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    2500 ईसा पूर्व भारत सीख चुका था सुंदर शहरों के लिए पानी की बेहतर निकासी का समाधान

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Mon, 07 Sep 2020 10:50 AM (IST)

    भारत में वर्षों पहले सिंधु घाटी की सभ्‍यता के दौरान भी पानी की निकासी की बेहतर व्‍यवस्‍था थी।

    2500 ईसा पूर्व भारत सीख चुका था सुंदर शहरों के लिए पानी की बेहतर निकासी का समाधान

    नई दिल्‍ली (जेएनएन)। भारत में ड्रेनेज सिस्टम की बात करने वाले लोग अक्सर हमारी विरासत को भुला देते हैं।सिंधु घाटी सभ्यता (करीब 2500 साल ईसा पूर्व) के समय शहरों में योजनाबद्ध तरीके से ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण किया गया था। गुजरात में मौजूद लोथल और अब पाकिस्तान में स्थित मोहनजो दारो आज भी इसे प्रमाणित करते हैं। हमारी सभ्यता में ड्रेनेज सिस्टम पूर्व काल से मौजूद है। बीतते वक्त के साथ जिस तरह बहुत सी अच्छी बातों को भुला दिया गया, उसी तरह से इसे भी भुला दिया गया।

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    बढ़ता शहरीकरण

    2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 37 करोड़ से अधिक लोग शहरों में रहते हैं। देश में 7,935 कस्बे हैं। इनमें से 468 शहरी समूह ऐसे हैं जिनकी आबादी कम से कम 1 लाख है। इन्हीं में से 53 की आबादी 10 लाख या फिर उससे अधिक है। हमारे शहरों की संख्या निरंतर रूप से बढ़ रही है। हाल ही में शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने बताया था कि अगले दस साल में देश की चालीस फीसद आबादी शहरों में रहेगी। बढ़ती आबादी से शहरों के पहले से ही जर्जर बुनियादी ढ़ाचे पर और दबाव बनता है।

    पुरानी प्रणाली हो आधुनिक

    देश में कोलकाता में सबसे पुरानी ड्रेनेज प्रणाली है। 1911 तक यह ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी थी। यहां पर पहला ईंटों से बना सीवर 1876 में शुरू हुआ। उस वक्त इसे 6.35 मिमी/प्रति घंटा बारिश के पानी को निकालने के लिए डिजाइन किया गया था। करीब सौ साल बाद 12.7 मिमी/प्रति घंटा बारिश के पानी को निकालने के लिए कोशिशें की गई। हालांकि 2003 में सिर्फ एक घंटे में 54 मिमी बारिश बाढ़ का कारण बनी। 6 दशक में 4.7 लाख करोड़ का नुकसान एशियन विकास बैंक का अनुमान है कि भारत में जलवायु संबंधी सभी आपदाओं में करीब 50 फीसद बाढ़ की हिस्सेदारी है। 

    केंद्रीय जल आयोग के 1952 से 2018 तक के डाटा से पता चलता है कि 65 साल में एक भी साल ऐसा नहीं रहा है, जब बाढ़ के कारण देश को जीवन और संपत्ति का बड़ा नुकसान न हुआ हो। इस अवधि के दौरान 1.09 लाख लोगों की मौत हुई और 25.80 करोड़ हेक्टेयर में खड़ी फसल बर्बाद हो गई। साथ ही 8.11 करोड़ मकानों को नुकसान पहुंचा। देश को इन छह दशकों में बाढ़ के कारण 4.7 लाख करोड़ की कीमत चुकानी पड़ी है। अकेले 2018 में ही देश को बाढ़ के कारण 95,736 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

    उचित प्रबंधन है जरूरी

    कमजोर ड्रेनेज सिस्टम की एक कड़ी उचित प्रबंधन का अभाव है। कई विभाग के बीच में यह महत्वपूर्ण कार्य बंटा हुआ है। जैसे जयपुर में ड्रेनेज सिस्टम और सीवर की देखरेख का काम छह विभागों  के मध्य बंटा है। कोलकाता और मुंबई में भी ऐसी ही स्थिति है। अगर हमने विरासत से कुछ सीखा होता और इसे लेकर हम गंभीर होते तो शायद यह परिस्थितियां पैदा नहीं होती।

    शहरी इलाके या इसके कैचमेंट एरिया में भारी बारिश, पानी के बहाव या निचले इलाकों में निर्माण कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके एक साथ होने से भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ता है।

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