Trump Tariff: रूस-चीन से दोस्ती भी कारगर नहीं! आंकड़ों से जानें क्यों आसान नहीं होगा अमेरिका का तोड़ निकालना
Trump Tariff News पिछले दिनों रूस और चीन ने भारतीय उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने की घोषणा की है। अमेरिका द्वारा शुल्क लगाने के बाद क्या ये बाजार अमेरिकी बाजार की जगह ले सकते हैं? रूस के साथ व्यापार में वृद्धि मुख्य रूप से कच्चे तेल और उर्वरकों के कारण है जबकि चीन के साथ व्यापार में निर्यात बढ़ाने में नीतियां बाधा डालती हैं।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पिछले तीन दिनों के भीतर रूस और चीन ने भारतीय उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने की घोषणा की है। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल और हथियार खरीदने के कारण 25 फीसद का अतिरिक्त शुल्क लगाया है, इसके चलते भारतीय निर्यात पर कुल शुल्क 50 फीसद तक पहुंच गया है।
अगर अलग अलग उत्पादों पर पहले से लागू शुल्कों को जोड़ दिया जाए तो अमेरिकी बाजार में सामान भेजने के लिए भारतीय निर्यातको को 50 फीसद से ज्यादा का शुल्क देना पड़ेगा। यह शुल्क 27 अगस्त 2025 से लागू होगा।
निश्चित तौर पर अमेरिकी बाजार में टिक पाना भारतीय निर्यातको के लिए मौजूदा शुल्क ढांचे में मुश्किल होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या रूस और चीन के बाजार अमेरिकी बाजार की जगह ले सकते हैं? इन दोनों देशों के साथ भारत के पिछले तीन-चार वर्षों के कारोबारी हालात पर नजर डालें तो यह काफी मुश्किल लगता है।
रूस व चीन में भारतीय उत्पादों के लिए सीमित अवसर
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के रूस व चीन के साथ कारोबार के आंकड़ों को देखें तो साफ है कि इन दोनों के बाजार में भारतीय उत्पादों की खास मांग नहीं है। भारत व रूस का 2020-21 में कारोबार 13 अरब डॉलर था, जो 2024-25 में बढ़कर 68 अरब डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन इस वृद्धि में 90 फीसद योगदान रूस से आने वाले कच्चे तेल व उर्वरकों में भारी वृद्धि का है।
भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 0.2 फीसद से बढ कर 40 फीसद हो चुकी है। यह बात बढ़ते व्यापार घाटा से भी पता चलती है जो इस दौरान 6.6 अरब डॉलर से बढ़ कर 58.9 अरब डॉलर हो गया है। भारत का रूस को निर्यात सीमित ही है।
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वर्ष | अमेरिका | रूस | चीन |
---|---|---|---|
2023-24 | 77.5 | 4.26 | 16.66 |
2024-25 | 86.51 | 4.66 | 14.25 |
(मूल्य अरब डॉलर में)
रूस की जनसंख्या (लगभग 14.6 करोड़) और उसकी अर्थव्यवस्था का सीमित आकार (2024 में जीडीपी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर) भारतीय निर्यात के लिए कितना अवसर प्रदान करेगी, यह भी देखने वाली बात है।
निर्यात बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा चीन की नीतियां
भारत व चीन का द्विपक्षीय कारोबार 2021 में 115 अरब डॉलर था, जिसमें भारत का आयात 94.5 अरब डॉलर और निर्यात केवल 21 अरब डॉलर था। 2022 में व्यापार 113 अरब डॉलर रहा, जिसमें आयात 98.5 अरब और निर्यात 13.6 अरब डॉलर था। 2023 में यह आंकड़ा 118 अरब डॉलर तक पहुंचा, जिसमें आयात 101 अरब और निर्यात 16.6 अरब डॉलर था।
2024-25 में अप्रैल-नवंबर के दौरान भारत ने चीन से 46.6 अरब डॉलर का आयात किया, जबकि निर्यात केवल 5.7 अरब डॉलर रहा। चीन भारत से इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, और कृषि उत्पादों का सीमित आयात करता है। भारत के निर्यात बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा चीन की नीतियां हैं। भारतीय कृषि उत्पादों, आइटी सॉफ्टवेयर को चीन गैरशुल्कीय बाधाओं से हतोत्साहित कर देता है। चीन की तरफ से भारतीय बाजार में कई उत्पादों को डंप भी किया जाता है तो एक अलग समस्या है।
अमेरिका है भारतीय उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। 2022-23 में भारत ने अमेरिका को 78.31 अरब डॉलर का निर्यात किया जो वर्ष 2024-25 में 86.51 डॉलर का था। यह कुल भारतीय निर्यात का 18 फीसद था। अमेरिका भारत का फार्मास्यूटिकल्स, पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न-आभूषण, और टेक्सटाइल का सबसे बड़ा आयातक है। सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरणों, झींगा, खास तौर के रसायनों का अमेरिका भारतीय निर्यात का एकमात्र स्थल है।
अगर इनका निर्यात बाधित होता है तो इस बात की संभावना कम ही है कि रूस व चीन में इन्हें खपाया जा सकेगा। हालांकि रूस और चीन के साथ व्यापार बढ़ाने की संभावनाएं हैं। जानकारों के मुताबिक यह तभी होगा जब रूस व चीन के साथ भारत की विस्तृत बात हो और एक रणनीति बनाई जाए। इसमें देखना होगा कि चीन भारतीय उत्पादों के लिए अपना बाजार खोलता है या नहीं।
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