का दावा किया है। इसकी जगह इन सभी मतदाता फोटो पहचान पत्रों का अब यूनिक नंबर जारी किया गया है।

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    देश भर में अभियान चलाकर इसे दुरुस्त किया

    आयोग ने इसी साल मार्च में ईपिक से जुड़े इस मामले के तूल पकड़ने के बाद देश भर में अभियान चलाकर इसे दुरुस्त किया है।

    आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक 99 करोड़ से अधिक मतदाताओं के बीच दोहरे ईपिक नंबर वाले मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। जो औसतन प्रत्येक चार मतदाता केंद्रों पर एक ही थी। देश में मौजूदा समय में 10.50 लाख मतदान केंद्र है।

    दोहरे ईपिक नंबरों को लेकर कराए गए सत्यापन

    सूत्रों ने बताया कि दोहरे ईपिक नंबरों को लेकर कराए गए सत्यापन के पाया गया कि ऐसे समान ईपिक नंबरों वाले मतदाता अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों और अलग- अलग मतदान केंद्रों में वास्तविक मतदाता थे। हर मतदाता का नाम उसी मतदान केंद्र की मतदाता सूची में था, जहां के वह सामान्य निवासी है।

    यानी समान नंबर का ईपिक होने के बाद भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे मतदान केंद्र पर मतदान नहीं कर सकता था। इतना ही नहीं, इसका किसी भी चुनाव के नतीजों पर भी कोई असर नहीं पड़ सकता था।

    एक मतदान केंद्र पर औसतन एक हजार मतदाता

    हाल ही में इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब तृणमूल कांग्रेस ने ऐसे दोहरे ईपिक नंबरों के आधार पर चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगाए। आयोग से जुडे सूत्रों के मुताबिक अब एक मतदान केंद्र पर औसतन एक हजार मतदाता है।

    देश भर के मतदान केंद्रों के डेटाबेस की पड़ताल की गई

    ऐसे में देश भर के मतदान केंद्रों का डेटाबेस की पड़ताल करके दोहरे ईपिक नंबरों को निकाला गया। आयोग के मुताबिक दोहरे ईपिक के मुद्दे की उत्पत्ति 2005 से मानी जाती है, जब सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में ईपिक नंबर जारी करने को लेकर कोई केंद्रीकृत व्यवस्था नहीं थी।

    अभी अपने-अपने तरीके से विधानसभावार अलग-अलग नंबरों की श्रृंखला का उपयोग कर रहे थे। निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 2008 में इन श्रृंखलाओं को फिर से बदलना पड़ा।

    टाइपिंग की गलतियों के कारण हुआ नुकसान

    सूत्रों ने बताया कि इस दौरान कुछ विधानसभाओं ने या तो पुरानी सीरीज का इस्तेमाल करना गलती से जारी रखा या टाइपिंग की गलतियों के कारण उन्होंने कुछ अन्य निर्वाचन क्षेत्रों को आवंटित सीरीज का इस्तेमाल किया।