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    क्‍या बाघों के लिए असुरक्षित हो गए हैं टाइगर रिजर्व, हैरान करते हैं ये आंकड़े, हर साल 56 बाघों की मौत

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Tue, 08 Dec 2020 01:32 AM (IST)

    बाघों को प्राकृतिक रहवास देने के लिए बनाए गए 37 टाइगर रिजर्व उनके लिए मुफीद नहीं रह गए हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। बीते सात वर्षों में देशभर में 750 बाघों की जान गई है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

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    बाघों को प्राकृतिक रहवास देने के लिए बनाए गए 37 टाइगर रिजर्व उनके लिए मुफीद नहीं रह गए हैं।

    मनोज तिवारी, भोपाल। क्‍या बाघों को प्राकृतिक रहवास देने के लिए बनाए गए 37 टाइगर रिजर्व उनके लिए मुफीद नहीं रह गए हैं। बीते सात वर्षों (2012-2019) में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इन सात वर्षों में देशभर में 750 बाघों की जान गई है। इनमें से 393 (52.4 फीसद) बाघ टाइगर रिजर्व के भीतर जबकि 254 यानी 33.8 फीसद बाहर मरे हैं। बाघों की मौत की वजह आपसी संघर्ष और शिकार की घटनाएं बताई जाती हैं।

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    मध्‍य प्रदेश में सबसे ज्‍यादा मौतें

    यही नहीं 103 (13.73 फीसद) मामलों में बाघों के अंगों की जब्ती हुई है। इनमें से 92 फीसद मामलों की फाइलें पोस्टमार्टम और फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद बंद कर दी गईं जबकि आठ फीसद मामलों में अभी भी पड़ताल चल रही है। मौत के मामले में मध्य प्रदेश देश में शीर्ष पर है। यहां सात वर्षों में 172 बाघों ने दम तोड़ा हैं। कान्हा टाइगर रिजर्व में में 43 बाघों की मौत हुई है। इस आंकड़े के साथ वह बाघों की मौत के मामले में शीर्ष पर है।

    टाइगर रिजर्व बांधवगढ़ में भी ज्‍यादा मौतें

    वहीं 38 बाघों की मौत के साथ मध्‍य प्रदेश का दूसरा बड़ा टाइगर रिजर्व बांधवगढ़ देश में तीसरे स्थान पर है। भले ही मध्‍य प्रदेश सरकार और वन अधिकारी सूबे के दोबारा टाइगर स्टेट बनने से खुश हैं लेकिन इस सफलता का असर बाघ प्रबंधन पर कतई नहीं नजर आ रहा है। बाघों की मौत के मामले में मध्‍य प्रदेश इस साल भी देश में पहले स्थान पर है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है।

    बाघों को भारी पड़ते हैं चार महीने

    एनटीसीए की ओर से वर्ष 2012 से 2019 के बीच देशभर में मरने वाले बाघों पर जारी रिपोर्ट में मध्य प्रदेश शीर्ष पर है। यदि इनमें इस साल यानी 2020 में 26 बाघों की मौत को भी जोड़ दिया जाए तो प्रदेश में मरने वाले बाघों की संख्या 198 हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बाघों की मौत जनवरी, मार्च और दिसंबर माह में होती है। मई में भी मौत का आंकड़ा इसी के आसपास रहता है।

    खुद की निगरानी कमजोर, दूसरों को दोष

    साल 2012 से 2019 के बीच जनवरी में औसतन 86, मार्च और दिसंबर में 85-85 और मई में 80 बाघों की मौत होना पाया गया है। सबसे कम मौतें सितंबर में 35 और अक्टूबर में 38 हुई हैं। बाघ की मौत के लिए आमतौर पर संरक्षित क्षेत्र के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को जिम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन टाइगर रिजर्व के भीतर भी हालात खराब हैं। एनटीसीए की रिपोर्ट से इस बात की तस्‍दीक करती है। रिजर्वों में ग्रामीणों की नहीं होने पर भी बाघ मर रहे हैं।

    इन प्रदेशों में बाघों की मौत

    राज्य --- संख्या

    मध्य प्रदेश -- 172

    महाराष्ट्र -- 125

    कर्नाटक -- 111

    उत्तराखंड -- 88

    तमिलनाडू -- 56

    असम -- 54

    उत्तर प्रदेश -- 35

    केरल -- 33

    राजस्थान -- 17

    पश्चिम बंगाल -- 11

    बिहार -- 10

    छत्तीसगढ़ -- 09

    ओड़ि‍शा -- 07

    आंध्रप्रदेश -- 07

    तेलंगाना -- 05

    प्रमुख टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत

    टाइगर रिजर्व -- संख्या

    कान्हा -- 43

    नागरहोल -- 41

    बांदीपुर एवं बांधवगढ़ -- 38-38

    कार्बेट -- 31

    काजीरंगा -- 26

    मुदुमलई -- 21

    टीएटीआर -- 18

    पेंच (एमपी-महाराष्ट्र) -- 17 -12

    वाल्मिकी -- 11

    पीलीभीत -- 11

    मेलघाट -- 11

    पेरियार -- 09

    सत्यमंगलम -- 07

    पन्ना -- 07

    दुधवा -- 07

    बीटीआर -- 07

    सुंदरवन -- 06

    ओरंग --05

    अनमलई -- 05

    किन कारणों से कितने बाघों की मौत

    वर्ष -- नेचुरल -- शिकार -- अप्राकृतिक -- अंगों की जब्ती

    2012 -- 42 -- 23 -- 07 -- 16

    2013 -- 32 -- 29 -- 03 -- 04

    2014 -- 45 -- 13 -- 08 -- 12

    2015 -- 54 -- 12 -- 06 -- 10

    2016 -- 66 -- 25 -- 08 -- 22

    2017 -- 59 -- 26 -- 05 -- 17

    2018 -- 45 -- 28 -- 04 -- 10

    2019 -- 31 -- 15 -- 03 -- 10

    (नोट : वर्ष 2017 से 2019 के बीच मामले इसलिए कम हुए, क्योंकि तीनों साल क्रमश: 10, 14 और 36 मामलों में जांच जारी रही है।)

    संरक्षित क्षेत्र के अंदर शिकार की घटनाएं

    एनटीसीए के पूर्व सदस्य सचिव डॉ. राजेश गोपाल कहते हैं कि संरक्षित क्षेत्र के अंदर शिकार की घटनाएं हो रही हैं, तो यह चिंता का विषय है। सरकार और वन विभाग को इसे नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाना चाहिए। रही बात बाघों की ज्यादा मौत की तो यह प्राकृतिक है। जहां घनत्व ज्यादा रहता है, वहां मौतें होंगी। सरकार ने बाघों के लिए नए क्षेत्र तैयार करने चाहिए ताकि आपसी संघर्ष के मामले नियंत्रित किए जा सकें।

    अच्छे प्रबंधन के दावे खोखले

    रातापानी अभयारण्य के पूर्व संचालक आरके दीक्षित ने कहा कि वैसे तो टाइगर रिजर्व के अंदर बाघों की संख्या ज्यादा है लेकिन यह स्पष्ट है कि रिजर्व के अंदर अच्छे प्रबंधन के दावे खोखले हैं। यदि ऐसा ही होता तो इतनी बड़ी संख्या में मौत नहीं होतीं। वन विभाग की कोशिश यही रहती है कि ज्यादातर मामलों को आपसी संघर्ष का बताकर पल्ला झाड़ लें। बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों की मौत के मामले में जिम्मेदारी तय कर कठोर कार्रवाई की जाना चाहिए।