अब 'देसी' हो गए चीते, रास आया भारत का हवा-पानी, आज के दिन ही पीएम मोदी ने कूनो में छोड़े थे चीते
चीता पुनर्वास परियोजना के तीन वर्ष पूरे हो गए हैं। देश में 70 साल बाद चीतों की पुनस्र्थापना मध्य प्रदेश में श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर 2022 को स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। प्रथम चरण में नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे जिन्हें पार्क के बाड़े में प्रधानमंत्री ने छोड़ा था। द्वितीय चरण में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाकर यहां छोड़े गए थे।

जेएनएन, ग्वालियर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी चीता पुनर्वास परियोजना के तीन वर्ष बुधवार को पूरे हो गए हैं। देश में 70 साल बाद चीतों की पुनर्स्थापना मध्य प्रदेश में श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर, 2022 को स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने की थी।
17 सितंबर, 2022 को पीएम मोदी ने कूनो में छोड़े थे चीते
प्रथम चरण में नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे, जिन्हें पार्क के बाड़े में प्रधानमंत्री ने छोड़ा था। द्वितीय चरण में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाकर यहां छोड़े गए थे। तब बड़ी चिंता थी कि चीते यहां की जलवायु में रह पाएंगे या नहीं?
शुरुआती कठिनाइयों के बीच चीतों ने खुद को यहां के अनुकूल ढाल लिया। उनका कुनबा भी बढ़ा। चीतों को यहां की आबोहवा (पानी-हवा) रास आ गई। अफ्रीकी चीते भी 'देसी' हो गए। लिहाजा उन्हें दूसरी जगहों पर भी बसाए जाने के बारे में सोचा जाने लगा।
गांधीसागर अभयारण्य (मंदसौर) चीतों का दूसरा रहवास बना
मध्य प्रदेश का गांधीसागर अभयारण्य (मंदसौर) चीतों का दूसरा रहवास बना। चीतों को लंबे समय तक कूनो पार्क के बाड़े में रखने के बाद खुले जंगल में छोड़े जाने पर कई चुनौतियां भी सामने आईं। चीतों ने कई बार जंगल की सीमा लांघी। राजस्थान व उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंचे।
कभी खुद लौटे तो कभी उन्हें बेहोश (ट्रेंकुलाइज) कर लाना पड़ा। जंगल में चीते पारंपरिक शिकार करने लगे। जंगल के बाहर भी गांवों के लोगों ने चीतों के व्यवहार को समझ लिया है। चीतों की अब नई खेप लाने की भी तैयारी चल रही है।
पहले हुआ थी चीतों की मौत
इसके लिए बोत्सवाना, केन्या और दक्षिण अफ्रीका से भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम की चर्चा चल रही है। शुरुआत में जब चीतों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात सामने आई थी कि पचास प्रतिशत चीतों की मौत संभावित हो सकती है। अब धारणा बदल चुकी है।
मुख्य वन संरक्षक उत्तम कुमार का कहना है कि अभी चीतों की उत्तरजीविता को लेकर आंकड़ा नहीं बताया जा सकता है, यह स्थिति आठ से दस साल बाद सामने होगी। री-इंट्रोडक्शन प्रोग्राम में अभी चीतों की निगरानी की जा रही है, उनकी देखरेख जारी है। यहां चीतों का जन्म हो रहा है, वे माहौल में ढ़लते जा रहे हैं।
आज एक मादा चीता छोड़ी जाएगी गांधीसागर अभयारण्य में
मध्य प्रदेश में चीतों के दूसरे रहवास गांधीसागर अभयारण्य में नर चीता पावक और प्रभास को 20 अप्रैल को छोड़ा गया था। बुधवार को चीता परियोजना के तीन वर्ष पूरे होने पर यहां मादा चीता धीरा को शिफ्ट किया जाएगा ताकि गांधीसागर में भी चीतों की वंशवृद्धि हो सके।
धीरा दक्षिण अफ्रीका से कूनो पार्क लाई गई थी। बुधवार को उसे विशेष वाहन से कूनो से राजस्थान के कोटा-झालावाड़ होते हुए गांधीसागर अभयारण्य ले जाया जाएगा। 360 किमी की दूरी करीब आठ घंटे में पूरी होगी। बुधवार शाम तक धीरा को गांधीसागर अभयारण्य में छोड़ दिया जाएगा।
पिछले वर्ष जन्मे थे 11 शावक
अब कुल 25 चीते हैं, जिनमें नौ वयस्क हैं। इनमें छह मादा व तीन नर चीता हैं। इसमें 16 चीते देश में जन्मे हैं। इन्ही में से दो चीते गांधीसागर अभयारण्य में छोड़े गए हैं। अभी तक कुल 26 शावक जन्मे, जिनमें नौ की मृत्यु हो चुकी है। पिछले साल 11 शावक जन्मे थे। इस साल अभी तक पांच शावकों का जन्म हुआ है।
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