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    आदिवासी समुदाय अन्य समाज की तुलना में ज्यादा आत्मनिर्भर, देता है विश्व शांति का संदेश

    By TilakrajEdited By:
    Updated: Tue, 09 Aug 2022 10:49 AM (IST)

    आदिवासी संस्कृति हमें ऐसी व्यवस्था अपनाने को प्रेरित करती है जो प्रकृति के नियमों का पालन कर सतत विकास करे। वास्तव में आदिवासी समाज प्रकृतिवाद मानववाद तथा लोकतंत्र के सर्वाधिक करीब है। यह स्थानीयता आत्मनिर्भरता सतत विकास के साथ बढ़ते क्रम में विश्व शांति का संदेश देता है।

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    आजीविका के लिए व्यवसाय आदिवासी समाज की खासियत है तथा मुनाफाखोरी पश्चिमी प्रवृत्ति

    नई दिल्‍ली, डा. अमृत कुल्लू। भारत का विकास भारतीयता के साथ ही संभव हो सकता है, न कि पश्चिमी देशों की राह पर चलकर। यह भारतीयता वास्तव में आदिवासी समाज में पहले से विद्यमान रही है। दुर्भाग्यवश आजादी के बाद भी इसे उतना मान नहीं मिला और पिछड़ा करार दे दिया गया। फलस्वरूप गैर-आदिवासी समाज आदिवासी समाज से दूर होता चला गया। इसके कारण प्रकृति संरक्षण-संवर्धन, मानवता तथा वास्तविक लोकतंत्र का धीरे-धीरे लोप होने लगा।

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    हालांकि, इधर एक अच्छी बात यह हुई है कि केंद्र सरकार ने भारतीयता को केंद्र में रख अपनी नीतियों का निर्माण करना शुरू कर दिया है। इससे आदिवासी संस्कृति-परंपरा की अच्छाइयां उभरकर सामने आई हैं। सरकार और गैर-आदिवासी दोनों आदिवासियों का सम्मान करने लगे हैं। देश के सर्वोच्च पद पर द्रौपदी मुर्मु का आसीन होना इसका प्रमाण है।

    वास्तव में आदिवासी समाज प्रकृतिवाद, मानववाद तथा लोकतंत्र के सर्वाधिक करीब है। यह स्थानीयता, आत्मनिर्भरता, सतत विकास के साथ बढ़ते क्रम में विश्व शांति का संदेश देता है। मातृभाषा में पढ़ाई, रोजगारपरक शिक्षा, मूल्याधारित शिक्षा आदि के प्रविधान आदिवासी समाज में बहुत पहले से मौजूद हैं। भले ही अन्य समाज ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को छोड़ मैकाले की नीति को अपना लिया, लेकिन आदिवासी समुदाय ने अपने समाज में परंपरागत मूल्यों पर आधारित शिक्षा को अपनाए रखा। परिणामत: आदिवासी समुदाय अन्य समाज की तुलना में ज्यादा आत्मनिर्भर है।

    आजीविका के लिए व्यवसाय आदिवासी समाज की खासियत है तथा मुनाफाखोरी पश्चिमी प्रवृत्ति। मुनाफाखोरी आधारित व्यापार ने जहां उपनिवेशवाद, विश्वयुद्ध, सांस्कृतिक गुलामी, पर्यावरण विनाश दिया, वहीं आदिवासी संस्कृति ने शांति, भाईचारा, मानवता, प्रकृति संरक्षण-संवर्धन दिया। विश्व में जहां भी बहुमूल्य खनिज-संपदा हैं मूलत: वहां आदिवासियों का निवास है। अगर आदिवासी संस्कृति में मुनाफाखोरी होती तो आज विश्व के सर्वाधिक धनी आदिवासी ही होते। आदिवासियों ने मानव कल्याण के लिए खनिज संपदा एवं पर्यावरण का संरक्षण किया, लेकिन आज उसका उपयोग सभी कर रहे हैं।

    आदिवासी संस्कृति हमें एक ऐसी व्यवस्था अपनाने को प्रेरित करती है, जो प्रकृति के नियमों का पालन कर सतत विकास की दिशा में आगे बढ़े। आदिवासी संस्कृति सर्वमत आधारित लोकतंत्र के सर्वाधिक नजदीक है। किसी भी मुद्दे पर बैठक तब-तक जारी रहती है जब-तक सभी एक समाधान पर राजी न हो जाएं। फैसले बंद कमरों में न होकर जनता के समक्ष होते हैं।भारतीयता के साथ अमृत काल के सपनों को पूरा करने के लिए हमें आदिवासी संस्कृति को अपना आदर्श बनाना चाहिए।

    (लेखक झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची में सहायक प्रोफेसर हैं)