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एक बार फिर बहस में तीन तलाक, कानून के बगैर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करना मुश्किल

सुप्रीम कोर्ट एक बार में तीन तलाक को शून्य और गैरकानूनी घोषित कर चुका है। इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार कानून ला रही है।

By Arti YadavEdited By: Published: Mon, 01 Jan 2018 09:41 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jan 2018 10:05 AM (IST)
एक बार फिर बहस में तीन तलाक, कानून के बगैर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करना मुश्किल
एक बार फिर बहस में तीन तलाक, कानून के बगैर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करना मुश्किल

नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट एक बार में तीन तलाक को शून्य और गैरकानूनी घोषित कर चुका है। इसके बावजूद ये बदस्तूर जारी था। इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार कानून ला रही है। कानून के सख्त प्रावधानों की मुस्लिम समाज में कड़ी खिलाफत हो रही है, लेकिन कानूनविदों की मानें तो कानून लाए बगैर कोर्ट का फैसला लागू कराना मुश्किल होता। वे तो यहां तक कहते हैं कि जब समाज साथ न हो तो कानून का साथ जरूरी होता है। एक बार में तीन तलाक की सामाजिक कुरीति को काबू करने के लिए ये कानून जरूरी था।

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तीन तलाक के खिलाफ सरकार मुस्लिम वूमैन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल 2017 लाई है। ये लोकसभा से पारित हो चुका है और राज्यसभा में पेश होना है। कानून को लेकर उठ रहे सवालों पर कानूनविदों का मत स्पष्ट है।

खौफ पैदा करना जरूरी

'फैसले को अमल में लाने के लिए इसके प्रति खौफ पैदा करना जरूरी था। कानून का उद्देश्य किसी को जेल भेजना नहीं है बल्कि अपराध के प्रति डर पैदा करना है ताकि कोई ऐसा न करे।' - मुकुल रोहतगी, पूर्व अटार्नी जनरल 

'अगर कोई व्यक्ति वैसे ही पत्नी को छोड़ देता है तो समाज महिला के साथ होता है, लेकिन एक बार में तीन तलाक पर ऐसा नहीं है। उस पर धार्मिक चोला चढ़ा था इसलिए मुस्लिम समाज इसे यथावत स्वीकार करता था। उनका कहना है कि जब समाज साथ न हो तो कानून का साथ जरूरी होता है। सती प्रथा के साथ भी यही था इसीलिए उसे खत्म करने के लिए कानून लाना पड़ा था। -ज्ञानंत सिंह, वकील 

हिंदू कोड बिल का भी विरोध हुआ

'जब हिंदू कोड बिल आया था तो बहुत विरोध हुआ था, लेकिन उसके बाद हिंदू महिलाओं को बहुत से अधिकार मिले। विरोध होते रहे हैं और होते रहेंगे।  -डीके गर्ग, वकील

तलाक के आधार तय हों

'मुस्लिमों में तलाक के आधार भी तय होने चाहिए जैसे हिंदुओं में हैं।' -एसआर सिंह, रिटायर्ड जज

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